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ऑस्ट्रेलियाई वास्तुकार वाल्टर बर्ली ग्रिफिन को दी गई भावभीनी श्रद्धांजलि

लखनऊ। राजधानी के पेपरमिल काॅलोनी स्थित क्रिश्चियन सिमिट्री में मौजूद वास्तुकार वाल्टर बर्ली ग्रिफिन की समाधि ने लखनऊ व कैनबरा के बिच “सिस्टर सिटीज” का दर्जा प्राप्त कराने का रास्ता खोल दिया है। 71वें गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय एकता मिशन व सुमेर सेवा संस्थान के संयुक्त तत्वधान में ग्रिफिन की समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई। यह कार्यक्रम संस्थान के सचिव भारत सिंह के संयोजकत्व में आयोजित किया गया।

मिशन के अध्यक्ष डाॅ. हरमेश चौहान ने ग्रिफिन को ‘भारत-अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया का संगम‘ बताया। डाॅ. चौहान ने कहा कि 26 जनवरी को भारत अपना 71वां गणतंत्र दिवस मना रहा है वहीं इसी दिन आॅस्ट्रेलिया अपना राष्ट्र दिवस मना रहा है। डाॅ. चौहान ने कहा कि एक लिहाज से देखें तो कैनबरा और लखनऊ का करीबी नाता है, लिहाजा इन दोनों शहरों को ‘‘सिस्टर सिटीज‘‘ का दर्जा दिया जाना चाहिए। इससे इन दोनों खूबसूरत नगरों का रिश्ता और मजबूत होगा। उन्होंने कहा कि ग्रिफिन के स्मृति में आगे भी विभिन्न कार्यक्रम होते रहेंगे।

ग्रिफिन की जीवन और कार्यों पर प्रकाश डालते हुए डाॅ. चौहान ने कहा ग्रिफिन वर्ष 1935 में लखनऊ विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी का डिजाइन तैयार करने आए थे। 11 फरवरी, 1937 को 61 वर्ष की आयु में ग्रिफिन की मौत हो गई थी। वे अपने लैंडस्कैप डिजाइनिंग के लिए काफी मशहूर थे। शिकागो स्थित प्रेइरे स्कूल से प्रभावित ग्रिफिन ने अनोखी आधुनिक वास्तु शैली का विकास किया और उन्होंने अपनी पत्नी मैरियोन माहोनी ग्रिफिन के साथ मिलकर काम किया। डाॅ. चौहान ने कहा कि 28 सालों में ग्रिफिन दंपति ने 350 से अधिक इमारतों, लैंडस्केप और शहरी परियोजनाओं के डिजाइन तैयार किया। श्रधांजलि समारोह में मुख्य रूप से भारत सिंह, डाॅ. संदीप अग्रवाल, गोपालजी, सतीश दीक्षित, सुरेन्द्र, अश्वनी जायसवाल, संतोष कुमार सिंह, दौलत अली गौसी, अतुल मोहन सिंह गहरवार, श्वेता सिंह, सलीम, मेहदी हसन, एडविन मुख्य रूप से उपस्थित थे।

ग्रिफिन कब आए चर्चा में

पिछले दिनों आयोजित कॉमनवेल्थ पार्लियामेंट्री एसोसिएशन ऑफ इंडिया रीजन की सातवीं कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने आए ऑस्ट्रेलिया की लेजिसलेटिव असेंबली की येर्राबी सीट से भारतीय मूल के विधायक दीपक राज गुप्ता ने लखनऊ में ग्रिफिन की समाधि की जानकारी दी। अपने दौरे में गुप्ता ने यह बताया कि ऑस्ट्रेलियन कैपिटल टेरिटरी के मुख्यमंत्री एंड्रयू बर की तरफ से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक प्रस्ताव भी सौंपा है। उनका कहना है किक ग्रिफिन के कार्यों की एक प्रदर्शनी भी लगाई जा सकती है और ऑस्ट्रेलिया की सरकार इसके लिए वित्तीय सहयोग भी कर सकती है। गुप्ता ने इच्छा भी जताई कि उत्तर प्रदेश सरकार ग्रिफिन की समाधि के पास एक प्रतिमा भी स्थापित कराए और उसके शिलापट पर उनकी उपलब्धियों और कार्यों का विवरण भी लिखा जाए। अगर पर्यटन विभाग उस प्रतिमा के बारे में पर्यटकों को बताए कि यह कैनबरा शहर के डिजाइनर की मूर्ति है तो इससे सैलानियों में उसके प्रति आकर्षण पैदा होगा।

ग्रिफिन के बारे में विस्तार से चर्चा इसके पूर्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वर्ष 2014 में आॅस्ट्रेलिया में आयोजित जी20 की शिखर सम्मेलन में हुआ था। मोदी ने अपने आस्ट्रेलियाई समकक्ष टोनी एबट तथा अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से अमेरिकी आर्किटेक्ट ‘‘वाल्टर बर्ली ग्रिफिन‘‘ की दिलचस्प कहानी साझा की थी।

लखनऊ से था गहरा रिश्ता

वाल्टर बर्ली ग्रिफिन वर्ष 1935 में लखनऊ विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी का डिजाइन तैयार करने आए थे। उन्होंने अपनी जिंदगी के अंतिम 15 महीने नवाबों के शहर ही बिताए। ग्रिफिन जिस समय सिडनी डेवलपमेंट ऐसोसिएशन के साथ मिलकर काम कर रहे थे। उसी समय उन्हें लखनऊ में लखनऊ विश्वविद्यालय के पुस्कालय का डिजाइन तैयार करने का सौदा हासिल किया। ग्रिफिन लविवि के पुस्कालय का डिजाइन कर स्वदेश जान लौटना का मन बना रहे थे। इसी बिच उन्हे एक-एक कर 40 से भी अधिक इमारत डिजाइन करने की जिम्मेदारी मिल गई। जिसमें लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ की इमारत का डिजाइन, महमूदाबाद के राजा के संग्रहालय और पुस्तकालय का डिजाइन, जहांगीराबाद के राजा के लिए जनाना (महिलाओं के लिए कमरे) का डिजाइन, पायनियर प्रेस बिल्डिंग, नगर निगम कार्यालयों का डिजाइन, कई निजी मकानों का नक्शा तथा किंग जार्ज पंचम के स्मारक का डिजाइन प्रमुख थे। ग्रिफिन ने 1936-37 में यूनाइटेड प्रोविंसिस एग्जीबिशन आॅफ इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर के डिजाइन का करार भी हासिल कर लिया था। 160 एकड़ में फैली इस परियोजना में 53 इमारतों का नक्शा बनाने का काम शामिल था जिसमें स्टेडियम, एरिना, मस्जिद, इमामबाड़ा, आर्ट गैलरी, रेस्त्रां, बाजार, पैविलियन और टावर प्रमुख थे। हालांकि इस विशाल योजना का कुछ ही हिस्सा पूरी तरह बन पाया।

ग्रिफिन भारत की संस्कृति और इसके वास्तुशिल्प से बेहद प्रभावित थे। उनकी पत्नी मैरियोन कई परियोजनाओं में अपने पति की मदद करने के लिए अप्रैल 1936 में लखनऊ चली गयीं थीं। ये 1937 के शुरूआती दिनों की बात है। ग्रिफिन का लखनऊ के किंग जार्ज अस्पताल में पिताश्य का आपरेशन हुआ और उसके पांच दिन बाद पेट की झिल्ली के रोग के कारण उनकी मौत हो गयी। ग्रिफिन को निशातगंज पेपर मिल्स काॅलोनी के क्रिश्चियन सिमिट्री में दफनाया गया। यहां उनकी समाधि बनी हुई है।

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