नई दिल्ली। मथुरा की शाही मस्जिद ईदगाह समिति ने सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन दायर किया जिसमें पूजा स्थल अधिनियम, 1991 को चुनौती देने वाली याचिकाओं में हस्तक्षेप करने की मांग की गई।
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समिति का कहना है कि पूजा स्थल अधिनियम के खिलाफ याचिकाओं पर निर्णय से आवेदक पर सीधे तौर पर असर पड़ने की संभावना है (क्योंकि वह कृष्ण जन्मभूमि के संबंध में दावों का विरोध कर रहा है)। तमिलनाडु से मंदिरों के लिए ट्रस्टी समिति की नियुक्ति के संबंध में उठाए कदमों के बारे में पूछा
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को तमिलनाडु सरकार को राज्य में सभी हिंदू मंदिरों के लिए अरंगवलर समिति (ट्रस्टी समिति) की नियुक्ति के संबंध में उठाए जाने वाले कदम के बारे में बताने का निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने तमिलनाडु सरकार के वकील से कहा, ‘आप (राज्य सरकार) क्या करने वाले हैं, इस बारे में हलफनामा दाखिल करें।’यह निर्देश तब आया जब राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया कि उसने 31,000 मंदिरों से ट्रस्टी समितियों की नियुक्ति के लिए आवेदन मांगे थे और ऐसे पैनल 7,500 से अधिक मंदिरों में नियुक्त किए गए हैं, क्योंकि कई मंदिरों ने अभी तक जवाब नहीं दिया है।
पीठ ने राज्य सरकार को हलफनामा दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया और याचिकाकर्ता हिंदू धर्म परिषद की याचिका को फरवरी, 2025 में सूचीबद्ध किया। राज्य सरकार के वकील ने कहा कि सरकार द्वारा इस संबंध में विज्ञापन जारी करने के बावजूद मंदिरों के ट्रस्ट में नियुक्ति के लिए बहुत कम लोग सामने आए।
याचिकाकर्ता निकाय के वकील ने दावा किया कि राज्य में लगभग 40,000 मंदिर हैं और रखरखाव न होने के कारण कई पुराने मंदिर क्षतिग्रस्त हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि भक्तों द्वारा दिए जाने वाले चढ़ावे का कम से कम 10 प्रतिशत मंदिरों के रखरखाव पर खर्च किया जाना चाहिए।