सालों से युद्धग्रस्त अफगानिस्तान ( war-torn Afghanistan ) में शांति बहाली को लेकर अमरीका व तालिबान के बीच बीते दिनों एक अहम समझौता ( America-Taliban Agreement) हुआ. इस समझौते के साथ ये तय हो गया कि अब एक बार फिर से अफगानिस्तान ने तालिबानी शासन की ओर कदम बढ़ा दिया है.
अमरीका व तालिबान के बीच हुए समझौते को लेकर अफगानी खुश तो हैं, लेकिन साथ ही साथ इस तालिबानी शासन की कल्पना कर वे अभी से ही खुद को डरा महसूस कर रहे हैं. खासकर अफगानिस्तान ( Afghanistan ) की महिलाएं तालिबानी शासन को लेकर खासा चिंतित हैं.
महिलाएं अपने देश में शांति बहाली के इस समझौते का स्वागत तो कर रही हैं, लेकिन अपनी आजादी की मूल्य पर नहीं. अफगानिस्तान की महिलाएं पुराने दिनों की यातना, पाबंदियां व संकट को याद कर फिर से घबरा रही हैं. स्त्रियों का बोलना है कि सालों बाद फिर से हमें वही सब करना पड़ेगा जिससे हमें छुटकारा मिला था.
अमरीका ने 2001 में अफगानिस्तान में सेना तैनात किया था. उसके बाद पांच वर्ष तक वहां पर तालिबानी शासन रहा. इस बीच तालिबान ने कठोर कायदे-कानून को लागू करते हुए अफगानिस्तान में शासन किया व शरिया कानून के तहत स्त्रियों को एक कैदी की तरह ज़िंदगी जीने को विवश कर दिया.
हालांकि जब तालिबानी शासन समाप्त हुआ तो रूढ़िवादी ग्रामीण अफगानिस्तान ( conservative rural Afghanistan ) की तुलना में काबुल जैसे शहरी क्षेत्रों में स्त्रियों के ज़िंदगी में बहुत ज्यादा परिवर्तन आया.
महिलाओं को पढ़ने या कार्य करने का अधिकार नहीं
तालिबानी शासन में स्त्रियों पर कई तरह की पाबंदियां होती है. स्त्रियों को पढ़ने-लिखने या घर से बाहर जाकर कार्य करने की इजाजत नहीं होती है. इसके अतिरिक्त स्त्रियों को पर्दा यानी बुर्का में रहना होता है. लेकिन लेकिन आज के दौर में अफगानिस्तान में स्त्रियों को सभी कार्य करने की आजादी है.
देश के पश्चिमी शहर हेरात में बतौर सेल्सवुमेन कार्य करने वाली 32 वर्षीय सेतारा अक्रीमी ( Setara Akrimi ) ने अपना दर्द बयां करते हुए बताया ‘मैं बहुत खुश होऊंगी यदि देश में शांति आती है व तालिबान हमारे लोगों को मारना बंद कर दे’.
हालांकि उन्होंने संभावना जाहिर की है कि यदि तालिबान सत्ता में आता है। । अपनी पुरानी मानसिकता के साथ, मेरे लिए चिंता की ये सबसे बड़ी बात है. यदि वे कहते हैं कि मैं घर में बैठ जाऊं, तो मैं अपने परिवार की मदद नहीं कर पाऊंगी. उन्होंने आगे बोला कि अफगानिस्तान में इस तरह की हजारों महिलाएं हैं, व हम सभी इससे चिंतित हैं.
तालिबान की मानसिकता में नहीं होगा परिवर्तन ( No change in Taliban mentality)
अक्रीमी की चिंता का समर्थन करते हुए पशु डॉक्टर तेहरा रेज़ाई भी मानती हैं कि तालिबान के आने से स्त्रियों के अधिकार जैसे आजादी व स्वतंत्रता छीन जाएगी. उन्होंने बोला कि तालिबान की मानसिकता में कोई परिवर्तन नहीं होगा. उन्होंने बोला कि इतिहास को देखते हुए मुझे ऐसा नहीं लगता है कि स्त्रियों के लिए कार्य करने पहले की तुलना में ज्यादा मुश्किल होगा.
इसी ढंग से कई स्त्रियों ने बोला है कि हर कोई अफगानिस्तान में शांति चाहता है, लेकिन तालिबान की वापसी नहीं. वे लोग इस तरह की तथाकथित शांति नहीं चाहते हैं.