एक के बाद एक मिलती हार के बाद बहुजन समाज पार्टी के लिए यह जरूरी हो गया था कि वह अपनी चुनावी रणनीति में परिवर्तन करे। तमाम कोशिशों के बाद भी मुस्लिम वोटर बसपा के पाले में आने नहीं रहे थे।इसलिए मायावती को भी लगा होगा कि मुस्लिम वोटरों को लुभाने की बजाए यदि करीब 52 फीसदी पिछड़ा वर्ग के वोटरों में से अति पिछड़ा वोट बैंक में वह संेधमारी करने में सफल हो जाए तो पार्टी का ज्यादा भला हो सकता है।
बताते चलें कि उत्तर प्रदेश में सरकारी तौर पर जातीय आधार पर पिछड़ा वोट बैंक का कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है लेकिन राजनैतिक दलों के आंकड़ों पर गौर करें तो यूपी में सबसे बड़ा वोट बैंक पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का है। लगभग 52 फीसदी पिछड़ा वोट बैंक में 43 फीसदी वोट बैंक गैर यादव बिरादरी का है,जो कभी किसी पार्टी के साथ स्थाई रूप से नहीं खड़ा रहता है।
इतना ही नहीं पिछड़ा वर्ग के वोटर कभी समूहिक तौर पर किसी पार्टी के पक्ष में भी वोटिंग नहीं करते। चुनाव में उनका वोट जाति के आधार पर पड़ता है। यही कारण है कि छोटे हो या फिर बड़े दल, सभी की निगाहे इस वोट बैंक पर रहती है। उत्तर प्रदेश में कई ऐसे छोटे-छोटे दल मौजूद हैं जो एक वर्ग विशेष के वोट बैंक के सहारे ही अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकते और बड़े-बड़े दलों से सियासी मोलभाव करते रहते हैं।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में जब बात पिछड़ा वर्ग की आती है तो यादव को छोड़कर अन्य पिछड़ी जातियों की सियासत काफी अलग खड़ी नजर आती हैं। यादव वोटर लम्बे समय से ठीक वैसे ही समाजवादी पार्टी के साथ जुड़े हुए हैं जैसे दलित बसपा का दामन थामें हैं। मोटे तौर पर अनुमान लगाया जाए तो प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटों पर गैर यादव ओबीसी का वोट पांच लाख से लेकर साढ़े आठ लाख तक है।
विधान सभा सीटों में यह आंकड़ा एक से डे़ढ़ लाख तक रहता है जो उत्तर प्रदेश की राजनीति में अहम भूमिका अदा करता है। पिछड़ा वर्ग के वोटरों की संख्या बल के सामने बड़े-बड़े दल झुकने को मजबूर हो जाते हैं। इस वर्ग के नेताओं को तमाम दलों में आगे बढ़ने का मौका भी खूब दिया जाता है। गैर यादव ओबीसी नेताओं की बात करें, लगभग सभी दलों में इन जातियों का प्रतिनिधित्व करने वाले नेता हैं।
इनमें उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, कांगे्रस नेता श्रीप्रकाश जायसवाल, योगी सरकार में उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, स्वामी प्रसाद मौर्य, राम अचल राजभर, लालजी वर्मा, सुखदेव राजभर, आरएस कुशवाहा, नरेश उत्तम, स्वतंत्रदेव सिंह, धर्म सिंह सैनी, अनिल राजभर, विनय कटियार, अनुप्रिया पटेल, कृष्णा पटेल जैसे कई कद्दावर नेता हैं,लेकिन पिछड़ा वर्ग में जितनी तेजी के साथ यादव और कुर्मी लोगों की हैसियत बढ़ी, उसके मुकाबले अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग तरक्की नहीं कर सके। इसी लिए यादव और कुर्मी बिरादरी को छोड़कर ओबीसी वर्ग के बाकी जातियों के लोग पिछले कई दशकों से आरक्षण के वर्गीकरण की मांग करते आ रहे हैं।
बात यादव वोट बैंक की कि जाए तो प्रदेश में यादव वोट बैंक नौ फीसदी माना जाता है। इस वोट बैंक पर 90 फीसदी समाजवादी पार्टी का एकाधिकार माना जाता है, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में यह भ्रम कुछ हद तक टूटा। नौ फीसदी यादवों के वोट बैंक में 27 फीसदी वोट भारतीय जनता पार्टी को मिला। हालांकि, 2007 के विधानसभा चुनाव में सपा को 72 फीसदी, 2009 के लोकसभा चुनाव में एसपी को 73 फीसदी और 2012 के विधानसभा चुनाव में एसपी को 66 फीसदी वोट मिला था, लेकिन 2014 के चुनाव में एसपी को सिर्फ 53 फीसदी यादवों को वोट मिला।2017 के विधान सभा चुनाव में भी भाजपा सपा के यादव वोट बैंक में सेंधमारी करने में सफल रही थी।
गैर यादव ओबीसी वोटबैंक की बात करें, तो दूसरे नंबर पर पटेल और कुर्मी वोट बैंक आता है। यूपी की जातीय अंकगणित में सात फीसदी वोटबैंक इसी जाति का है। जातिगत आधार पर देखें तो यूपी के सोलह जिलों में कुर्मी और पटेल वोट बैंक छह से 12 फीसदी तक है। इनमें मीरजापुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, इलाहाबाद, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर और बस्ती जिले प्रमुख हैं। यादव और कुर्मी के अलावा ओबीसी वोटबैंक में करीब डेढ़ सौ और जातियां हैं, जिन्हें अति पिछड़ों की श्रेणी में रखा जाता है।
इसमें ओबीसी की कुशवाहा जाति का तेरह जिलों का वोट बैंक सात से 10 फीसदी है। इन जिलों में फिरोजाबाद, एटा, मैनपुरी, हरदोई, फर्रुखाबाद, इटावा, औरैया, कन्नौज, कानपुर देहात, जालौन, झांसी, ललितपुर और हमीरपुर हैं। ओबीसी में एक और बड़ा वोट बैंक लोध जाति का है। यूपी के 23 जिलों में लोध वोटरों का दबदबा है। इनमें रामपुर, ज्योतिबा फुले नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़, महामायानगर, आगरा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, पीलीभीत, लखीमपुर, उन्नाव, शाहजहांपुर, हरदोई, फर्रुखाबाद, इटावा, औरैया, कन्नौज, कानपुर, जालौन, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर, महोबा ऐसे जिले हैं, जहां लोध वोट बैंक पांच से 10 फीसदी तक है।