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रगों में रक्त भारत का यहां सबके ही बहता है, सुनाने मैं सभी को देश का पैगाम लाया हूं…

रायबरेली। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति दिवस के कार्यक्रम के दूसरे सत्र में देश के प्रख्यात कवियों ने काव्य रस की बरसात की। रात 12 बजे तक स्रोता रचनाओं का आनंद उठाते रहे। द्वितीय सत्र में काव्यांजलि का कार्यक्रम आयोजित किया गया। काव्यांजलि की शुरूआत मांवाणीकी वन्दना से हुई। इसके पहले समिति के शीतलाशंकर बाजपेई, स्वतंत्र कुमार पांडेय, नीलेश मिश्रा ने माल्यार्पण कर स्वागत किया।

युवा कवि रामायणधर द्विवेदी ने अपने काव्य पाठ का शुभारम्भ ऐसे गीत से किया जिसे सुनकर श्रोता झूम उठे। उन्होंने अपने गीत में ‘गुलमोहर, गेंदा, गुलाब के, मन में लाखों फूल खिले, उतने गीत लिखे हैं हमने, उनसे जितनी बार मिले‘ पढ़कर खूब तालियां बटोरीं। उन्होंने ‘किस तरह पेड़ फूले-फलें, जब जड़े डालियों से जले।’ गीत पढ़कर समाज में व्याप्त ईष्र्या-द्वेष की बुराई को रेखांकित किया।

अन्तर्राष्ट्रीय कवि गजेन्द्र सोलंकी ने अपने काव्य पाठ से श्रोताओं में राष्ट्र चेतना का संचार कर दिया। उन्होंने अपने काव्य पाठ की शुरूआत ‘बनारस की सुबह अनुपम अवध की शाम लाया हूं, मोहब्बत का खजाना मैं तुम्हारे नाम लाया हूं। रगों में रक्त भारत का यहां सबके ही बहता है, सुनाने मैं सभी को देश का पैगाम लाया हूं ’ पंक्तियों से की। इसके बाद उन्होंने एक से एक देशभक्ति से ओतप्रोत गीतों को प्रस्तुत किया।

काव्यांजलि का संचालन कर रही अन्तर्राष्ट्रीय कवियित्री डॉ. सरिता शर्मा ने अपने काव्य पाठ की शुरूआत ‘सारी दुनिया से दूर हो जाऊं, तेरी आंखों का नूर हो जाऊं, तेरी राधा बनूं न बनूं, तेरी मीरा जरूर हो जाऊं॥‘ इन पंक्तियों से की। उन्होंने गृहिणीकी आत्मशक्ति से सम्बन्धित मुक्तक प्रस्तुत किए। ‘सूखे पनघट की गागरी हूं मैं, फिर भी कितनी भरी-भरी हूं मैं, तेरे घर की चांदनी न सही, तेरे आंगन की डेहरी हूं मैं॥‘ पढ़कर उन्होंने काव्यांजलि में चार चांद लगा दिये। समिति के महामंत्री अनिल मिश्र ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।

रिपोर्ट-दुर्गेश मिश्रा

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