महाकुम्भ नगर। आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास, मध्यप्रदेश द्वारा एकात्म धाम में दूसरे दिन सोमवार को ऋषि चैतन्य आश्रम की प्रमुख आनंदमूर्ति गुरू माँ ने आचार्य शंकर विरचित ‘दृग्-दृश्य विवेक’ पर प्रवचन दिए, इस अवसर पर साधु संतो सहित हजारों की संख्या में देश-विदेश से श्रोतागण उपस्थित रहे।
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उन्होंने ‘दृग्-दृश्य विवेक’ पर वक्तव्य देते हुए कहा कि वेदांत से सरल कुछ नहीं है, यह किसी ओर की नहीं, बल्कि जो तुम हो उसी की बात करता है। आत्मा का प्रतिबिम्ब जब मन रूपी जल में पड़ता है तब यह ज्ञान होता है कि आत्मस्वरूप एक है, केवल प्रतिबिम्ब अनेक है। अद्वैत वहीं है जहाँ कोई दूसरा नहीं। आत्मा का ज्ञान मन की स्थिरता में है।
दृष्टा और दृश्य के सम्बन्ध में उन्होंने कहा कि इन्द्रियों के माध्यम से मन जानता है, और जो मन के जानने को जान रहा है वह दृष्टा है। चेतन का स्वरुप ही ज्ञान है। स्वयं को मन, बुद्धि मानना अज्ञान है, अज्ञान बोध के कारण ही मनुष्य भ्रम में जीता है, जबकि हम सच्चिदानंद स्वरुप है। आचार्य शंकर ने अद्वैत दर्शन जगत के कल्याण के लिए स्थापित किया और सभी को एकता के सूत्र में जोड़ा, आज महाकुम्भ का यह विराट आयोजन आचार्य शंकर की देशना का परिणाम है।
उन्होंने कहा कि हमें शरीर के साथ तादात्मय अध्यास नहीं बनाना है। स्वामी रामतीर्थ से किसी ने पूछा कि यह संसार किसके लिए है, तो उन्होंने उत्तर देते हुए कहा कि यह संसार हमारे लिए है। आचार्य शंकर कहते है कि तुम चैतन्य स्वरूप है, दृष्टा वह है जिसका कभी उदय एवं अस्त नहीं होता।
दुनिया में शंकर एक ऐसे आदर्श जो 8 वर्ष की उम्र में अपनी माँ से जगत के कल्याण के लिए संन्यास की आज्ञा लेते है, और कालडी से चलते-चलते ओंकारेवर नर्मदा के तट पर गुरू के पास आ जाते है । वें साक्षत शिव के अनंशावतार है।
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जब वैराग्य वृत्ति पूरी हो जाती है तो साधुता या संन्यास का भाव आता है। वैराग्य वृत्ति से ही वेदांत की यात्रा प्रारम्भ होती है, संन्यास मन की श्रेष्ठतम् या उच्चतम स्थिति है। मनुष्य जब तक वासना के चंगुल में फसा रहता है तब वेदांत कठिन लगता है।आचार्य शंकर ने विचार एवं वैराग्य से लोक-कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया।
मप्र शासन के एकात्म धाम प्रकल्प की सराहना करते हुए कहा कि यह पहल अद्भुत और अविस्मरणीय है ।देख लिया दुनिया का सारा नजारा…न हम किसी के न कोई हमारा, देख लिया दुनिया का सारा नजारा सहित अनेक भक्ति गीतों पर सभागार भाव विभोर होकर अद्वैत के अमृत रस में डूबा।