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Tag Archives: कि यानी हिज्र को जानां हम लोगो से छुपाते हैं..

तूम्हारी याद के स्याही को रो रो के मिटाते हैं, कि यानी हिज्र को जानां हम लोगो से छुपाते हैं..

मेरी गज़लें जो पढ़ते है, मुझे सायर तो वे कहतें। मगर हम तुझमें खो करके, तुम्हे गीतों में गाते हैं।। लखनऊ विश्वविद्यालय में चल रहे संस्कृति सुरभि महोत्सव के तीसरे दिन की सुरुवात इन्ही प्रेमपूर्ण पंक्तियों के साथ हुई। इस महोत्सव के तीसरे दिन ‘बज्म-ऐ-कलम, हिंदी कविता प्रतियोगिता का आयोजन ...

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