भारत में स्पिन गेंदबाजी की बात निकलते ही वैसे तो कई स्पिनर्स की याद आती है, लेकिन उन सब में एक अलग ही जगह रखते हैं। अपने खेल के प्रति गहरे जुनून व अनुशासन के लिए प्रसिद्ध टीम इंडिया में जम्बो के नाम से जाने जाते थे। जंबो हमेशा एक जंटेलमैन की तरह नजर आए व कई बार समझौता न करने के की छवि वाले खिलाड़ी व कोच के तौर पर भी। अनिल गुरुवार को 50 वर्ष के हो गए हैं।
एक बेहतरीन क्रिकेटर
17 अक्टूबर 1970 को बेंगलुरु में जन्मे अनिल कुंबले एक पास गेंदबाज के अतिरिक्त कई मौकों पर टीम इंडिया के अहम बल्लेबाज भी साबित हुए। उन्होंने अपने आखिरी टेस्ट की आखिरी गेंद चौका लगाकर खेली थी। इसके अतिरिक्त 1990 में अंडर-19 यूथ टेस्ट में उन्होंने पाक के विरूद्ध शतक भी लगाया था। वे एक फुर्तीले या एथलेटिक फिल्डर के तौर पर कभी नहीं जाने गए। बल्कि कई बार लचर फील्डिंग के लिए उनकी आलोचना होती थी, लेकिन इसी खिलाड़ी के नाम संसार में सबसे ज्यादा टेस्ट कॉट एंड बोल्ड (35) विकेट हैं। उन्होंने मुरलीधरन के साथ यह रिकॉर्ड साझा किया है।
तेज स्पिन के बादशाह
कुंबले को कभी परंपरागत स्पिनर नहीं मान गया। वे गुगली, फिलिपर, व लेग स्पिन का शानदार मिलावट करते थे व उनकी गेंद आमतौर पर बहुत तेज हुआ करती थी। वे गेंद को फ्लाइट कराने में यकीन नहीं रखते थे। इस खूबी के कारण विरोधी बल्लेबाज कभी उनको हलके में नहीं ले पाते थे व ऐसा करने की प्रयास करते ही अपने विकेट गंवा बैठते थे। अनिल कभी टर्निंग पिचों के मोहताज नहीं नजर आए। यही वजह है कि वे हिंदुस्तान के सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज बने। टेस्ट में 619 विकेट लेने वाले कुंबले ने हिंदुस्तान में केवल 350 विकेट लिए।
अनुशासन में कठोर लेकिन फिर भी विनम्र
अनिल टीम इंडिया को सबसे ज्यादा मैच जिताने वाले गेंदबाज रहे हैं। उनके रहते टीम इंडिया ने 43 टेस्ट मैचों में जीत हासिल की है। वे एक कैप्टन के तौर पर एक कठोर कैप्टन के रूप में पहचाने गए। कोचिंग में उन्होंने कभी अनुशासन में समझौता नहीं किया। शायद यही वजह रही कि वे कभी लोकप्रिय कोच साबित नहीं हो सके। टीम इंडिया के कोच पद पर कुंबले को रास नहीं आया व बोला जाता है कि उन्होंने इसी वजह से यह पद छोड़ा कि खिलाड़ियों को उनके अनुशासन की सख्ती पसंद नहीं आई।
जान लगा देने की हद तक का जुनून
अनिल अपने अनुशासन को दूसरों पर थोपते तो नहीं थे, लेकिन उन्होंने कभी अपने अनुाशासन पर समझौता भी नहीं किया। अपनी सीमाओं को विनम्रता से स्वीकार कर वे अपने कार्य में पूरी जान लगा देते थे। 2002 में एंटिगुआ में अपने टूटे हुए जबड़े पर पट्टी बांधकर भी गेंदबाजी करने मैदान पर आए कुंबले आज भी अपने उस जज्बे के लिए याद किए जाते हैं।
बेहतरीन प्रदर्शन की सतत यात्रा
1999 में पाक के विरूद्ध खेलते हुए एक पारी में 10 विकेट लेकर तलहलका मचा दिया था। उनके अतिरिक्त इंग्लैंड के जिम लेकर ऐसा कर सके थे। उनके अतिरिक्त कोई भी गेंदबाज इंटरनेशनल क्रिकेट में यह मुकाम हासिल नहीं कर सका है । इसके बाद जैसे कुंबले ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। जल्द ही वे 300 टेस्ट विकेट लेने वाले हिंदुस्तान के पहले स्पिनर बने। इसके बाद वनडे में भी उन्होंने जल्दी ही अपने 300 विकेट सारे किए। 1993 में हीरो कप में केवल 12 रन देकर छह विकेट लेने का रिकॉर्ड प्रदर्शन केवल उनके बहुत से यादगार प्रदर्शनों में से एक है।