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व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव

विगत आठ वर्षों के दौरान देश के माहौल में सकारात्मक बदलाव आया है। आमजन इसका अनुभव कर रहा है। जबकि वोटबैंक सियासत करने वाले बेचैन है। ये लोग आन्दोलनजीवी के रूप में अपनी प्रासंगिकता कायम रखने का समय समय पर प्रयास करते है। अनेक संवेदनशील समस्याओं को इन्होंने बहुत सहेज कर रखा था। इसके बल पर ये लोग अपने को सेक्युलर घोषित करते थे। इनके सामने इन समस्याओं के समाधान की बात करना भी गुनाह था। ऐसा करने वालों को साम्प्रदायिक करार दिए जाते थे। मतलब इनके लिए वर्तमान में सत्ता सुख भोगना महत्वपूर्ण था।

इसके लिए समस्याओं को भावी पीढ़ी के लिए छोड़ने में इनको कोई संकोच नहीं था। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने इस प्रकार की राजनीति को बदल दिया। इसके पहले अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार भी राष्ट्रवाद के विचार से प्रेरित थी। लेकिन दो दर्जन दलों के सहयोग से चलने वाली उस सरकार की विवशता थी। जबकि नरेंद्र मोदी को पूर्ण जनादेश मिला। उन्होंने राजनीति के हिसाब से नहीं देश हित में निर्णय लिए। सत्ता की जगह सेवा को महत्व दिया। अपनी सत्ता के लिए भावी पीढ़ियों के लिए समस्या को लटकाने की नीति बदल दी। उनका समाधान किया गया।

पिछली सरकारें कश्मीर में संवैधानिक सुधार, तीन तलाक की समाप्ति,नागरिकता संशोधन व श्री राम मंदिर निर्माण के संबन्ध में कल्पना भी नहीं कर कर सकती थी। वह इन समस्याओं को स्थायी मान कर सियासत में लगी थी। नरेंद्र मोदी ने इन सबका बड़ी सहजता से समाधान कर दिया। इधर उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इस नीति पर अमल किया। उन्होंने वोटबैंक सियासत को अप्रासंगिक बना दिया। यही कारण है कि उनकी अपील मात्र पर लाखों धर्म स्थलों से लाउडस्पीकर उतार दिए गए। सड़क पर धार्मिक आयोजन से परहेज किया गया। उत्तर प्रदेश पत्थरबाजी व दंगों से मुक्त हुआ है। यह सकारात्मक माहौल का ही उदाहरण है। श्री काशी विश्वनाथ धाम को भी पिछली सरकारों ने यथास्थिति में स्वीकार कर लिया था। इसे भव्य रूप में स्थापित करने का उनके पास कोई विचार नहीं था।

उनके लिए यह भी साम्प्रदायिक विषय था। वर्तमान सरकार ने भव्य श्री काशी विश्वनाथ धाम की निर्माण किया। इसी तर्ज पर विंध्य धाम को भी भव्य बनाया जा रहा है। ज्ञानवापी,मथुरा सहित अनेक स्थलों को लेकर सदियों से विवाद रहा है। कई स्थलों का वर्तमान स्वरूप ही अपने में बहुत कुछ कहता है। इनका शांति व सौहार्द से समाधान निकालने की। इच्छशक्ति वर्तमान सरकार में है। यदि कोई अन्य सरकार होती तो शायद शांति पूर्ण ढंग से सर्वे करना भी मुश्किल होता। इस क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लुंबनी कुशीनगर यात्रा उल्लेखनीय रही।

यहां नरेंद्र मोदी ने सांस्कृतिक चेतना व विकास दोनों के संवर्धन को रेखांकित किया। बुद्ध पूर्णिमा को नरेंद्र मोदी लुंबनी पहुंचे। वस्तुतः उन्होंने भारतीय संस्कृति को आंतरिक व विदेश नीति का महत्वपूर्ण तत्व बनाया है। इसके पहले संस्कृति को लेकर भारतीय नेतृत्व में संकोच का भाव रहता था। प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी ने इस परम्परा को बदला था। नरेंद्र मोदी इस पर अधिक प्रभावशाली रूप में अमल कर रहे हैं।

वे विदेशी शासकों को भगवत गीता की प्रति भेंट करते हैं। भारत आगमन पर उनमें से कई लोग मंदिर गए। अरब देशों में मंदिर बनाये गए। नरेंद्र मोदी उनके उद्घाटन में सहभागी हुए थे। जापान के प्रधानमंत्री काशी की गंगा आरती में सहभागी हुए थे। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर वार्ता की थी। व्हाइट हाउस की दीपावली चर्चित हुई थी। उन्होंने बौद्ध देशों के साथ सांस्कृतिक आधार पर सहयोग बढ़ाने ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी में गौतम बुद्ध द्वारा बौद्ध धर्म का प्रवर्तन किया गया था। उन्हें बोध गया में ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। सारनाथ में उन्होंने अपना पहला उपदेश दिया था। उनका महापरिनिर्वाण कुशीनगर में हुआ था।
केंद्र व उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार ने इन सभी स्थानों को भव्यता के साथ विकसित किया। यहां विश्व स्तरीय पर्यटन सुविधाओं का विकास किया जा रहा है।

कुशीनगर में अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट का उद्घाटन भी इसमें शामिल है। इस समारोह में अनेक बौद्ध देशों के लोग शामिल हुए थे। श्रीलंका का विशेष विमान यहां उतरा था। भारतीय उपमहाद्वीप के अलावा मध्य,पूर्वी और दक्षिण। पूर्वी एशिया में भी बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं। इनकी संख्या पचास करोड़ से अधिक है। चीन, जापान,वियतनाम, थाईलैण्ड,म्यांमार, भूटान,श्रीलंका, कम्बोडिया,मंगोलिया, लाओस,सिंगापुर,दक्षिण कोरिया एवं उत्तर कोरिया सहित तेरह देशों में बौद्ध धर्म प्रमुख धर्म है। नेपाल,ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया,रूस,ब्रुनेई, मलेशिया आदि देशों में भी बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं। नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र संघ में कहा था कि दुनिया ने युद्ध दिया होगा,लेकिन भारत ने दुनिया को बुद्ध दिया है। जब भगवान बुद्ध की बात करते हैं, तो उत्तर प्रदेश और भारत का यह संदेश दुनिया के कोने-कोने में जाता है। भगवान बुद्ध से जुड़े सर्वाधिक स्थल उत्तर प्रदेश में हम सभी का गौरव हैं।

भगवान बुद्ध की राजधानी कपिलवस्तु सारनाथ यहीं है। उन्होंने सबसे अधिक चातुर्मास श्रावस्ती कौशाम्बी में किये। संकिसा कुशीनगर भी उत्तर प्रदेश में है। बौद्ध सर्किट की परिकल्पना साकार हो रही है। बौद्ध सर्किट न केवल सड़क मार्ग बल्कि वायु मार्ग से भी जुड़ गया है। अंतरराष्ट्रीय उड़ानों का संचालन पहले ही प्रारंभ हो चुका है। वर्तमान सरकार के पहले तक उत्तर प्रदेश में केवल दो एयरपोर्ट फंक्शनल थे। यह लखनऊ तथा वाराणसी में था। प्रदेश की कनेक्टिविटी भी उस समय करीब पंद्रह स्थानों के लिये थी। आज कुशीनगर प्रदेश का नौवां फंक्शनल एयरपोर्ट है। अब उत्तर प्रदेश पचहत्तर गंतव्य स्थानों पर वायु सेवा के साथ सीधे जुड़ चुका है। कुशीनगर प्रदेश का तीसरा अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। प्रधानमंत्री की यात्रा का उद्देश्य भारत नेपाल संबंधों को और मजूबत करना था।

इस दृष्टि से उनकी यात्रा सार्थक रही। नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा से उनकी वार्ता उपयोगी साबित हुई। पिछले दिनों देउबा श्री काशी विश्वनाथ धाम में सपरिवार दर्शन पूजन करने आये थे। तब उन्होंने कहा था कि श्री विश्वनाथ धाम आकर उनका जीवन धन्य हुआ है। यहां से गंगा मैय्या का दर्शन करना अलौकिक है। नरेंद्र मोदी ने बुद्ध जयंती के अवसर पर मायादेवी मंदिर में पूजा अर्चना की। भगवान बुद्ध के पवित्र जन्म स्थान पर श्रद्धांजलि अर्पित करना सौभाग्य की बात है। पिछले महीने नई दिल्ली में नरेंद्र मोदी और शेर बहादुर देउबा के बीच वार्ता हुई थी। दोनों देश जलविद्युत,विकास और संपर्क सहित अनेक क्षेत्रों में सहयोग का विस्तार करने पर सहमत है। नरेंद्र मोदी लुंबिनी मठ क्षेत्र में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर फॉर बौद्ध कल्चर एंड हेरिटेज शिलान्यास समारोह में भी सहभागी हुए। भारत व नेपाल के संबंध अद्वितीय हैं। भारत और नेपाल के बीच सांस्कृतिक और लोगों से लोगों के बीच संपर्क हमारे घनिष्ठ संबंधों की स्थायी इमारत है। यह सदियों से पोषित हैं। नरेंद्र मोदी ने कहा कि दोनों देशों के अंतर्संबंध लंबे इतिहास में दर्ज हैं। इस यात्रा से यह संबन्ध प्रगाढ़ हुए है।

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