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आत्म चिन्तन से आत्मबोध

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

उदार चरित्र के वैचारिक आधार पर ही सच्चे अर्थों में किसी ग्लोबल समिट का आयोजन किया जा सकता है। इसके लिए मानव मात्र के कल्याण का भाव होना चाहिए। भारत का चिंतन इसी के अनुरूप है। महोपनिषद् में इसे सुंदर ढंग से रेखांकित किया गया-
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् ।उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥ 
अर्थात यह अपना है और यह अपना नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों की तो सम्पूर्ण धरती ही परिवार है। भारत में धर्म की धारणा भी यही है-
धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः। धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दशकं धर्मलक्षणम् ॥

अर्थात धैर्य,क्षमा,दम अर्थात वासनाओं पर नियन्त्रण,अस्तेय शौच अर्थात शुचिता,इन्द्रिय निग्रहः धी अर्थत बुद्धिमत्ता,विद्या,सत्य अक्रोध ,ये दस मानव धर्म के लक्षण हैं। इनको धारण किया जाता है। इस विचार में कोई भेदभाव नहीं है।

कार्य व कर्तव्य बोध

डिफाइण्ड वैलूज कन्सलटेंट प्रोजेक्ट युग परिवर्तन वैश्विक शिखर सम्मेलन का वर्चुअल आयोजन किया गया। राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने संबोधित किया। उन्होंने कहा कि उन्होंने कहा कि आत्म चिआत्म चिन्तन ही मात्र एक रास्ता है,जो हमें आत्मबोध,दिशाबोध, कार्यबोध और कर्तव्यबोध सहित परस्पर सद्भाव तक पहुंचा सकता है।परिवर्तन प्रकृति का एक शास्वत नियम है। समय एवं आवश्यकताओं की दृष्टि से परिवर्तन होना सृष्टि से सामंजस्य बनाने की महत्वपूर्ण कड़ी है। कालान्तर में जो चीजें आवश्यक थी,वह आज नहीं हैं,इसी प्रकार जो आज है, वह भविष्य में आवश्यक होगा,ऐसा नहीं कहा जा सकता है। राष्ट्रीय परिस्थितियों और स्थायी विकास प्राथमिकताओं के आधार पर हो रहे बदलाव और परिवर्तनों को सभी को स्वीकार करने के साथ उसमें अपना अपना योगदान देना चाहिए।

पर्यावरण संरक्षण

आनंदीबेन पटेल ने कहा कि विज्ञान के वरदानों ने मनुष्य को बहुत कुछ दिया है। विज्ञान का प्रभाव मानव की मानसिक शांति, पारिवारिक जीवन एवं सामाजिकता वाले पक्ष पर भी पड़ा है। विज्ञान ने वरदान के साथ प्रदूषण को भी बढ़ा दिया है। उन्होंने विश्व पर्यावरण दिवस की चर्चा करते हुए कहा कि पर्यावरण की समस्याएं आज पूरे विश्व के लिये चिन्ता का विषय है।

इस समस्या से न केवल मानव जीवन प्रभावित हो रहा है, बल्कि यह पशु-पक्षियों, जीव जन्तुओं,पेड़ पौधों, वनस्पतियों,वनों, जंगलों,पहाड़ों,नदियों सभी के अस्तित्व के लिये भी घातक सिद्ध हो रही है। उन्होंने कहा कि अनियोजित विकास एवं मानव की लालची प्रवृत्ति ने जिस प्रकार प्रकृति का शोषण एवं दोहन किया है, उसका परिणाम यह है कि आज पूरी सृष्टि ही खतरे में पड़ गई है। राज्यपाल ने कहा कि कोरोना ने मानव के समक्ष समस्याएं तो उत्पन्न की हैं लेकिन अपने परिवेश और पर्यावरण के प्रति सचेत भी किया है। भारतीय जीवन पद्धति प्रकृति की रक्षा के विज्ञान पर आधारित है, जिसे विश्व ने भी माना है।

राज्यपाल ने कहा कि कोरोना ने सभी को व्यक्तिगत स्वच्छता का महत्व सिखाया है, जो हमारे संस्कारों में गहरे थे, लेकिन हमनें उनकी उपेक्षा करने की चेष्टा की और जिससे गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा कि इस महामारी ने वित्तीय नियोजन का भी सबक दिया है कि हमें आपात स्थिति से निपटने के लिए बचत राशि को रखना चाहिए। राज्यपाल ने कहा कि महामारी के परिप्रेक्ष्य में बदलाव लाते हुए शिक्षण,प्रशिक्षण एवं आपसी विचार-विमर्श द्वारा मानवीय मूल्यों को आदर देने, आपसी प्रेम बढ़ाने, सद्भावना व समूह कार्य संस्कृति को बढ़ावा देने,अच्छे कार्य, अच्छे व्यवहार,अच्छी सेवाएं देने जैसे संसाधन विकसित करने चाहिए।

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