राज्यों में मजबूती के आधार पर दलों को नेतृत्व करने के तृणमूल कांग्रेस (TMC) के सुझाव को विपक्षी एकता के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है, लेकिन इसका जमीन पर उतरना इतना आसान भी नहीं है। विपक्ष के ज्यादातर दलों को यह फॉर्मूला मंजूर हो सकता है लेकिन कांग्रेस इसके लिए तैयार नहीं होगी।
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कर्नाटक में कांग्रेस की शानदार जीत के बाद ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने सोमवार को कहा कि 2024 में विपक्षी दलों को राज्यों में मजबूती के अनुसार चुनाव लड़ना चाहिए। यानी जिस राज्य में जो पार्टी मजबूत है, वह नेतृत्व करे तथा बाकी विपक्षी दल उसका समर्थन करें। उनके सुझाव को यदि माना जाए तो पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस चुनाव मैदान में उतरेगी और अन्य दल उसका समर्थन करेंगे। दिल्ली में आप, उत्तर प्रदेश में सपा, कर्नाटक में कांग्रेस, तमिलनाडु में डीएमके आदि।
ममता के सुझाव पर कांग्रेस की तरफ से अधीर रंजन की जो प्रतिक्रिया आई है, उसमें उन्होंने ममता के प्रस्ताव पर यह कहकर सवाल खड़े किए हैं कि कर्नाटक चुनाव से पूर्व उन्होंने कांग्रेस का समर्थन क्यों नहीं किया? दरअसल, पिछले कुछ चुनावों के दौरान यह देखा गया कि तृणमूल कांग्रेस उन कई राज्यों में जोर-शोर से चुनाव मैदान में उतरी जहां कांग्रेस मजबूत स्थिति में थी।
जैसे गोवा, मेघालय आदि। मेघालय में इसी साल हुए चुनाव में तृणमूल ने करीब 14 फीसदी वोट लेकर पांच सीटें जीती और कांग्रेस को सत्ता से दूर धकेल दिया। कांग्रेस भी पांच सीटों पर सिमट गई। गोवा में चुनाव से पूर्व टीएमसी ने पूर्व मुख्यमंत्री फ्लेरियो समेत कई कांग्रेस नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया था। ऐसे में कांग्रेस का ममता पर सवाल उठाना लाजिमी है।
राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार दुबे के अनुसार, भाजपा से मुकाबले के लिए ममता का सुझाव व्यावहारिक है। इससे विपक्ष को मिलने वाले करीब दो तिहाई मतों का सदुपयोग होगा और उसकी सीटें बढ़ेंगी। दरअसल, पिछले चुनाव में भाजपा को कुल 37 फीसदी वोट मिले हैं जबकि 63 फीसदी मत अन्य दलों को मिले थे।