पितृ पक्ष में नवमी का श्राद्ध बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। इस दिन विवाहित महिलाओ का श्राद्ध करने का विधान है। मान्यता है कि पिृत पक्ष की नवमी तिथि को विवाहित महिलाओं का श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और अपना आर्शीवाद प्रदान करती हैं।
नवमी श्राद्ध की विधि और नियम
इसे मातृ नवमी या सौभाग्यवती नवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन परिवार की उन महिलाओं की पूजा और श्राद्ध कर्म किया जाता है जिनका निधन हो चुका है। नवमी के दिन मां का श्राद्ध करने से जातक के सभी कष्ट दूर होते हैं और इस दिन श्राद्ध का पुण्यलाभ सबसे ज्यादा होता है।
मान्यता है कि इस दिन श्राद्ध करने से माताओं का आशीर्वाद मिलता है और श्राद्ध करने वाले व्यक्ति की सभी मनोकानाएं पूरी होती हैं। पितृ पक्ष की मातृ नवमी को सौभाग्यवती नवमी भी कहते हैं। इस दिन मातृ ऋण से भी मुक्ति पाई जा सकती है। मान्यता है कि जो पूर्वज जिस तिथि को परलोक सिधारता है उसी तिथि पर उसका श्राद्धकर्म किया जाता है, लेकिन स्त्रियों के लिए ऐसा नहीं है। स्त्री का श्राद्ध नवमी तिथि को करना ज्यादा श्रेयस्कर माना गया है।
मातृ नवमी क्या है
आज के दिन मां,दादी और नानी की पूजा की जाती है। निधन के बाद वे सभी पितर बन जाते हैं उन्ही की तृप्ति के लिए श्राद्ध करते हैं। ऐसा करने से वो आपसे खुश हो जाएंगे और आपके परिवार में सुख-समुद्धि और कल्याण का आर्शीवाद देते हैं।
मातृ नवमी में पूजा की विधि
नवमी के दिन घर की महिलाओं को व्रत रखना चाहिए। इसके बाद नहा कर के निवृत होकर घर के दक्षिण दिशा में हरा वस्त्र बिछा दें और महिला पितरों की तस्वीर लगा दें। इसके बाद तिम मिल हुआ जल से तर्पण करें और तेल का दीपक जलाएं।इसके बाद तुलसी का पत्ता चढ़ाएं और खीर का भोग लगाएं। आपको विवाहित महिलाओं और ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। कहते हैं कि जिसने भी इस दिन श्राद्ध किया है, उसे श्रीमद्भागवत गीता के 9 वें अध्याय का पाठ करना चाहिए। नवमी श्राद्ध जीवन में धन, संपत्ति और ऐश्वर्य प्रदान करने वाला माना गया है।