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नजरिया: युद्ध, अर्थव्यवस्था और मानवता की चुनौतियों के बीच हैरान करती है सैन्य खर्च में बढ़ोतरी

पवित्र ग्रंथ बाइबिल कहती है कि अगर कोई तुम्हारे दाएं गाल पर तमाचा मारे, तो बायां गाल भी उसकी ओर कर दो।’ ये शब्द कितने ही बुद्धिमानी से भरे हों, लेकिन ये मनुष्यों और राजाओं को अपनी सीमाओं के विस्तार के लिए हथियार उठाने से कभी रोक नहीं पाए। युद्धों में पैसा ही नहीं, लोगों की जिंदगियां भी खर्च हो जाती हैं। आधुनिक युद्धों की शब्दावली जिन लड़ाकू विमानों और मिसाइलों से भरी है, जरा उनके संचालन की लागत पर गौर करें। बहुचर्चित एफ-35 की बात करें, तो अमेरिकी सरकार 2,500 विमानों पर 17 खरब डॉलर खर्च करने की योजना बना रही है यानी कि प्रति विमान पर साढ़े सात करोड़ डॉलर का खर्च आएगा। जब यह उड़ रहा होगा, तब हर घंटे करीब 42 हजार डॉलर धुआं हो रहे होंगे। ज्यादा कुशल माने जाने वाले एफ-15 विमान की हर उड़ान में प्रति घंटे करीब 29 हजार डॉलर का खर्च आता है। आयरन डोम इस्राइल की सुरक्षा प्रणाली में कवच की तरह है। ऐसा अनुमान है कि पूरे इस्राइल में करीब दस आयरन डोम बैटरी हैं। हर बैटरी में 60 से 80 मिसाइलें हैं और हर मिसाइल की कीमत तकरीबन 40 हजार डॉलर है।

बीते रविवार को अमेरिकी सरकार ने अरबों डॉलर की अत्याधुनिक थाड प्रणाली भेजने की घोषणा की। बोईंग ने इस्राइल को 1800 जीपीएस आधारित बम किटों की शीघ्र डिलीवरी की घोषणा की, जिनमें से प्रत्येक किट की कीमत करीब 24 हजार डॉलर है। इस महीने की शुरुआत में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने पूर्वी भूमध्य सागर में 13 अरब डॉलर के विमानवाहक पोत यूएसएस गेराल्ड फोर्ड कैरियर स्ट्राइक ग्रुप की तैनाती की घोषणा की। यह ग्रुप 75 लड़ाकू जेट, रडार और मिसाइल लॉन्चर से सुसज्जित है। एक टॉमहॉक मिसाइल की कीमत 15 लाख डॉलर और एक पैट्रियट मिसाइल की कीमत करीब 40 लाख डॉलर है।

युद्ध के हथियार वगैरह बनाने वाली कंपनियों के लिए युद्ध मुनाफे का समय होता है। यह शेयरों की कीमतों में आने वाले उतार-चढ़ाव से भी स्पष्ट होता है। सात अक्तूबर के हमलों के बाद इससे जुड़ी कंपनियों के शेयरों में उछाल देखा गया। इस क्षेत्र की शीर्ष दस कंपनियों का वर्तमान बाजार पूंजीकरण 653 अरब डॉलर है। बिजनेस रिसर्च कंपनी द्वारा जारी 2023 की वैश्विक रक्षा बाजार रिपोर्ट कहती है कि 2027 तक रक्षा बाजार का आकार बढ़कर 718 अरब डॉलर का होने की उम्मीद है।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि युद्धों की इस भारी-भरकम लागत का पैसा कहां से आता है? यह दरअसल, बहुत कुछ भू-राजनीति और घरेलू राजनीति पर निर्भर करता है। अब यूक्रेन के युद्ध को ही लें। 24 फरवरी, 2022 से अमेरिकी सरकार ने 40.4 अरब डॉलर से ज्यादा की सुरक्षा सहायता की प्रतिबद्धता जताई है, जो माल्टा और यमन जैसे देशों की संयुक्त जीडीपी के लगभग बराबर है। इस हफ्ते भी व्हाइट हाउस ने इस्राइल और यूक्रेन का समर्थन करने के लिए कांग्रेस से अतिरिक्त संसाधन उपलब्ध कराने का आह्वान किया है।

पर सवाल उठता है कि आतंकवादी समूहों को धन कैसे मिल पाता है? अमेरिका और उसके सहयोगियों का मानना है कि ईरान हमास, हिजबुल्ला और हौथिस जैसे आतंकी गुटों को धन व तकनीकी मुहैया कराता है। लेकिन सवाल फिर भी बना हुआ है कि इतने प्रतिबंधों के बावजूद धन इन गुटों के पास पहुंचता कैसे है? अमेरिकी सांसद एलिजाबे वॉरेन और सौ से ज्यादा दूसरे सांसदों ने अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवान को एक पत्र लिखकर इस नई उभरती व्यवस्था की झलक दी। उनका दावा है कि अगस्त, 2021 से जून, 2023 के बीच हमास और फलस्तीनी इस्लामिक जिहाद (पीआईजे) ने क्रिप्टो में 13 करोड़ डॉलर से ज्यादा राशि जुटाने में कामयाबी हासिल की और पीआईजे ने 1.2 लाख डॉलर क्रिप्टो में हिजबुल्ला को दिए। घटनाएं बढ़ीं, तो पैसों का यह आवंटन भी बढ़ा।

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