दिल्ली। आज दिल्ली दुनिया में सबसे अधिक प्रदूषित शहर की श्रेणी में आ गया है। दिल्ली की आबादी 2.5 करोड़ के आसपास पहंच चुकी है। अगर आबादी इसी तरह से बढ़ती रही तो दिल्ली में जीना मुहाल हो जायेगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा 2.5 पी.एम का औसत स्तर 5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है जबकि यूरोपियन यूनियन ने. 2.5 पी.एम प्रदूषण का स्तर 25 माइक्रोग्राम प्रतिघन मीटर निर्धारित किया है। वही अमेरिका द्वारा इसका स्तर 12 माइक्रोग्राम निर्धारित किया गया है।
दिल्ली में सामान्यतः2.5 पी.एम का स्तर 400 से उपर चल रहा है आजकल तो 500 से भी ज्यादा पहुंच गया है। यह स्तर अमेरिका से लगभग 40 गुना औऱ विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मानक से 45-50 गुना ज्यादा है। इस प्रदूषण से कैंसर,दिल की बिमारी, स्थमा के अलावे अन्य कई घातक बिमारी होने के खतरे कई गुना बढ़ जाता है । भारी यातायात,स्थानीय उद्योग,थर्मल पावर प्लांट एवं झूग्गी में कोयला पर खाना बनाने से दिल्ली में वायू प्रदूषण के स्तर के बढ़ाने में काफी मदद मिलता है। इसके साथ ही साथ पंजाब,हरियाणा एंव उ.प्र. में पराली जलाने से दिल्ली का हाल औऱ बेहाल हो जाता है।
दिल्ली में परिवहन की बात करे तो नीजि औऱ कर्मशियल पंजीकृत गाड़ियों के संख्या 90 लाख के आसपास है। जिसमें 30-32 लाख कार आ 56-58 लाख दुपहिया वाहन है। प्रदूषण फैलानें में सड़क पर ट्रक के बाद दुपहिया वाहन से 18-19 प्रतिशत और कार से 14-15 प्रतिशत दिल्ली की हवा को खराब करने में योगदान है। दिल्ली में सन 2011 में दि.प.नि. के पास 6,000 से अधिक बस थी जो सन 2017-18 तक घटके 4000 रह गयी। जिससे दिल्ली की सार्वजनिक परिवहन ब्यवस्था काफी दयनीय हाल में है। सरकार पिछले 3-4 वर्षों में कोई खास पहल नहीं कर सकी जिससे दूपहिया औऱ नीजि वाहनों पर आत्मनिर्भरता बढ़ी है। जिससे प्रदूषण काफी तेजी से बढा है। सरकार अब पुरानी गाड़ियों को सड़क से हटा रही है और इसके बदले इलेक्ट्रीक कार,बस और बाइक ला रही है जो एक सही कदम है पर यह नकाफी है। ए.सी.आऱ में जल रही पराली को भी रोका जाये इसके लिए केन्द्र एंव राज्य सरकारे मिलकर कोई ठोस कदम उठाये। ताकि इसके स्थायी समाधान हो सके।
भारत की भूमि दुनिया की भूमि का 2.4 प्रतिशत है जबकि आबादी लगभग 18 प्रतिशत है । इस कारण प्रति ब्यक्ति संसाधन पर दबाव अन्य देशों की तुलना में भारत में काफी ज्यादा है जिस कारण तेजी से शहरीकरण औऱ औद्योदिकरण हो रहा है। सन् 1947 की तुलना में वर्ष 2002 तक पानी की उपलब्धता 70 प्रतिशत घटके 1822 घनमीटर प्रति ब्यक्ति रह गया है। अगर इसी तरह संसाधन का दोहन तेजी से होता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब मावव जल के बिना मच्छली की तरह तड़प-तड़प के एक दिन जान दे देगा। भारत में वन के औसत भोगोलिक क्षेत्रफल 24.62 प्रतिशत है जे समान्य से 33 प्रतिशत के मनदंड से काफी कम है । ऐसे में भी 50 प्रतिशत वन म.प्र.(20.7) औऱ पूर्वोतर के राज्यो में (25.7) प्रतिशत है बाकी के राज्य वन के मामलें में काफी निर्धन हैं। वन की कमी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है। तभी तो कुछ वर्ष पहले तामिलनाडू औऱ केरल जल तांडव से ग्रस्त थे।
प्रदूषण के मामलें में केन्द्र औऱ राज्य सरकार नियम तो बहुत बनाये हैं पर सख्ती से अमल नहीं हो पाने के कारण राजधानी दिल्ली में प्रदूषण का ग्राफ काफी तेजी से बढ़ रहा है। आजकल दिल्ली में 2.5 पी.एम का औसत स्तर सारी सीमायें(500 से ज्यादा यानी खतरनाक स्तर) लांघ चुकी है। यहां पर सार्वजनिक परिवहन ब्यवस्था काफी लचर है। आम आदमी के नई सरकार बनी तो लोग सोचने लगे की काफी सुधार होगा। पर यह सरकार पिछली सरकार से भी फिसड्डी साबित हुई। सुप्रीम कोर्ट के पुर्व मुख्य न्यायधीश जस्टीश टी.एस. ठाकुर के फटकार के बाद दिल्ली के सरकार फौरी तौर पर 2016 मे 1 जनवरी से 15 दिन के लिए सभी गाड़ियों को ओड औऱ इभेन नंबर एक-एक दिन चलाया गया।
इस बीच सरकारी एवं नीजि स्कूल को भी बंद रखा गया औऱ हजारों नीजि बस भी चलाया गया पर नतीजा कुछ खास नहीं निकला। क्योंकि यह एक स्थाई समाधान नहीं है। इसलिए जरुरी है कि दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन ब्यवस्था को दुरुस्त किया जाये ,साथ ही साथ मैट्रो फीडर बस सेवा भी उचित संख्या में चलायी जाये ताकि लोगों का नीजि गाड़ी (कार एवं बाइक)पर से आत्मनिर्भरता कम हो सके। औऱ नियम का सख्ती से अनुपालन भी हो। लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरुक भी किया जाये। दिल्ली में जगहृ-जगह लगने वाले जाम के भी खत्म(कम) किया जाये। ताकि वायू प्रदूषण को कम किया जा सके। राजनीतिज्ञ लोग के वोट के राजनीति से बाहर आके देशहित और जनहित में कुछ करने का साहस दिखाना होगा तभी पर्यावरण से त्रस्त दिल्ली के जनता का भला हो सकेगा।
एन.सी.आर में पहली से आंठवी तक स्कूल को कुछ दिनों के लिए बंद कर दिया गया है। यह प्यास लगने परकुआं खोदने के समान है। अब सुप्रीम कोर्ट ,केन्द्र औऱ राज्य सरकारे जनता के हितों की रक्षा खातिर कुछ ठोस कदम उठा सके तो उठाये। वरना सरकारी रवैया औऱ जनता के रुख को देख के दिल्ली से प्रदूषण के दानव से निजात मिलना इतना आसान नहीं दिख रहा है। सरकारें स्थायी समाधान ढ़ूढ़नें की कोशिश करे हल अवश्य निकलेगा।