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नरेंद्र मोदी: राष्ट्रसेवा का ध्येय पथ

 डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

विगत बीस वर्षों में विपक्ष के सर्वाधिक हमले नरेंद्र मोदी को झेलने पड़े। गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन पर शुरू हुए हमले आज तक जारी है। उन्हें प्रत्येक कदम पर नकारात्मक विरोध का सामना करना पड़ा। इसमें सेंट्रल विस्टा का निर्माण भी शामिल है।

उनके प्रत्येक कार्यों की तरह यह परियोजना भी प्रगति पर है। नरेंद्र मोदी ने कहा कि सेंट्रल विस्टा परियोजना को राष्ट्र हित में बताया। कहा कि ऐसे लोग रक्षा कार्यालय परिसरों के मुद्दे पर चुप रहते थे। क्योंकि उन्हें मालूम था कि इससे भ्रम और झूठ फैलाने की उनकी कोशिशों की पोल खुल जाएगी।

सेंट्रल विस्टा से जुड़ा जो काम आज हो रहा है उसके मूल में जीवन की सुगमता और व्यवसाय की सुगमता की भावना है। प्रधानमंत्री ने राजधानी दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग और अफ्रीका एवेन्यू स्थित रक्षा कार्यालय परिसरों उद्घाटन किया। रक्षा कार्यालय परिसर का निर्माण सेंट्रल विस्टा परियोजना का हिस्सा है। इस परियोजना के तहत एक नए संसद भवन और नए केंद्रीय सचिवालय के निर्माण के साथ साथ राजपथ के पूरे इलाके का पुनः विकास होगा। नए संसद भवन का निर्माण कार्य समय पर पूरा हो जाएगा। इस परियोजना से कोरोना काल में सैकड़ों श्रमिकों को रोजगार मिला। सरकार की नीतियां और इरादे स्पष्ट है। इच्छा शक्ति है। इसलिए यह सब करना संभव हो रहा है।

लोकतंत्र के प्रभावी संचालन में विपक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण है लेकिन इसका सकारात्मक होना भी आवश्यक है। नकारात्मक विरोध अंततः विपक्ष की छवि को ही धूमिल बनाते है। इसका अपरोक्ष लाभ सत्ता पक्ष को ही मिलता है। यहां बात केवल संख्या बल तक ही सीमित नहीं है। स्वतन्त्रता के बाद कई दशक तक देश की राजनीति में कॉंग्रेस का वर्चस्व था। तब जनसंघ, सोशलिस्ट और बाद में भाजपा संख्या बल के हिसाब से बहुत कमजोर हुआ करते थे। एक समय यह भी था कि लोकसभा में भाजपा के मात्र दो सदस्य थे। लेकिन उसने अपने वैचारिक आधार को कभी कमजोर नहीं होने दिया। तब विपक्ष की दलीलें सरकार को बेचैन बनाती थी क्योंकि उनमें राष्ट्रीय हित की नसीहत हुआ करती थी।

राष्ट्रीय संकट के अनेक पड़ाव आये, तब यही विपक्ष सरकार के साथ हुआ करता था। लेकिन विगत छह वर्षों में विपक्ष की राजनीति का आधार नकारात्मक ही रहा है। ये अपने संगठन की दम पर सरकार विरोधी एक भी आंदोलन या सत्याग्रह नहीं कर सके। हर समय ऐसा लगता रहा जैसे ये नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार नहीं कर सके है। इन्हें जहां भी नरेंद्र मोदी के विरोध का धुआं उठता दिखाई दिया, ये वहीं दौड़ गए। ऐसा करते समय अपनी मर्यादा या लाभ हानि पर भी विचार नहीं किया। असहिष्णुता व सम्मान वापसी से शुरू हुई यह राजनीति आज तक जारी है।

कुछ समय पहले कॉंग्रेस पर कथित रूप से टूल किट जारी करने का आरोप लगा था। इसमें कितनी सच्चाई थी,यह जांच का विषय हो सकता है। इसलिए टूलकिट को फिलहाल छोड़ देते हैं। लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के बाद जिस प्रकार की राजनीति हुई, उसके आधार पर क्या निष्कर्ष निकाला जाए। क्या सबकुछ सुनियोजित नहीं लगता, क्या भारत का विपक्ष पूरी दुनिया में बिल्कुल अलग दिखाई नहीं दे रहा था। क्या सरकार के विरोध की धुन में राष्ट्रीय सम्मान को धूमिल करने का जाने अनजाने प्रयास नहीं हुआ था। कोरोना से विकसित देशों को भारत के मुकाबले औसत अधिक नुकसान उठाना पड़ा। लेकिन वहां के विपक्ष ने इसे राजनीति का अवसर नहीं माना।

सेंट्रल विस्टा के निर्मांण को रोकने का ट्वीट अभियान चलाया गया। यह दिखाने का प्रयास हुआ कि सरकार का खजाना खाली है, इसलिए सेंटर विस्टा निर्माण का धन भी आपदा प्रबंधन में लगाना चाहिए। जबकि सरकार का कहना था कि इस निर्माण व कोरोना के बीच कोई संबन्ध नहीं है। सरकार के पास आपदा प्रबंधन के लिए धन की कोई कमी नहीं है। बाद में पता चला कि केंद्र सरकार के करीब दो दर्जन विभाग निजी भवनों में चलते हैं। अनेक भवन राजनीति के चर्चित लोगों के है। इनको हजारों करोड़ रुपये किराया मिलता है। सेंट्रल विस्टा बनने के बाद ये सभी कार्यालय वहीं शिफ्ट हो जाएंगे। इसलिए विरोध हो रहा था। सरकार को घेरने के लिए हरिद्वार कुंभ का मुद्दा उठाया गया। बाद में उजागर हुआ कि कुम्भ के कारण कोरोना नहीं फैला था। आपदा के पूरे दौर में कैसे कैसे ट्वीट किए गए। ऐसा करने वाले लोग स्वयं भी सत्ता में रह चुके है। तब उन्होंने स्वास्थ्य सुविधाएं कितनी बढ़ा दी थी।

तब प्रश्न केवल ऑक्सीजन व वेंटिलेटर तक सीमित नहीं था। इनके संचालन हेतु मैनपावर भी जरूरी था। ट्वीट करने वालों को बताना चाहिए कि उनके शासन में कितने मेडिकल कॉलेज खुले थे। इस मामले में नरेंद्र मोदी के सात वर्ष उन सभी पर भारी है। उत्तर प्रदेश में आजादी के बाद जितने मेडिकल कॉलेज बने उससे करीब दुगुने योगी आदित्यनाथ सरकार के समय बनाये जा रहे है। वैक्सीन पर जमकर हंगामा किया गया। अन्य गंभीर बीमारियों के वैक्सिनेशन के संबन्ध में कॉंग्रेस को अपना अतीत भी देखना चाहिए था। पोलियो स्मॉल पॉक्स हैपेटाइटिस बी की वैक्सीन के लिए देशवासियों ने दशकों तक इंतजार किया था। इस गति से वैक्सिनेशन में चालीस वर्ष और लगते। नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही वैक्सीनेशन के लिए मिशन मोड में काम किया। कॉंग्रेस के समय भारत में वैक्सीनेशन का कवरेज सिर्फ साठ प्रतिशत था। मोदी सरकार ने मिशन इंद्रधनुष को लॉन्च किया।

छह वर्ष में वैक्सीनेशन कवरेज नब्बे प्रतिशत हो गया। नकारात्मक राजनीति के इस दौर में नरेंद्र मोदी के संबोधन ने सकारात्मक विचार को प्रोत्साहित किया। वैक्सीन पर भ्रम फैलाने में विपक्ष के दिग्गज नेता शामिल थे। नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में पिछले कुछ समय से जारी नकारात्मक राजनीति का उल्लेख किया। ऐसा करने वाले बिपक्षी नेताओं ने हर कदम पर भ्रम फैलाया। ऑक्सीजन से लेकर वैक्सिनेशन तक इसके दायरे में थे। लेकिन इन बातों को पीछे छोड़ते हुए नरेन्द्र मोदी ने सभी राज्यों में वैक्सिनेशन व गरीबों को राशन वितरित करने का संकल्प दोहराया। यह उनके सकारात्मक रुख की अभिव्यक्ति थी।संकट काल में सरकार कुछ अच्छा करे तो उसका समर्थन करना चाहिए। सरकारी मशीनरी चिकित्सकों आदि का उत्साह बढ़ाना चाहिए। इससे अंततः विपक्ष की छवि बेहतर बनती है।

लेकिन भारत में ऐसा नहीं हो सका। अस्सी करोड़ गरीबों को निःशुल्क राशन देने का निर्णय सराहनीय था। अस्सी करोड़ लोगों को पहले आठ महीने राशन देना सामान्य बात नहीं थी। दूसरी लहर में भी यह योजना संचालित की गई है। विपक्ष को देखना चाहिए कि उसकी नकारात्मक राजनीति से देश की जनता प्रभावित नहीं है। जब से भारत में वैक्सीन पर काम शुरू हुआ, तभी से कुछ लोगों ने ऐसी बातें कहीं जिससे आम लोगों के मन में शंका पैदा हुई। कोशिश ये भी हुई कि वैक्सीन निर्माताओं का हौसला पस्त हो,बाधाएं आईं। भारत की वैक्सीन आई तो अनेक माध्यमों से शंका और आशंका को बढा़या गया। भांति भांति के तर्क प्रचारित किए गए। जो लोग वैक्सीन को लेकर आशंका और अफवाहें फैला रहे हैं,वो भोले भाले लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।

सेंट्रल विस्टा के मसले पर भी नकारात्मक राजनीति हुई। नए रक्षा कार्यालय परिसरों में सेना,नौसेना और वायु सेना सहित रक्षा मंत्रालय और सशस्त्र बलों के लगभग सात हजार अधिकारियों के लिए कार्य करने की जगह उपलब्ध होगी। प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के पछत्रहवें वर्ष में देश की राजधानी को नए भारत की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के अनुसार विकसित करने की तरफ एक और कदम बढ़ाया गया है। रक्षा कार्यालय परिसर हमारी सेनाओं के कामकाज को अधिक सुविधाजनक,अधिक प्रभावी बनाने के प्रयासों को और सशक्त करने वाले हैं। यह आधुनिक कार्यालय राष्ट्र की सुरक्षा से जुड़े हर काम को प्रभावी रूप से चलाने में सहायक होगा।

यह आधुनिक रक्षा एऩ्क्लेव के निर्माण की दिशा में बड़ा कदम है। नवनिर्मित रक्षा कार्यालय परिसर सेंट्रल विस्टा परियोजना का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि देश की राजधानी सिर्फ एक शहर नहीं होती। यह उस देश की सोच,संकल्प, सामर्थ्य और संस्कृति का प्रतीक होती है। भारत लोकतंत्र की जननी है। इसलिये भारत की राजधानी ऐसी होनी चाहिये, जिसके केंद्र में लोक हो। रक्षा कार्यालय परिसर सरकार की बदलती कार्य संस्कृति और प्राथमिकताओं को दिखाते हैं। सरकार के विभिन्न विभागों के पास उपलब्ध भूमि का इष्टतम और उचित उपयोग एक ऐसी ही प्राथमिकता है। इन रक्षा कार्यालय परिसरों का निर्माण तेरह एकड़ भूखंड में किया गया है।

पहले इस तरह के परिसरों के लिए पांच गुना अधिक भूमि का उपयोग किया जाता था। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि रक्षा कार्यालय परिसर नये भारत को लेकर दृष्टिकोण और सेंट्रल विस्टा परियोजना के लिए उनकी प्रतिबद्धता के अनुकूल हैं। नए रक्षा कार्यालय परिसर व्यापक सुरक्षा प्रबंधन के उपायों के साथ अत्याधुनिक और ऊर्जा कुशल हैं। इस भवन की मुख्य विशेषताओं में नई और टिकाऊ निर्माण तकनीक एलजीएसएफ अर्थात लाइट गेज स्टील फ्रेम का उपयोग प्रमुख है।

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