करवा चौथ (Karva Chauth) पति और पत्नी के बीच के प्रेम को दर्शाने वाला बेहद निष्ठापूर्ण व श्रद्धा भाव से उपवास रखने का त्योहार है। 20 अक्टूबर को देशभर में धूमधाम से इस त्योहार को मनाया जायेगा। प्राचीनकाल से महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करती चली आ रही हैं। इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की दीर्घायु के लिए व्रत करती है और ईश्वर से आशीर्वाद प्राप्त करती है। करवा चौथ व्रत की अनेकों पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं।
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करवा चौथ व्रत की कथा
पौराणिक काल से यह मान्यता चली आ रही है कि पतिव्रता सती सावित्री के पति सत्यवान को लेने जब यमराज धरती पर आए तो सत्यवान की पत्नी ने यमराज से अपने पति के प्राण वापस मांगने की प्रार्थना की। उसने यमराज से कहा कि वह उसके सुहाग को वापस लौटा दें। मगर यमराज ने उसकी बात नहीं मानी। इस पर सावित्री अन्न जल त्यागकर अपने पति के मृत शरीर के पास बैठकर विलाप करने लगी। काफी समयि तक सावित्री के हठ को देखकर यमराज को उस पर दया आ गई। यमराज ने उससे वर मांगने को कहा।
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इस पर सावित्री ने कई बच्चों की मां बनने का वर मांग लिया। सावित्री पतिव्रता नारी था और अपने पति के अलावा किसी के बारे में सोच भी नहीं सकती थी तो यमराज को भी उसके आगे झुकना पड़ा और सत्यवान को जीवित कर दिया। तभी से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए महिलाएं सावित्री का अनुसरण करते हुए निर्जला व्रत करती हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में वीरवती नाम की एक सुंदर और धर्मनिष्ठ राजकुमारी थी।वह अपने सात भाइयों की इकलौती बहन थी. विवाह के बाद, वीरवती ने पहली बार अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखा. उसने दिनभर अन्न-जल ग्रहण नहीं किया और पूरी श्रद्धा के साथ व्रत का पालन किया।
लेकिन दिन ढलते-ढलते भूख और प्यास के कारण वह अत्यधिक कमजोर हो गई। वीरवती की यह दशा देखकर उसके भाई चिंतित हो गए. वे अपनी बहन की हालत देखकर दुखी हो गए और उसे व्रत तोड़ने के लिए मनाने लगे। लेकिन वीरवती ने कहा कि जब तक चंद्रमा उदित नहीं होता, वह व्रत नहीं तोड़ेगीं।
वीरवती के भाइयों ने अपनी बहन की हालत देखकर एक उपाय सोचा। उन्होंने पेड़ की आड़ में छल से एक दर्पण का उपयोग करके नकली चंद्रमा बना दिया. भाइयों ने वीरवती से कहा कि चंद्रमा निकल आया है और उसे देखकर व्रत तोड़ लो. वीरवती ने वह नकली चंद्रमा देखकर व्रत तोड़ दिया और जल ग्रहण कर लिया।जैसे ही उसने व्रत तोड़ा, उसे यह सूचना मिली कि उसका पति गंभीर रूप से बीमार हो गया है।
वीरवती को तुरंत आभास हुआ कि उसने चंद्रमा की पूजा किए बिना और सही समय से पहले व्रत तोड़ दिया, जिसके कारण यह अनहोनी हुई. वह अत्यधिक दुखी हुई और पश्चाताप करने लगी. अपने पति की लंबी आयु के लिए वीरवती ने दृढ़ संकल्प किया और पूरी श्रद्धा के साथ करवा चौथ का व्रत फिर से रखा. उसकी भक्ति और समर्पण से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने उसे आशीर्वाद दिया और उसका पति स्वस्थ हो गया।
महाभारत में भी एक कहानी है जो करवा चौथ से जुड़ी हुई है. जब अर्जुन युद्ध करने नीलगिरी पर्वत पर गए थे, तो द्रौपदी बहुत चिंतित थीं। उन्होंने भगवान कृष्ण से अपने पति की सुरक्षा के लिए मार्गदर्शन मांगा। कृष्ण ने उन्हें करवा चौथ का व्रत रखने और शिव-पार्वती की पूजा करने की सलाह दी। द्रौपदी ने व्रत रखा।जिससे अर्जुन सुरक्षित रहे. कथाओं में इस कहानी को भी करवा चौथ से जोड़ कर देखा जाता है।
तीसरी प्रसिद्ध कथा करवा नामक महिला की है। जो अपने पति के प्रति अत्यधिक समर्पित थी। एक दिन जब उसका पति नदी में स्नान कर रहा था। तब एक मगरमच्छ ने उसे पकड़ लिया. करवा ने अपने पति की रक्षा के लिए दृढ़ संकल्प किया और मगरमच्छ को एक सूती धागे से बांध दिया। फिर उसने यमराज से प्रार्थना की कि मगरमच्छ को दंड दें और उसके पति की रक्षा करें। यमराज करवा के समर्पण से प्रभावित हुए और मगरमच्छ को दंडित किया औरउसके पति को दीर्घायु का आशीर्वाद दिया. इस तरह की और भी पौराणिक कथाएं हैं जिन्हें करवा चौथ के व्रत से जोड़कर देखा जाता है।
करवा चौथ एक ऐसा त्योहार है जो विवाहित महिलाओं के लिए बेहद खास होता है. यह त्योहार पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना के लिए मनाया जाता है. माना जाता है कि इस व्रत को रखने से पति की उम्र लंबी होती है. करवा चौथ का व्रत पति-पत्नी के बीच प्रेम और विश्वास को बढ़ाता है. यह व्रत दोनों के बीच के बंधन को और मजबूत बनाता है।
यह व्रत महिलाओं को सौभाग्य प्रदान करता है। माना जाता है कि इस व्रत को रखने से महिलाएं सुखी और समृद्ध जीवन जीती हैं। करवा चौथ भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा है और पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है. यह त्योहार महिलाओं को एक साथ लाता है और उन्हें एक-दूसरे के साथ जुड़ने का मौका देता है। नोट-लेख पौराणिक कथाओं पर आधारित है।
रिपोर्ट-जय प्रकाश सिंह