सुल्तानपुर। अघोरपीठ बाबा सत्यनाथ मठ अल्देमऊ नूरपुर में मठ के पीठाधीश्वर अवधूत उग्र चण्डेश्वर कपाली बाबा के संरक्षण में तीन दिवसीय अवधूत देशना पर्व मकर संक्रांति महोत्सव आदि गुरु भगवान दत्तात्रेय, नव नथों में प्रथम नाथ अघोराचार्य बाबा सत्यनाथ की विधिवत पूजा अर्चना व ॐ नमः शिवाय पंचाक्षरी महामंत्र अखण्ड जप पाठ के साथ प्रारंभ हो गया।
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मकर संक्रांति पर्व पर अवधूत कपाली बाबा ने सनातन धर्म के इस महापर्व के बारे में बताया कि मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने का सनातन संस्कृति में अपना एक अगल महत्व है। इसलिए कहीं-कहीं मकर संक्रांति को ‘खिचड़ी’ के नाम से जाना जाता है। मकर संक्रांति का यह पर्व प्रत्यक्ष रूप से भगवान सूर्य से जुड़ा है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं।
इस दिन सूर्य धनु राशि से पारिवर्तन कर मकर राशि में आते हैं। यही कारण है कि मकर संक्रांति को सूर्य संक्रांति भी कहा जाता है।मकर संक्राति को कई जगहों पर खिचड़ी के नाम से जाना जाता है और खिचड़ी के रूप में मनाया जाता है। मकर संक्रांति के पर्व को भारत के अन्य हिस्सों में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है।
केरल, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक में इसे संक्रांति कहा जाता है। तमिलनाडु में इस पर्व को पोंगल पर्व के रूप में मनाया जाता है। पंजाब और हरियाणा में इस पर्व लोहड़ी के रूप मे लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है।मकर संक्रांति को खिचड़ी के रूप में मनाये जाने के पीछे बहुत ही पौराणिक और शास्त्रीय मान्यताएं हैं। मकर संक्रांति के इस पर्व पर खिचड़ी का काफी महत्व है।
मकर खिचड़ी को आयुर्वेद में सुंदर और सुपाच्य भोजन की संज्ञा दी गई है। साथ ही खिचड़ी को स्वास्थ्य के लिए औषधि माना गया है। प्राचीन शास्त्रीय मान्यता के अनुसार मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने का बहुत ही महत्व माना गया है। ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति पर चावल, दाल, हल्दी, नमक और सब्जियों को मिलाकर खिचड़ी बनाई जाती है।शास्त्रों में चावल को चंद्रमा का प्रतीक माना गया है। काली उड़द की दाल को शनि का प्रतीक माना गया है। हल्दी बृहस्पति का प्रतीक है। नमक को शुक्र का प्रतीक माना गया है।हरी सब्जियां बुध से संबंध रखती हैं।
खिचड़ी की गर्मी व्यक्ति को मंगल और सूर्य से जोड़ती है। इस प्रकार खिचड़ी खाने से सभी प्रमुख ग्रह मजबूत हो जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन नए अन्न की खिचड़ी खाने से शरीर पूरा साल आरोग्य रहता है। तीन दिवसीय मकर संक्रांति महोत्सव अवधूत देशना पर्व में सम्मिलित होने के लिए देश भर से श्रध्दालु, साधक अघोरपीठ बाबा सत्यनाथ मठ पर पहुंच गए हैं।
रिपोर्ट-श्याम चन्द्र श्रीवास्तव