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भाई दूज की कहानी आचार्य राजीव शुक्ला की जुबानी…

यमराज, यमुना, तापी एवं शनि ये भगवान सूर्य की संतानें कही जाती हैं। किसी कारण से यमराज अपनी बहन यमुना से वर्षों दूर रहे। एक बार यमराज के मन में हुआ कि मेरी बहन यमुना को देखे हुए बहुत वर्ष हो गये हैं। अतः उन्होंने अपने दूतों को कहा कि “जाओ, जाकर जांच करो कि यमुना आज कल कहां स्थित है।

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वैदिक एस्ट्रोलॉजर आचार्य राजीव शुक्ला बताते है की यमदूत विचरण करते-करते धरती पर आये तो सही किन्तु उन्हें कहीं यमुनाजी का पता नहीं लगा। फिर यमराज स्वयं विचरण करते हुए मथुरा आये एवं बहुत वर्षों के बाद अपने भाई को पाकर बहन यमुना ने बड़े प्रेम से यमराज का स्वागत सत्कार किया एवं यमराज ने भी बहन की सेवा सुश्रूषा केलिए याचना करते हुए कहा “बहन तू क्या चाहती है? मुझे अपनी प्रिय बहन की सेवा का मौका चाहिए।

भाई दूज की कहानी आचार्य राजीव शुक्ला की जुबानी...

देवी स्वभाववाला एवं परोपकारी आत्मा क्या मोंगे? अपने लिए जो मांगता है, वह तो भोगी होता है, विलासी होता है लेकिन जो औरों के लिए माँगता है अथवा भगवत्प्रीति माँगता है वह तो भगवान का भक्त होता है, परोपकारी आत्मा होता है। भगवान सूर्य दिन-रात परोपकार करते हैं तो सूर्यपुत्री यमुना क्या माँगती?

यमुना ने कहा जो भाई मुझमें स्नान करे वह यमपुरी न जाये।
यमराज चिंतित हो गये कि इससे तो यमपुरी का ही दिवाला निकल जायेगा। कोई कितने ही पाप करे और यमुना में गोता मारे तो यमपुरी न आये! सब स्वर्ग के अधिकारी हो जायेंगे तो अव्यवस्था हो जायेगी।

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अपने भाई को चिंतित देखकर यमुना ने कहा, भैया! अगर यह वरदान देना तुम्हारे लिये कठिन है तो आज नववर्ष की द्वितीया है। आज के दिन भाई बहन के यहाँ आये या बहन भाई के यहाँ पहुँचे और जो भाई बहन से स्नेह से मिले ऐसे भाई को यमपुरी के पाश से मुक्त करने का वचन तो तुम दे सकते हो।

यमराज प्रसन्न हुए और बोले, ‘बहन ! ऐसा ही होगा। पौराणिक दृष्टि से आज भी लोग बहन यमुना एवं भाई यग के इस शुभ प्रसंग का स्मरण करके आशीर्वाद पाते हैं एवं यम के पास से छूटने का संकल्प करते हैं।

भाई दूज की कहानी आचार्य राजीव शुक्ला की जुबानी...

यह पर्व भाई बहन के स्नेह का द्योतक है। कोई बहन नहीं चाहती कि उसका भाई दीन-हीन हो, तुच्छ हो, सामान्य जीवन जीनेवाला हो, ज्ञानरहित हो, प्रभावरहित हो । इस दिन भाई को अपने घर पाकर वह अत्यंत प्रसन्न होती है अथवा किसी कारण से भाई नहीं आ पाता तो स्वयं उसके घर चली जाती है। बहन भाई को तिलक करती है इस शुभ भाव से कि मेरा मैया त्रिनेत्र बने इन दो आँखों से जो नाम-रूपवाला जगत दिखता है, यह इन्द्रियों को आकर्षित करता है लेकिन ज्ञाननेत्र से जो जगत दिखता है उससे इस नाम वाले जगत की पोल खुल जाती है और जगदीश्वर का प्रकाश दिखने लगता है।

बहन तिलक करके अपने भाई को प्रेम से भोजन करवाती है एवं भाई बदले में बहन को बस्त्र-अलंकार, दक्षिणादि देता है । बहन निश्चिन्त होती है कि मैं अकेली नहीं हूँ मेरे साथ मेरा भैया है।

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दिवाली के तीसरे दिन आनेवाला भाईदूज का यह पर्व बहन के संरक्षण की याद दिलानेवाला एवं बहन द्वारा भाई के लिए शुभकामनाएं करने का पर्व है। इस दिन बहन को चाहिए कि वह अपने भाई की के लिए यमराज से अर्चना करे एवं इन अष्ट चिरंजीवियों के नाम का स्मरण करे मार्कण्डेय, बलि व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा एवं परशुराम ‘मेरा भाई चिरंजीवी हो ऐसी उनसे प्रार्थना करे तथा मार्कण्डेयजी से इस प्रकार प्रार्थना करे ।

मार्कण्डेय महाभाग सप्तकल्पजीवितः।
चिरंजीवी यथा त्वं तथा मे भातारं कुरुः॥

हे महाभाग मार्कण्डेय आप सात कल्प के अंत तक जीनेवाले चिरंजीवी है जैसे आप चिरंजीवी वैसे मेरा माई भी दीर्घायु हो। (पद्मपुराण) इस प्रकार भाई के लिये मंगल कामना करने का एवं भाई-बहन के पवित्र स्नेह का पर्व है भाईदूज।

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