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कला में व्यक्ति खुद को उजागर करता है कलाकृति को नहीं: रविंद्र नाथ टैगोर

साहित्य जगत में सर्वप्रथम नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले महान पुरोधा पूजनीय रविंद्र नाथ टैगोर ऐसे भारतीय थे जिन्होंने सन 1913 में सर्वप्रथम नोबेल पुरस्कार को अपने नाम किया। बहुमुखी कलाओं और साहित्य में इनकी तन्मयता को देखते हुए राष्ट्रपिता “महात्मा गांधी” ने इन्हें “गुरुदेव” की उपाधि से सम्मानित किया, गुरुदेव एक ऐसे महान कवि थे, जिन्होंने अपनी प्रखर लेखनी से बांग्लादेश और हिंदुस्तान को ऐसा अविस्मरणीय गीत प्रदान किया, जिसकी धुन मात्र के बजने से सवा सौ करोड़ की जनता मौन की मुद्रा में खड़ी हो जाती है।

सवा सौ करोड़ की जनता का मौन की मुद्रा में खड़े हो जाना राष्ट्रगान का सम्मान और गुरुदेव के प्रति हम सभी के हृदय में आस्था को दर्शाता है। सन 1971 के मुक्ति संग्राम के पश्चात बांग्लादेश द्वारा “आमार सोनार बांग्ला”और 24 जनवरी सन 1950 को”जन गण मन बांग्ला गीत” को भारतीय संविधान ने भारत का राष्ट्रगान घोषित किया, रविंद्र नाथ टैगोर की पुण्यतिथि को स्मरण करते हुए कवि व साहित्यकार “सुधांशु पांडे निराला” लिखते हैं-

चाहता मरने से पहले,
अमर गीत लिख जाना!
जब लिखे नज़्म को भारत ने,
अपना राष्ट्रगान माना!
हो गया अमर यह गीत,
हे!टैगोर उसी दिन!
जब शुरू किया लाखों लोगों ने,
जन-गण मन-गढ़ गाना!

साहित्य के प्रति टैगोर की रुचि इस बात को भी दर्शाती है, कि महान और अविस्मरणीय साहित्यकार वही होता है,”जो कविताओं की बाजार बनाता है, ना कि बाजारों के लिए कविता लिखता है” इस बात को गुरुदेव ने अपनी रचनाओं के माध्यम से सिद्ध भी किया, रविंद्र नाथ टैगोर ने एक संदर्भ में बड़ी अच्छी बात कही थी” हर एक कठिनाई जिससे आप मुंह मोड़ लेते हैं, एक भूत बनकर आपकी नींद में बाधा डालेगी” गुरुदेव ने साहित्य का दायरा ही नहीं बढ़ाया, अपितु बांग्ला साहित्य को एक नवीन दिशा भी दी, रविंद्र नाथ टैगोर “बांग्ला और अंग्रेजी” के महान साहित्यकार थे, गुरुदेव की सबसे ज्यादा ख्याति प्राप्त करने वाला कविता संग्रह “गीतांजलि” है जिस पर इन्हें सर्वप्रथम नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया था।

इनकी कविताओं और विचारों को पढ़ने के पश्चात यदि कोई आलोचक आलोचना करेगा तो वह यह जरूर कहेगा कि गुरुदेव की रचनाएं सोचने पर मजबूर कर देती है. इनकी कविताओं और विचारों में सागर सी गहराई और आसमान सी ऊंचाई विराजमान है.अतः रविंद्र नाथ टैगोर का साहित्य क्षेत्र में योगदान अविस्मरणीय और अतुलनीय है गुरुदेव ने कलम के माध्यम से देश दुनिया में अपनी ऐसी छाप छोड़ी जिस पर सुधांशु निराला के गीत का छोटा सा अंश-

गात से हृदय अपना,
क्यों निकाल दूं!
बेमिसाल है टैगोर उसे,
क्या मिसाल दूं!

सुधांशु पांडे “निराला”

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