सत्ता की भूख में 23 साल बाद फिर से औपचारिक रूप में SP-BSP एक हो गई। यह एकता भले ही 11 मार्च को गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव को लेकर हो। लेकिन इससे दोनों दलों के बीच पिछले 23 वर्षों से चली आ रही कड़वाहट ठंडी पड़ गई। दरअसल 1993 में मुलायम सिंह यादव और कांशीराम के नेतृत्व में सपा-बसपा का गठजोड़ हुआ था और 176 सीटें जीतकर ये गठबंधन सत्ता में आया था।
- लेकिन दो जून, 1995 में जब बसपा ने सपा से समर्थन वापस ले लिया तो गेस्टहाउस कांड के बाद इन दलों के बीच रिश्ते सहज नहीं रहे।
- उस कांड में मायावती के साथ अभद्रता हुई थी।
- जिसके बाद अब संभवत: सपा नेतृत्व मुलायम के बजाय अखिलेश के पास होने के कारण मायावती को निर्णय लेने में असहज नहीं लगा।
SP-BSP चुनावी गठबंधन न होकर वोटों का ध्रुवीकरण
उपचुनाव को लेकर मौजूदा समय में बसपा का सपा के साथ गठजोड़ किया है। विधानसभा चुनाव 2017 के बाद से ही अखिलेश, बसपा के साथ हाथ मिलाने के संकेत देते रहे हैं। लेकिन मायावती ने खामोशी अख्तियार कर एक तरह से इस मुहिम को ज्यादा तवज्जो नहीं दी। लेकिन अब त्रिपुरा चुनावों के बाद ‘मोदी लहर’ को थामने के लिए इन दलों ने यह रणनीतिक कदम उठाये हैं। द टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार इस तालमेल की शुरुआत 27 फरवरी को उस समय हुई, जब सपा के मुख्य रणनीतिकार रामगोपाल यादव ने बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा से तालमेल के संबंध में बातचीत की।
- सपा मुखिया अखिलेश यादव और बीएसपी प्रमुख मायावती की सहमति के बाद अगले दौर की विस्तृत बातचीत हुई।
- जिसमें आगामी राज्यसभा और विधान परिषद चुनावों में दोनों पार्टियां एक-दूसरे की मदद के लिए साथ देने को एकजुट होंगी।
- बसपा को राज्यसभा में एक सीट हासिल करने में सपा मदद करेगी।
- बदले में वह विधान परिषद में सपा के दो सदस्यों को पहुंचाने में मदद करेगी।
बीएसपी कोआर्डिनेटरों ने सपा नेताओं का किया समर्थन
उसके बाद एक मार्च को मायावती ने वोटरों का मूड भांपने के लिए गोरखपुर और फूलपुर के पार्टी कोआर्डिनेटरों को बुलाया है। उनसे जमीनी स्तर पर पार्टी कैडर की स्थिति और फीडबैक लेने के लिए कहा गया है।
- अखिलेश यादव ने अपने एमएलसी उदयवीर सिंह को फीडबैक के लिए तैनात किया है।
- चार मार्च को ही सपा नेताओं की उपस्थिति में बीएसपी कोआर्डिनेटरों ने समर्थन सपा को देने की घोषणा कर दी थी।