‘ग्लोबल वार्मिंग’ अब एक जानामाना शब्द बन गया है। दुनिया मे कहीं प्रचंड बाढ़ आती है, तो कहीं भीषण अकाल पड़ रहा है, तो कहीं भूकंप आ रहा है, तो कहीं ज्वालामुखी फट रही है। ऋतुचक्र बदल रहा है। बरसात देर से शुरू होती है और देर से खत्म होती है। फ्रांस और स्विट्जरलैंड जैसे देश बारहों महीने बर्फ से आच्छादित आल्स पर्वत से घिरे हैं। वहां 45 डिग्री गर्मी पड़ती है। यूरोप के देश इस गर्मी के आदी नहीं हैं। पेरिस के रास्तों पर ठंडक के लिए फौव्वारे की व्यवस्था करनी पड़ती है। यह एक खतरनाक परिस्थिति है।
अगर ऋतुचक्र का यह परिवर्तन इसी तरह चलता रहा तो आने वाले सालोें में यूरोप के देशों में रहने वाले लोगों का जीवन मुश्किल भरा हो जाएगा। इस सब का कारण है अनियंत्रित औद्योगीकरण। रोजाना अरबों मोटर कारों का धुआं, उससे एत्सर्जित होने वाली हवा धरती के वातरवरण को विचलित कर रही है। लोगों का आधुनिक यंत्रें पर आधारित जीवन प्राकृतिक आपदाएं लेकर आ रहा है।
एक शोध के अनुसार 2000 से 2020 के बीच हिमालय के ग्लेशियर्स पिघल कर अरबों टन बर्फ गंवा चुके हैं। पिघलने वाली बर्फ की मात्र 1975 से 2000 तक पिघली बर्फ से दो गुनी होने की संभावना है। बर्फ के पिघलने से नदियों में बाढ़ आ सकती है। बढ़ रही गर्मी के कारण पिछले 40 सालो में हिमालय के ग्लेशियर्स की एक चौथाई बर्फ पिघल गई है। यही हाल अंटार्कटिका का भी है। अंटार्कटिका की बर्फ भी पिघल रही है। माना जाता है कि अंटार्कटिका और अंटार्कटिका के बाद दुनिया का तीसरा हिस्सा सबसे अधिक बर्फ हिमालय पर ही है। हिमालय पर स्थित कैलास पर्वत तो देवों के देव महादेव का निवासस्थान है। यह ऐसा हिमालय है, जहां हिमालय और मैना की बेटी के रूप में जन्मी देवी उमा ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी।
यह वही हिमालय है जहां ध्यान मेें बैठे शिव की नजर तपस्या कर रही उमा की ओर जाए, शिव उमा से विवाह करें और उनसे जो बेटा पैदा हो वह तारकासुर का वध करे। शिव को विचलित करने के लिए देवताओें ने कामदेव का सहारा लिया। कामदेव ने पुष्पधन्वा तीर चला कर शिव का ध्यान भंग किया। उनकी नजर उमा पर पड़ी और फिर ध्यान में जाकर शिव ने पता कर लिया कि यह कृत्य कामदेव का है। यह जानने के बाद अपना तीसरा नेत्र खोल कर कामदेव को जला कर राख कर दिया। परंतु देवताओं की इच्छा पर शिव उमा के साथ विवाह के लिए सहमत हुए और उनसे जो बेटा पैदा हुआ कार्तिकेय, उसने तारकासुर का वध कर देवताओं की रक्षा की। इस तरह का पवित्र हिमालय अब अपना असली प्राकृतिक स्वरूप खो रहा है।
कोलंबिया यूनीवर्सिटी के लामोर-डोहर्टी अर्थ ऑब्जर्वेटरी के वैज्ञानिक जोशुआ मोरेर ने एक शोध के बाद बताया है कि हिमालय के इस क्षेत्र में एक डिग्री सेल्सियस गर्मी बढ़ी है। इस शोध में सहायक की भूमिका अदा करने वाले जोअर्ग स्काफर ने बताया है कि हिमालय पर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि एक बड़ा परिवर्तन है। हिमालय के ग्ललेसियर्स में बर्फ की क्षति तापमान की वृद्धि के कारण हुई है और इस बात की जानकारी उपग्रहों द्वारा ली गई तस्वीरों से हुई है।
अमेरिका के एच-9 हेक्सागॉन मिलिटरी उपग्रह ने हिमालय की तस्वीरोें को लिया था। इस उपग्रह ने 1973 से 1980 के बीच हिमालय की तमाम तस्वीरें ली थीं। इस उपग्रह द्वारा ली गई तस्वीरें सार्वजनिक की गई थीं और उन तस्वीरों को 3-डी मॉडल में बदला गया था। उन तस्वीरों के मॉडल्स को अभी जल्दी दूसरे उपग्रह द्वारा ली गई हिमालय की तस्वीरों से मिलाया गाय। चार वैज्ञानिकों ने हिमालय की लगभग 600 तस्वीरों को देखा है।
ग्रीनलैंड की अपेक्षा हिमालय के ग्लेशियर्स का अध्ययन बहुत कम हुआ है। क्योंकि यह दुनिया के सब से अधिक खतरनाक क्षेत्रें में से एक है। वैज्ञानिकों का कहना है कि भौगोलिक और राजनैतिक मर्यादाओं के कारण यहां शोध का काम मुश्किल हो जाता है।
हिमालय की पर्वतमाला लगभग 15 सौ मील लंबी है। इसी हिमालय से गंगा, यमुना ब्रह्मपुत्र, सिंधु जैसी अनेक नदियां निकलती हैं। बर्फ पिघलने का सीधा मतलब यह है कि स्थिर ग्लेशियर्स की तुलना में नदियों में जलप्रवाह बढ़ेगा, जिसके कारण उसमें से निकलने वाली नदियों में बाढ़ आ सकती है। इसके अलावा दूसरे अनेक सरोवर बन सकते हैं। ये तालाब भी आकस्मिक और विनाशकारी बाढ़ ला सकते हैैं। नेपाल में पोखरे के आसपास के गांवों मेें इसी कारण 2012 में प्रचंड बाढ़ आई थी और एक ही जलप्रवाह 60 लोगों को बहा ले गया था।
हिमालय पर शोध कर रहे ब्रिटिश ग्लेशियर वैज्ञानिक डंकन क्वींस का कहना है कि ग्लेसियर जिस तेजी से पिघल रहे हैं, वह चिंताजनक है। डंकन क्वींस नेपाल के खूंबु ग्लेसियर में एवरड्रिल नाम का एक प्रोजेक्ट चला रहे हैं। इस प्रोजेक्ट के शोध में ग्लेसियर में बहुत गहराई तक ड्रिलिंग की जाती है और बर्फ के तापमान पर नजर रखी जाती है। एवरड्रिल के आंकड़ों से पता चला है कि ग्लेसियर अंदर से गरम हो रहे हैं और संभवतः बर्फ बहुत ज्यादा मात्र में पिघलने की बिंदु तक पहुंच गई है। काठमांडू स्थित इंटरनेशनल सेंटर फार इंटिग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग ग्लेसियरयुक्त ठंडे पर्वतों को एक सदी में कोराक्ट पर्वतों में बदल देगा।
हिमालय के ग्लेशियर्स पर 350 जितने शोध करने वालों द्वारा किए गए शोध के बाद यह चेताननी दी गई है कि अगर 2100 तक में खनिज तेल और उसके उत्सर्जन में ज्यादा से ज्यादा कमी नहीं हुई तो हिमालय अपनी लगभग 66 प्रतिशत बर्फ खो देगा। कोलंबिया यूनीवर्सिट के वैज्ञानिक स्काफर ने कहा है कि भीषण गर्मी और हिमालय के कम होते जलप्रवाह के कारण एशिया को एक भारी विपत्ति का सामना करना पड़ेगा। इस खतरे से बचने के लिए सामाजिक जागरूकता के साथसाथ अर्थव्यवस्था के स्वरूप को भी बदलना पड़ेगा।