नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है। मां ब्रह्मचारिणी ज्योतिस्वरूपा हैं और भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी करती हैं तो आइए हम आपको मां ब्रह्मचारिणी की आराधना के बारे में बताते हैं।
जाने मां ब्रह्मचारिणी के रूप के बारे में-
देवी ब्रह्मचारिणी मां दुर्गा का दूसरा रूप का हैं। मां ब्रह्मचारिणी पूर्ण रूप से ज्योतिमय हैं। देवी संसार से विरक्त और सदैव शांत रहकर तपस्या करती हैं। वर्षों तक इन्होंने वन में कठोर साधना की है। कठोर तपस्या की वजह से रूप तेजवान है और चेहरे पर आभा विद्यमान रहती है। देवी के हाथों में सदैव अक्ष माला और कमंडल विद्यमान रहता है। देवी मां साक्षात ब्रह्म का स्वरूप हैं और इन्हें तपस्या की मूर्ति भी माना जाता है। देवी की उपासना कर भक्त सिद्धि पा सकते हैं।
देवी ब्रह्मचारिणी से जुड़ी पौराणिक कथा-
पौराणिक कथाओं के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी का जन्म हिमालय के राजा पर्वत के घर हुआ था। पिता पर्वत तथा माता नैना ने अपनी बेटी को बहुत प्यार से पाला था। एक नारद ऋषि वहां से गुजरे तो हिमालय राज पर्वत ने अपनी बेटी भविष्य के बारे में पूछा। बेटी के भविष्य के बारे में पूछने पर नारद जी ने बताया कि कन्या के विवाह में अवरोध उत्पन्न हो सकता है और कई तरह की अड़चनें आ सकती हैं। इस पर हिमालय राज यह सुनकर बहुत दुखी हुए उन्होंने नारद से इसका उपाय पूछा। तब नारद जी ने कहा अगर कन्या कई वर्षों तक जप-तप करें तो समस्या खत्म हो सकती है। इसके बाद मां ब्रह्मचारिणी ने कई वर्षों तक तक किया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी उन्हें वरदान दिया और शिव जी उन्हें पति के रूप में मिले।
पूजा विधि-
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का विशेष विधान है। सबसे पहले प्रातः स्नान कर साफ कपड़े पहन लें। उसके बाद देवी को स्नान करा कर धूप, दीप, चंदन, अक्षत और रोली चढ़ाएं। मां को गुड़हल के फूल बहुत पसंद हैं इसलिए गुड़हल के फूलों की माला अर्पित करें। देवी मां को पंचामृत से स्नान कराएं। पंचामृत बनाने के लिए दूध, दही, शर्करा, घी और शहद का इस्तेमाल करें। स्नान के बाद प्रसाद चढ़ा कर पान, सुपारी भी अर्पित करें। उसके बाद कलश देवता की पूजा करें। साथ में नवग्रह की भी पूजा करें। देवी की आराधना के बाद नवग्रह की पूजा करें और दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। सच्चे मन से पूजा करने से भक्तों पर मां की असीम अनुकम्पा बनी रहती है।
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व-
ब्रह्मचारिणी शब्द ब्रह्म तथा आचरण से मिलकर बना है जिसका अर्थ है तपस्या का आचरण करने वाला। इस प्रकार मां का रूप भी उनके नाम के अनुरूप है। देवी शांत, स्वच्छ और श्वेत वस्त्र धारण की रहती हैं। उनके एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में कमंडल रहता है। मां की आराधना से जीवन में संयम, जप, तप, त्याग और वैराग्य की वृद्धि होती है। साथ ही इनकी पूजा से आत्मविश्वास, उत्साह और साहस मिलता है और मनुष्य कर्मठ बनता है। देवी की साधना करने जीवन का अंधकार मिट जाता है और अलौकिक प्रकाश आता है।