डलमऊ/रायबरेली। यूं ही बेसबब ना फिरा करो,कोई शाम घर पर भी रहा करो, वह ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके चुपके पढ़ा करो, कोई हाथ भी न मिलाएगा,जो गले मिले होंगे इत्तेफाक से, ये नए मिजाज का शहर है जनाब,जरा फासले से मिला करो। ऐसा ही कुछ कहना डलमऊ ...
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