पांच अगस्त को अयोध्या में प्रभु राम की जन्मस्थली पर भव्य मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन के साथ ही हिन्दुस्तान की सियासत का एक महत्वपूर्ण ‘पन्ना’ बंद हो जाएगा। तीन दशकों से भी अधिक से समय से देश की सियासत जिस ‘मंडल-कमंडल’ के इर्दगिर्द घूम रही थी,वह अब इतिहास के पन्नों में सिमट गई है। मंडल यानी पिछड़ों को सरकारी नौकरियों में 52 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए बना आयोग और कमंडल मतलब आयोध्या में भगवान राम का मंदिर बनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी द्वारा चलाया गया अभियान। मंडल-कमंडल की सियासत ने अगड़े-पिछड़े के नाम पर हिन्दुओं में बड़ी फूट डाली थी और इसके लिए संविधान को मोहरा बनाया गया था।
1978 में बने बीपी मंडल आयोग ने 12 दिसंबर 1980 को अपनी रिपोर्ट मोरारजी सरकार को सौंपते हुए जनसंख्या के हिसाब से ओबीसी को 52 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की, लेकिन इन सिफारिशों को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका।
दरअसल, 1931 की जनगणना के हिसाब से देश में पिछड़ा वर्ग(ओबीसी) की जनसंख्या 52 फीसदी और अनुसूचित जाति(एससी) की 16 एवं व अनुसूचित जनजाति(एसटी) की 7.5 प्रतिशत थी। एससी और एसटी वर्ग को सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ मिलता था,जबकि पिछड़ा समाज के लिए अपने लिए भी आरक्षण चाहते थे। इसकी वजह थी भारतीय संविधान का अनुच्छेद 16(4), जो कहता है कि सरकार पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था कर सकती है। बहरहाल, जब तत्कालीन केन्द्र सरकार पर पिछड़ो को आरक्षण के लिए काफी दबाव पड़ने लगा तो उसने प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई ने बीपी मंडल की अध्यक्षता में एक आयोग गठित कर दिया। 1978 में बने बीपी मंडल आयोग ने 12 दिसंबर 1980 को अपनी रिपोर्ट मोरारजी सरकार को सौंपते हुए जनसंख्या के हिसाब से ओबीसी को 52 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की, लेकिन इन सिफारिशों को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका। जब मंडल आयोग ने सिफारिश की थी तब मोरारजी देसाई की ही सरकार थी,जो आपसी खींचतान के चलते अपना कार्यकाल पूरा किए बिना गिर गई थी। मोरार जी की सरकार गिरने के बाद हुए लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी। उनकी हत्या के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने लेकिन बोफोर्स घोटाले के कारण जनता में भरोसा खो दिया और एकजुट विपक्ष ने उन्हें चुनाव में पटखनी दे दी। तत्पश्चात वी पी सिंह संयुक्त मोर्चे के प्रधानमंत्री बने। मोर्चे में देवी लाल, लालू प्रसाद यादव,मुलायम सिंह यादव जैसे दिग्गज नेता मौजूद थे जो अपने आप को पिछड़ो का नेता कहते थे और मंडल आयोग की सिफारिशेलागू होते हुए देखना चाहते थे।
प्रधानमंत्री वीपी सिंह के सामने हालात यह बन गए कि वीपी को यहां तक लगने लगा कि अगर मंडल कमीशन लागू नहीं किया तो उक्त नेता उनकी सरकार गिरा देंगे। इसी दबाव के बीच वीपी सिंह ने 7 अगस्त 1990 को मंडल कमीशन की रिपोर्ट की धूल झाड़ी और 13अगस्त 1990 को इसे लागू कर दिया,लेकिन इसके कुछ दिनों के बाद इन नेताओं ने वीपी की सरकार गिरा कर ही चैन लिया। उधर, मंडल कमीशन लागू होते ही 12 सितंबर 1990 को दिल्ली में बीजेपी की मीटिंग बुला ली गई। मंडल आयोग की सिफारिशें लागू किए जाने के तुरंत बाद ही भाजपा ने कमंडल अर्थात अयोध्या मंे भगवान राम का मंदिर बनवाने की लड़ाई अपने हाथों में ले ली। भाजपा के दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक की रथयात्रा शुरू करने का एलान कर दिया। आडवाणी की इस यात्रा को मंडल की काट के रूप में देखा गया।
सुप्रीम कोर्ट ने 16 नवंबर 1992 को अपने फैसले में 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण न करने की बात कहकर 52 फीसदी ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण तक सीमित कर दिया व एक लाख रुपये से ज्यादा आय वालों को क्रीमीलेयर की श्रेणी में डाल दिया,जो आज तक बदस्तूर जारी हैं।
मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर पिछड़ोे को सरकारी नौकरियों में 52 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने से देशभर में सवर्णों का विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। यह ऐसा दौर था जब उत्तर भारत की जाट, पटेल, मराठा जैसी बड़ी किसान जातियां सवर्णों के साथ विरोध प्रदर्शन में भाग ले रही थी तो दूसरी तरफ आओ अयोध्या चले वाले कमंडल के नारों के साथ जयकारे लगा रही थी। इसी बीच मंडल कमीशन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने 16 नवंबर 1992 को अपने फैसले में 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण न करने की बात कहकर 52 फीसदी ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण तक सीमित कर दिया व एक लाख रुपये से ज्यादा आय वालों को क्रीमीलेयर की श्रेणी में डाल दिया,जो आज तक बदस्तूर जारी हैं।
उधर,अन्य सियासी घटनाक्रम में एक तरफ लालू यादव व मुलायम सिंह यादव कमंडल का विरोध करते हुए मुसलमानों के नेता बन गए थे तो दूसरीं तरफ इन नेताओं ने यादवों को आरक्षण दिलवाकर उनका भी विश्वास जीत लिया,लेकिन समय के साथ मंडल की आग धीमी पड़ती गई और बीजेपी अयोध्या मुद्दे को गरमाती रही। मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू किए जाने के बाद हिन्दुओं में जो खाई पैदा हो गई थी, उसे कमंडल की राजनीति पूरी तरह से पाट दिया और पूरा हिन्दू समाज एकजुट होकर मंदिर निर्माण के पक्ष में खड़ा हो गया। इसमें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और बीजेपी की महत्वपूर्ण भूमिका रही। बहरहाल, पांच अगस्त को भगवान राम के मंदिर निर्माण के लिए भूमि-पूजन के साथ बीजेपी की कमंडल की सियासत भी खत्म हो जाएगी। उम्मीद यह भी की जानी चाहिए कि मंदिर निर्माण के साथ ही हिन्दू-मुसलमानों के बीच की खाई भी खत्म हो जाएगीं। क्योंकि मंदिर के साथ मस्जिद का भी निर्माण हो रहा है। यह काफी सौहार्दपूर्ण स्थिति है।
ऐसा लगता है कि अयोध्या में श्री राम मंदिर के भव्य निर्माण के साथ ही देश में सांप्रदायिक समरसता का भी नया युग प्रारम्भ हो जाएगा। तीन दशकों से जन्मभूमि विवाद के कारण देश के सांप्रदायिक सद्भाव को गहरी चोट पहुंच रही थी। गत वर्ष नवंबर में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विवाद के समाधान के लिए ऐतिहासिक फैसला सुनाए जाने के बाद दोनों पक्षों ने जिस सहिष्णु मानसिकता के साथ सारे पूर्वाग्रह त्यागकर इसे स्वीकार किया, उसने पूरी दुनिया को चैंकाया जबकि दशकों से इसे मुद्दा बनाकर वोटबैंक राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों को निराश किया। इससे यह धारणा भी पुष्ट होे गइ्र्र कि मंदिर-मजिस्द के नाम पर राजनीति दल और कारोबारी मानसिकता के संगठन स्वार्थ सिद्ध कर रहे थे, दोनों पक्षों के आम लोगों की विवाद बढ़ाने में कोई रूचि नही थी।