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वैश्विक स्तर पर दुनियाँ में भारत (India’) की प्रतिष्ठा (Reputation) एक सुसंस्कारी आध्यात्मिक संस्कृतिक (Cultured Spiritual Culture) देश के तौर पर होती है। यहाँ माता-पिता को देवतुल्य (like God) व संपूर्ण सृष्टि (Whole Universe) में श्रेष्ठ (Best) माना जाता है। परंतु पिछले कुछ दशकों से पाश्चात्य संस्कृति (Western Culture) की छाया भारत पर भी पड़ती हुई दिखाई दे रही है। यह मेरी निजी राय है कि वर्तमान मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजंस (अमेंडेड) एक्ट 2019 नाकाफी व अपर्याप्त सिद्ध होरहा है। अब समय आ गया है कि माता-पिता बुजुर्गों के साथ दुर्व्यहर, बुरा व्यवहार,अपमान व प्रताड़ित करने से रोकने के लिए एक जन जागरण अभियान की जरूरत है जिसे मातृ-पितृ दिवस के रूप में हर शहर हर गांव हर मोहल्ले में मनाकर जनजागरण करने की खास जरूरत है। इसी कड़ी में मैं रविवार दिनांक 16 फरवरी 2025 को रईस सिटी गोंदिया के संत कंवरराम मैदान पर रात्रि चल रहे मातृ-पितृ पूजन दिवस की ग्राउंड रिपोर्टिंग की, जहां माता-पिता को सम्मान देने के गुण सिखाने, मार्गदर्शन करने व माता-पिता की पूजा आरती करने, उनके चरणों में करीब 10-15 मिनट शीष झुककर क्षमादान माँगने का क्रम मैं देखकर गदगद हो उठा और इस विषय पर तुरंत आर्टिकल लिखने की ठानी और प्रक्रिया शुरू कर दी।
भारतीय संस्कृति में माता-पिता का सम्मान व पूजन की परंपरा रही है, परंतु आज उनका अपमान प्रताड़ना कर उनका उपहास उड़ाया जाता है, जिसे रोकने के लिए यह जनजागरण अभियान चलाया गया था। करीब 14 वर्षों से यह अभियान चलाया जा रहा है, जिसे हर शहर गांव मोहल्ले में हर समाज धर्म जाति को मातृ- पितृ पूजन दिवस मनाने की खास जरूरत है, विशेषकर इसे किसी पाश्चात्य मौज के दिवस पर मानना, मेरे विचार से बेहतर रहेगा। चूँकि माता-पिता गुरुजनों के हम ऋणी हैं, उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करके, आशीष पाकर जीवन में आगे बढ़ाने के अवसर हैं, तथा वर्तमान डिजिटल व पाश्चात्य प्रवृत्ति युग में युवाओं को माता-पिता के लिए समय नहीं है। इसीलिए माता-पिता पूजन दिवस मनाना जन जागरण के लिए सराहनीय कार्य है। इसलिए आज हम ग्राउंड रिपोर्टिंग के आधार पर इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, मातृ पितृ पूजन दिवस का आगाज़, माता-पिता से गुस्ताखी अक्षम्य अपराध है।
अगर हम वर्तमान समय में माता-पिता बुजुर्गों के अपमान की करें तो, वैश्विक स्तरपर इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया के सहयोग से देख पढ़ सुन रहे हैं कि दुनियाँ में असंख्य माता पिता वह सीनियर सिटीजन बुजुर्ग व्यक्ति हैं जो अपनी संतान की दुत्कार सह रहे होंगे। आज मॉडर्न सोसाइटी का तर्क देकर माता-पिता, बुजुर्गों से दुर्व्यवहार किया जाता है। आज थोड़ी-थोड़ी बात पर माता-पिता बुजुर्गों को कहा जाता है कि चुपचाप बैठो, तुमको क्या समझता है, तुम सठिया गए हो अगर पिता पढ़ा लिखा है तो पढ़ा लिखा गंवार या बुजुर्ग गवार की संख्या दी जाती है। प्रैक्टिकली अगर माता-पिता बुजुर्गों के जीवन में झांक कर देखा जाए तो आज की तारीख में उन्हें दुत्कार ही मिलती रहती है। मैंने अपनी गोंदिया राइस सिटी में इसे रिसर्च के तौर पर माता-पिता द्वारा 1 साल के बच्चों की परवरिश पर पूरा एक महीना ध्यान रखा था तो देखा वह अपने बच्चों को, माता-पिता अपने पलकों पर बैठा कर प्यार करते हुए ए ग्रेड का पालन पोषण कर रहे थे, तो दूसरी तरफ एक परिवार को देखा जिसमें जिसके दोनों बच्चे मुंबई पुणे और विदेश में रह रहे थे और मां लाचार होकर किचन में तो पिता छोटी सी दुकान पर, मेहनत करके दिन काट रहा था। तीसरी जगह देखा तो बच्चे अपने माता-पिता को दुत्कार कर रौब से बात कर रहे थे। यह दृश्य देखकर मैं दंग रह गया। अगर बच्चे माता-पिता के साथ भी रहते हैं तो माता- पिता बुजुर्गों को नौकर बना कर रखते हैं, जो भारतीय सभ्यता संस्कृति के लिए शर्म की बात है।
अगर हम माता- पिता बुजुर्गों के अपमान को रोकने व माता-पिता के सम्मान में एक कानून बनाने की करें तो, हम प्रस्तावित कानून में माता- पिता व वरिष्ठ नागरिक (अत्याचार अपमान दुर्व्यवहार निवारण) विधेयक 2025 की जरूरत है। हमारा देश महान संतानों की भूमि है, यहां बच्चों से अपने बुजुर्ग माता-पिता की उचित देखभाल करने की अपेक्षा की जाती है, लेकिन पीड़ादायक है कि नैतिक मूल्यों में इस कदर गिरावट आ गई है कि अपना सुख-चैन जिन बच्चों के लिए माता-पिता त्याग कर जीवन खत्म कर देते हैं, वही बच्चे उन्हें बुढ़ापे में दो जून की रोटी और मोहब्बत के लिए तरसा रहे हैं। आजकल कई मामलों में बच्चे अपने माता-पिता से संपत्ति प्राप्त करने के बाद उन्हें छोड़ देते हैं। जो न सिर्फ दुखद है, बल्कि सामाजिक और नैतिक मूल्यों में निरंतर आ रही गिरावट का प्रतीक भी है।
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हमारे सामाजिक मूल्यों में तेजी से आ रहे बदलाव की वजह से आज बुजुर्गों को अपनी ही संपत्ति में सुरक्षित रहने और संतानों की प्रताड़ना से बचने के लिये उन्हें अपने स्वअर्जित घर से बेदखल करने के लिए अदालतों की शरण में आना पड़ रहा है। इस तरह के उद्दंड संतानों को माता पिता के घर से बेदखल करने के आदेश भी अदालत दे रही हैं,लेकिन यह सामाजिक मूल्यों में आ रहे ह्रास का ही नतीजा है। मौजूदा दौर में संपत्ति के लालच में बेटा-बहू और बेटी द्वारा अपने माता-पिता को बेआबरू करने की घटनाएं और इससे मजबूर होकर बुजुर्गो द्वारा कानूनी रास्ता अपनाने के मामले बढ़ रहे हैं। परिवारों में बुजुर्ग माता पिता और दूसरे वृद्ध सदस्यों को बोझ समझा जाने लगा है। कई बार तो उन्हें उनके ही स्वअर्जित घर से बेदखल करके दर बदर की ठोकरें खाने के लिये छोड़ दिया जा रहा है या फिर सुशिक्षित बेटे बहू उन्हें वृद्धाश्रम पहुंचा रहे हैं। हमारा देश महान संतान श्रवण कुमार की भूमि है, यहां बच्चों से अपने बुजुर्ग माता-पिता की उचित देखभाल करने की अपेक्षा की जाती है।