गर्मियों का मौसम चल रहा है। बड़े शहरों में तो केवल बिल्डिंग्स ही बिल्डिंग्स दिखती हैं। कंक्रीट से बने सीमेंट, ईंट, पत्थर से बने मकानों में गर्मी भी उतनी ही ज्यादा लगती है। टेंपरेचर इतना बढ़ जाता है कि पंखा फेल और कई बार तो कूलर भी…ऐसे में एसी (AC) ही थोड़ी राहत दे पाता है। लेकिन क्या हो अगर आपका मकान ही एयर कंडीशनर बन जाए तो? अगर आपको कम लागत का एक ऐसा घर बनाना है जो वातानुकूलित हो तो आप हरियाणा के डॉ. शिवदर्शन मलिक से मिलें। इन्होंने देसी गाय के गोबर से एक ऐसा ‘वैदिक प्लास्टर’ बनाया है जिसका प्रयोग करने से गांव के कच्चे घरों जैसा सुकून मिलेगा।
एसी काम क्या करता है
आपके घर-ऑफिस को ठंडा करता है, यही न! यानी बाहर 38 डिग्री टेंपरेचर हो तो उसे 18 से 27 के बीच ले आता है और आपको गर्मी नहीं लगती। लेकिन अगर मकान ही ऐसा बनाया जाए, जिसमें गर्मी में एसी लगाने की जरूरत ही न पड़े तो…? यानी ऐसा मकान, जिसमें बाहर के मुकाबले 10 डिग्री कम टेंपरेचर हो। चौंकिए मत! ऐसा संभव है।
गोबर का घर: गर्मियों में ठंडक, हवा भी शुद्ध
हरियाणा के डॉ. शिव दर्शन मलिक ने गाय के गोबर से वैदिक घर बनाने की तकनीक विकसित की है. वे गाय के गोबर से ही ईंट तैयार करते हैं और गोबर से ही वैदिक प्लास्टर तैयार करते हैं। यह प्लास्टर सीमेंट की तरह काम करता है। देसी गाय के गोबर में जिप्सम, ग्वारगम, चिकनी मिट्टी, नींबू पाउडर वगैरह मिलाकर वे वैदिक प्लास्टर तैयार करते हैं, जो आसानी से किसी भी दीवार पर लगाया जा सकता है। गाय के गोबर से बनी ईंटों और वैदिक प्लास्टर के इस्तेमाल से बना यह घर, गर्मियों में ठंडा तो रहता ही है, साथ ही इस घर के अंदर की हवा भी शुद्ध रहती है। अगर बाहर का तापमान 40 डिग्री है तो इसके अन्दर 28-31 तक ही रहता है.
कौन हैं डॉ. शिवदर्शन मलिक
डॉ शिवदर्शन मलिक मूलत: रोहतक जिला के मदीना गांव के रहने वाले हैं. ग्रामीण परिवेश से आने वाले शिवदर्शन शुरुआत से ही खेती, पशुपालन से जुड़े रहे हैं. हिसार के एक गुरुकुल से स्कूली शिक्षा लेनेवाले शिव केमिस्ट्री में पीएचडी कर चुके हैं और कुछ समय तक प्रोफेसर के तौर पर पढ़ाया भी है। प्रोजेक्ट के सिलसिले में वे कई देशों का दौरा भी कर चुके हैं।
कैसे आया गोबर की ईंट और प्लास्टर का आइडिया
पर्यावरण, रिन्युएबल एनर्जी और सस्टेनेबिलिटी पर वे काम करना चाहते थे और ऐसे में वर्ष 2000 में IIT दिल्ली के साथ मिलकर, गोशालाओं से निकलने वाले वेस्ट और एग्री-वेस्ट से ऊर्जा बनाने के प्रोजेक्ट पर काम किया। डा. शिवदर्शन का कहना है कि कुछ प्रोजेक्ट्स के सिलसिले में वे अमेरिका गए थे। वहां उन्होंने भांग के पत्तों में चूना मिलाकर हैमक्रिट बनाने और उससे घर तैयार करते हुए देखा. वहीं से उन्हें आइडिया आया कि वे भी गाय के गोबर का इस्तेमाल कर प्लास्टर तैयार कर सकते हैं।
बहुत कम आता है खर्च
डॉ. मलिक बताते हैं कि गोबर से बनी एक ईंट का वजन करीब 1.78 किलो तक होता है. इसे बनाने में प्रति ईंट महज 4 रुपये खर्च आता है. गोबर की ईंट और वैदिक प्लास्टर से बनाए जाने वाले घर का इसका खर्च 10 से 12 रुपये स्क्वायर फिट आता है, जो सीमेंट वाले मकानों की तुलना में करीब 6 से 7 गुना तक कम होता है।
वैदिक प्लास्टर से कमा लिए 10 लाख रुपये
राजस्थान के बीकानेर स्थित डॉ मलिक के कारखाने में सलाना पांच हजार टन “वैदिक प्लास्टर” बनाया जा रहा है। डॉ मलिक का कहना है कि देशभर में उनके 15 से ज्यादा डीलर्स हैं और पिछले साल केवल वैदिक प्लास्टर से उन्होंने 10 लाख रुपये की कमाई की है। वे बताते हैं कि हजारों घरों में वैदिक प्लास्टर लगाया जा चुका है। वे गोबर से ईंट भी तैयार करते हैं, लेकिन उनका फोकस फिलहाल ईंट का बिजनेस करने का नहीं है। बल्कि वे लोगों को ईंट बनाने की ट्रेनिंग दे रहे हैं।
कुछ ऐसे बनते हैं गाय के गोबर से मिश्रित मकान
भारत में करीब 300 सौ से ज्यादा लोग देसी गाय के वैदिक प्लास्टर से घर बना रहे हैं। जलवायु परिवर्तन का असर हमारे घरों में भी पड़ता है। पहले मिट्टी के बने कच्चे घरों में ऊष्मा को रोकने की क्षमता थी। ये कच्चे मकान सर्दी और गर्मी से बचाव करते थे लेकिन बदलते समय के साथ ये कच्चे मकान अब व्यवहारिक नहीं हैं। पक्के मकानों को कैसे कच्चा बनाया जाए जिसमें ऊष्मा को रोकने की क्षमता हो इसके लिए दिल्ली से 70 किलोमीटर दूर रोहतक में रहने वाले डॉ शिवदर्शन मलिक ने लम्बे शोध के बाद देसी गाय का एक ऐसा ‘वैदिक प्लास्टर’ बनाया जो सस्ता होने के साथ ही गर्मी में ठंडा और सर्दी में गर्म रखता है। डॉ. शिवदर्शन मलिक ने रसायन विज्ञान से पीएचडी करने के बाद आईआईटी दिल्ली, वर्ल्ड बैंक जैसी कई बड़ी संस्थाओं में बतौर सलाहकार कई वर्षों तक काम किया है। इस दौरान कई जगह भ्रमण के दौरान कच्चे और पक्के मकानों का फर्क महसूस किया और तभी इसकी जरूरत महसूस की।
गाय के गोबर को शिवदर्शन करते हैं संरक्षित
वर्ष 2005 से वैदिक प्लास्टर की शुरुआत करने वाले शिवदर्शन मलिक का कहना है, “हमें नेचर के साथ रहकर नेचर को बचाना होगा, जबसे हमारे घरों से गोबर की लिपाई का काम खत्म हुआ तबसे बीमारियां बढ़नी शुरु हुईं। देसी गाय के गोबर में सबसे ज्यादा प्रोटीन होती है। जो घर की हवा को शुद्ध रखने का काम करता है, इसलिए वैदिक प्लास्टर में देसी गाय का गोबर लिया गया है।” उन्होंने बताया, “हमारे देश में प्रतिदिन 30 लाख टन गोबर निकलता है। जिसका सही तरह से उपयोग न होने से ज्यादातर बर्वाद होता है। देसी गाय के गोबर में जिप्सम, ग्वारगम, चिकनी मिट्टी, नीबूं पाउडर आदि मिलाकर इसका वैदिक प्लास्टर बनाते हैं जो अग्निरोधक और उष्मा रोधी होता है। इससे सस्ते और इको फ्रेंडली मकान बनते हैं, इसकी मांग ऑनलाइन होती है। हिमाचल से लेकर कर्नाटक तक, गुजरात से पश्चिमी बंगाल तक वैदिक प्लास्टर से 300 से ज्यादा मकान बन चुके हैं।”
ये हैं वैदिक प्लास्टर से बने मकानों के फायदे
इस तरह के प्लास्टर से बने मकानों में नमी हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगी। इसमें तराई की झंझट नहीं रहती। घर प्रदूषण से मुक्त होते हैं। यह ईंट, पत्थर किसी भी दीवार पर सीधा अन्दर और बाहर लगाया जा सकता है। एक वर्ग फुट एरिया में इसकी लागत 20 से 22 रुपए आती है। डॉ शिवदर्शन का कहना है, “ये मकान हमारे सेहत के लिहाज से उपयोगी होते हैं। मकान से हानिकारक कीटाणु और जीवाणु भाग जाते हैं। अच्छी सेहत के साथ ही सकारत्मक उर्जा भी मिलती हैं, ये ध्वनिरोधक व अग्निरोधक होते हैं।”