• लोक देवताओं में एक राजस्थान के भगवान देवनारायण के प्रति लोगों में है अगाध आस्था
• भगवान देव नारायण ने जनहित के बहुत से काम किये, लोगों के असाध्य रोग भी दूर किए
• आज भीलवाड़ा से गुर्जर मतदाताओं को साधेंगे PM मोदी
प्रधानमंत्री 28 जनवरी को भगवान देवनारायण के जन्म स्थान मालासेरी डूंगरीक के दौरे पर हैं, जो गुर्जर समुदाय का एक पवित्र स्थल है। गुर्जर समाज के प्रदेशभर से कई संतों को कार्यक्रम में बुलाया गया है। बताते चलें कि राजस्थान देश के 10 उन राज्यों में है जहां इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं। यहां साल के अंत में चुनाव होंगे। इसे लेकर राज्य की सत्ताधारी कांग्रेस और मुख्य विपक्षी भाजपा दोनों की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। प्रधानमंत्री मोदी 28 जनवरी को भीलवाड़ा में एक जनसभा को संबोधित करेंगे। बीते चार महीने में प्रधानमंत्री का यह तीसरा राजस्थान दौरा है। इस रैली से भाजपा पूर्वी राजस्थान और गुर्जर बाहुल्य क्षेत्र को साधने की कोशिश करेगी। राजनीतिक क्षेत्र में इस बात की चर्चा है कि इस क्षेत्र में प्रधानमंत्री की रैली वहां के चुनावी समीकरण साथने की कोशिश हो सकती है। ऐसे में क्यों इस रैली को गुर्जर मतदाताओं को साधने की कोशिश कहा जा रहा है? पहले इन सीटों पर क्या नतीजे रहे हैं? भाजपा को प्रधानमंत्री की रैली से क्या उम्मीद है? 2018 में गुर्जर बहुल कितनी सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी? आइये समझते हैं इन सवालों के मायने को।
पीएम मोदी की रैली के निहितार्थ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 जनवरी को राजस्थान के भीलवाड़ा के दौरे पर हैं। मोदी यहां भगवान देवनारायण के जन्म स्थान मालासेरी डूंगरी का दौरा करेंगे जो गुर्जर समुदाय का एक पवित्र स्थल है। प्रदेश भाजपा के मुताबिक, मालासेरी डूंगरी में भगवान देवनारायण के 1111वें प्रकटोत्सव पर पीएम मोदी एक जनसभा को संबोधित करेंगे। गुर्जर समाज के प्रदेशभर से कई संतों को कार्यक्रम में बुलाया गया है। बीजेपी संगठन के कार्यकर्ता और गुर्जर समाज के सामाजिक कार्यकर्ता संयुक्त रूप से कार्यक्रम को बड़ा बनाने की तैयारियों में जुटे हैं। पीएम मोदी के दौरे से राजस्थान के मालासेरी डूंगरी को देश में नई पहचान मिलने की उम्मीद है। साथ ही मोदी के इस दौरे से गुर्जर समाज को सामाजिक तौर पर भी बड़ा संदेश देने की कोशिश है।
भारत सांस्कृतिक विविधताओं वाला देश है। जहां संस्कृति व समाज के अनुसार लोक देवी-देवताओं की पूजा व उपासना की प्राचीन परंपरा है। इन्हीं लोक देवताओं में एक राजस्थान के भगवान देवनारायण के प्रति लोगों में अगाध आस्था है। जो मुख्य रूप से गुर्जर समाज के लोकदेवता हैं, लेकिन अन्य समाज भी उनके प्रति अपार श्रद्धा रखता है। आज हम उन्हीं भगवान देवनारायण का इतिहास बताने की कोशिश कर रहे हैं, जिन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। उनकी ख्याति व आस्था का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत सरकार ने 2 सितम्बर 1992 को देवनारायण की फड़ व 3 सितम्बर 2011 को भगवान देवनारायण पर पांच रूपये का डाक टिकट जारी किया था।
भगवान देव नारायण का इतिहास
राजस्थान के प्रमुख लोक देवता भगवान देवनारायण का जन्म भीलवाड़ा जिले की आसींद तहसील के मालासेरी गांव में बगड़ावत कुल के नागवंशीय गुर्जर परिवार में हुआ था। हालांकि इनकी जन्म तिथि को लेकर अलग अलग मत है, फिर भी तत्कालीन राजवंशों, प्रमाणों व कथाओं के अनुसार उनका जन्म विक्रम संवत 1097 की माघ शुक्ल सप्तमी को माना जाता है। इतिहासकारों के अनुसार, बगड़ावतों को चौहान शासकों ने आसींद से अजमेर के मसूदा तक खारी नदी के आसपास की गोठा की जागिर दी थी। जहां बगड़ावत वंश एकता व वीरता के प्रतीक बन गए। ऐसा माना जाता है कि इस कुल में पहले राजपुरूष हरिराव थे। जिनके पुत्र बाघराव की 12 रानियां व 24 बेटे थे। इनके पुत्र ही पहले बाघ रावत और बाद में बगड़ावत कहलाए। इनमें सवाई भोज उर्फ भोजा बड़े वीर थे। जो भिनाय के शासक दुर्जनसाल से युद्ध करते हुए अपने 23 भाइयों सहित वीर गति को प्राप्त हो गए थे।
इसी काल में उनकी पत्नी सोढी खटानी ने दिव्य पुत्र देवनारायण को जन्म दिया। जिनका प्रारंभिक नाम उदयसिंह उर्फ ऊदल था। ‘मारवाड़ राज की मर्दुशमारी रिपोर्ट’ तथा ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार मां ने दुर्जनसाल के खतरे को देखते हुए ऊदल को अपने पीहर देवास अथवा मालवा में पालन पोषण के लिए पहुंचा दिया। यहीं अस्त्र- शस्त्र की शिक्षा लेने के साथ उन्होंने उज्जैन के शिप्रा नदी के किनारे सिद्धवट में साधना कर तंत्र-मंत्र व आयुर्वेद का ज्ञान हासिल किया। फिर अन्याय व अत्याचारों के खिलाफ संघर्ष करने का प्रण लेकर वे बगड़ावतों के मित्र छोटू भाट व माता सोडी खटानी के साथ गोठा के लिए रवाना हुए।
देवनारायण जी राजस्थान के एक लोक देवता, शासक और महान योद्धा थे। इनकी पूजा मुख्यतः राजस्थान, हरियाणा तथा मध्यप्रदेश में होती है। इनका भव्य मंदिर आसीन्द में है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा में देवनारायण जयन्ती, त्यौहार की तरह मनाया जाता है।
देवनारायण पराक्रमी योद्धा थे जिन्होंने अत्याचारी शासकों के विरूद्ध कई संघर्ष एवं युद्ध किये। वे शासक भी रहे, उन्होंने अनेक सिद्धियाँ प्राप्त की । चमत्कारों के आधार पर धीरे-धीरे वे देव स्वरूप बनते गये एवं अपने इष्टदेव के रूप में पूजे जाने लगे। देवनारायण को विष्णु के अवतार के रूप में गुर्जर समाज द्वारा राजस्थान व दक्षिण-पश्चिमी मध्य प्रदेश में अपने लोकदेवता के रूप में पूजा की जाती है।उन्होंने लोगों के दुःख व कष्टों का निवारण किया। देवनारायण महागाथा में बगडावतों और राण भिणाय के शासक के बीच युद्ध का रोचक वर्णन मिलता है। देवनारायणजी का अन्तिम समय ब्यावर तहसील के मसूदा से 6 कि. मी. दूरी पर स्थित देहमाली ( देमाली ) स्थान पर गुजरा। भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को उनका वहीं देहावसान हुआ। देवनारायण से पीपलदे द्वारा सन्तान विहीन छोड़कर न जाने के आग्रह पर बैकुण्ठ जाने से पूर्व पीपलदे से एक पुत्र बीला व पुत्री बीली उत्पन्न हुई। उनका पुत्र ही उनका प्रथम पुजारी हुआ।
भगवान श्रीकृष्ण की तरह देवनारायण भी गायों के रक्षक थे। उन्होंने बगड़ावतों की पांच गायें खोजी, जिनमें सामान्य गायों से अलग विशिष्ट लक्षण थे। देवनारायण प्रातःकाल उठते ही सरेमाता गाय के दर्शन करते थे। यह गाय बगड़ावतों के गुरू रूपनाथ ने सवाई भोज को दी थी। देवनारायण के पास 98000 पशु धन था। जब देवनारायण की गायें राण भिणाय का राणा घेर कर ले जाता तो देवनारायण गायों की रक्षार्थ राणा से युद्ध करते हैं और गायों को छुड़ाकर लाते थे। देवनारायण की सेना में ग्वाले अधिक थे। इतिहास में 1444 ग्वालों का होना बताया गया है, जिनका काम गायों को चराना और गायों की रक्षा करना था। देवनारायण ने अपने अनुयायियों को गायों की रक्षा का संदेश दिया था।
इन्होंने जीवन में बुराइयों से लड़कर अच्छाइयों को जन्म दिया। अतिवाद से संघर्ष कर सच्चाई की रक्षा की एवं शान्ति स्थापित की। हर असहाय की सहायता की। राजस्थान में जगह-जगह इनके अनुयायियों ने देवालय अलग-अलग स्थानों पर बनवाये हैं जिनको देवरा भी कहा जाता है। ये देवरे अजमेर, चित्तौड़, भीलवाड़ा , व टोंक में काफी संख्या में हैं। देवनारायण का प्रमुख मन्दिर भीलवाड़ा जिले में आसीन्द कस्बे के निकट खारी नदी के तट पर महाराजा सवाई भोज में है। देवनारायण का एक प्रमुख देवालय निवाई तहसील के जोधपुरिया गाँव में वनस्थली से 9 कि. मी. की दूरी पर है । सम्पूर्ण भारत में गुर्जर समाज का यह सर्वाधिक पौराणिक तीर्थ स्थल है। देवनारायण की पूजा भोपाओं द्वारा की जाती है। ये भोपा विभिन्न स्थानों पर जाकर लपेटे हुये कपड़े पर देवनारायण जी की चित्रित कथा के माध्यम से देवनारायण की गाथा गा कर सुनाते हैं।
देवनारायण की फड़ (गायन शैली)
देवनारायण की फड़ गायन शैली में 335 गीत हैं। जिनका लगभग 1200 पृष्ठों में संग्रह किया गया है एवं लगभग 15000 पंक्तियाँ हैं। ये गीत परम्परागत भोपाओं को कण्ठस्थ रहते है। देवनारायण की फड़ राजस्थान की फड़ों में सर्वाधिक लोकप्रिय एवं सबसे बड़ी है।