- Published by- @MrAnshulGaurav
- Thursday, July 07, 2022
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के सूचना आयुक्त हर्षवर्धन शाही पर नैतिक अधमता और कदाचार में लिप्त होकर खुद को संसद, सूचना कानून और सुप्रीम कोर्ट से ऊपर मानने का गंभीर आरोप लग रहा है. राजधानी लखनऊ निवासी आरटीआई एक्टिविस्ट उर्वशी शर्मा ने शाही पर आरोप लगाया है कि वे अपने आदेशों में आरटीआई एक्ट की धारा 18 को खुलेआम व्यर्थ करार दे रहे हैं और आरटीआई एक्ट की धारा 18 के तहत की गई शिकायतों को आँख मूंदकर बिना सुने खारिज कर रहे है.
उर्वशी कहती हैं कि यह सर्वमान्य तथ्य है कि विधायिका व्यर्थ या बिना किसी उद्देश्य के शब्दों को बर्बाद नहीं करती और न ही कुछ भी नहीं कहती है. इस प्रकार एक कार्य जो कानून के एक हिस्से की व्यर्थ बनाने की ओर ले जाता है, अनिवार्य कारणों के अभाव में स्वीकार नहीं किया जा सकता है. अधिनियम की धारा 18 और 19 दो अलग-अलग उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं और दो अलग-अलग प्रक्रियाएं निर्धारित करते हैं और वे दो अलग-अलग उपचार प्रदान करते हैं और एक दूसरे का स्थानापन्न नहीं हो सकता किन्तु शाही द्वारा बहुसंख्यक मामलों में अधिनियम की धारा 18 को व्यर्थ बनाने के सम्बन्ध में आदेश पारित किए जा रहे हैं,वह भी इसके बावजूद कि विशेष रूप से सर्वोच्च न्यायालय की आधिकारिक घोषणा द्वारा इस बिंदु पर विशेष ध्यान आकर्षित किया गया है.
उर्वशी ने शाही पर आयोग की प्रस्तुतियों की सत्यता की जांच नहीं करने,केस-फाइल की मेरिट को बिल्कुल भी नहीं देखने,बिना मस्तिष्क का प्रयोग किये शिकायतों पर यांत्रिक तरीके से आदेश पारित करने के आरोप लगाए हैं. सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 18 (1) और 18(2) में shall शब्द के लिखे होने पर जोर देते हुए उर्वशी ने कहा है कि शाही द्वारा धारा 18 (1) की उपधारा a से f के मामलों को प्राप्त करके उनकी जांच करने के बाध्यकारी कर्तव्य का निर्वहन नहीं किया जा रहा है.
बकौल उर्वशी प्रायः ऐसा होता है कि शिकायत करते समय शिकायतकर्ता के पास शिकायत दायर करने के एक से अधिक कारण होते हैं जिसके कारण शिकायतकर्ता की शिकायत सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 18 (1) की उपधारा a से f की एक से अधिक उपधाराओं से आच्छादित होती है जिसका निर्धारण सुनवाई के समय मामले की पत्रावली पर उपलब्ध रिकॉर्ड और नोटिस देकर बुलाये गए जन सूचना अधिकारी द्वारा सुनवाई में रखे गए पक्ष के आधार पर अपने विवेक से करना सूचना आयुक्त के पद का विधिक दायित्व है किन्तु शाही द्वारा जनसूचना अधिकारी के अद्यतन पक्ष की अनुपस्थिति में, विवेक का प्रयोग किये बिना ,यांत्रिक रीति से शिकायतों को बिना सुने और पूर्व पारित आदेशों की खुली अनदेखी तक करके मनमाने रूप से अपनी खुद की धारणाओं,सनक और कल्पनाओं के आधार पर बल्क में ख़ारिज किया जा रहा है.
उर्वशी के अनुसार अधिनियम की धारा 18 के तहत सूचना आयुक्त को संतुष्ट होना चाहिए कि जन सूचना अधिकारी का आचरण निष्ठावान रूप से सही था या नहीं था किन्तु निहित स्वार्थ में लिप्त होने के कारण शाही द्वारा जन सूचना अधिकारी के आचरण की निष्ठा का आंकलन और अंकन नहीं किया जा रहा है.
उर्वशी ने शाही पर लोक प्राधिकरणों की अनियमिताओं को सार्वजनिक होने से रोकने की साजिश करके, लोक प्राधिकारियों के भ्रष्टाचार और कदाचार को सार्वजनिक होने से रोकने की साजिश करके, सूचना कानून को न मानने वाले जन सूचना अधिकारियों को धारा 20 के दंड से बचाने की साजिश करके आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का भी आरोप लगाया है.
उर्वशी ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, भारत के मुख्य सतर्कता आयुक्त, सूबे के राज्यपाल,मुख्य मंत्री, मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव प्रशासनिक सुधार और सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त, रजिस्ट्रार,सचिव, मुख्य सतर्कता अधिकारी और सतर्कता अधिकारी को शिकायत भेजकर हर्षवर्धन शाही की सूचना कानून की धारा 17 के तहत बर्खास्तगी कराने के साथ साथ आय से अधिक संपत्ति की सतर्कता जांच कराने की मांग की है.