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पुरुषों के लिए गर्भनिरोधक सुई, नसबंदी गर्भनिरोधक का सबसे अधिक इस्तेमाल

अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस पर भारतीय वैज्ञानिक एक खुशखबरी लेकर आए हैं. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने पुरुषों के लिए गर्भनिरोधक का क्लीनिकल ट्रायल सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है. यह इंजेक्शन के रूप में होगा. इसे अपनी तरह का दुनिया का पहला गर्भनिरोधक बताया जा रहा है.

पुरुषों के लिए गर्भनिरोधक के विकास में शामिल शोधकर्ताओं के मुताबिक अब इसे मंजूरी के लिए ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) को भेजा गया है.

अंग्रेजी अखबार ‘Hindustan Times’ की एक खबर के मुताबिक यह करीब 13 साल तक प्रभावी रहेगा. इसकी बाद इसकी क्षमता खत्म हो जाएगी. वैज्ञानिकों ने इसे पुरुष नसबंदी के विकल्प के रूप में विकसित किया है. नसबंदी ही दुनिया में पुरुषों का एकमात्र गर्भ निरोधक है.

आईसीएमआर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर आरएस शर्मा ने बताया, ” यह दवा तैयार है, केवल ड्रग कंट्रोलर की मंजूरी का इंतजार है. ट्रायल पूरा हो चुका है. इसके परिक्षण का तीसरा चरण भी पूरा हो चुका है. इस चरण में इसका 303 लोगों पर परिक्षण किया गया. इसमें 97.3 फीसदी सफलता मिली. इस दौरान इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं हुआ. इसे दुनिया का सबसे पहला पुरुष गर्भनिरोधक कहा जा सकता है.”

भारत में बायोमेडिकल में शोध के लिए आईसीएमआर सबसे बड़ी संस्था है. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के जरिए इसका वित्त पोषण होता है.

अमरीकी वैज्ञानिक अभी इसी तरह के एक गर्भनिरोधक पर काम कर रहे हैं.

वहीं ब्रिटेन के नेशनल हेल्थ सर्विस की बेवसाइट पर प्रकाशित एक लेख के मुताबिक वहां 2016 में एक पुरुष गर्भनिरोधक का परिक्षण किया गया था. लेकिन साइड इफेक्ट की वजह से उसे रोक दिया गया. ट्रायल वाली दवा के इस्तेमाल से मुंहासे और मूड चेंज का साइड इफेक्ट कॉमन था.

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 (2015-16) के मुताबिक भारत में 53.5 फीसदी दंपतियां किसी तरह के गर्भनिरोधक या यौन संबंध में अंतर बनाने को गर्भनिरोधक के रूप में इस्तेमाल करते हैं. नसबंदी गर्भनिरोधक का सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाता है.

इस सर्वे के मुताबिक 36 फीसदी महिलाएं नसबंदी करवाती हैं, वहीं केलल 0.3 फीसदी पुरुष ही नसबंदी करवाते हैं.

पुरुषों के लिए बनाए गया यह गर्भनिरोधक एक पॉलिमर है, इसे पुरुष को बेहोश कर स्पर्म वाली नली में इंजेक्ट किया जाएगा.

शर्मा ने बताया, ” इस पॉलिमर का विकास आईआईटी के प्रोफेसर एसके गुहा ने 1970 के दशक में किया था. आईसीएमआर ने इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करने लायक बनाने के लिए 1984 में शोध शुरू किया. व्यापक ट्रायल के बाद अब यह प्रोडक्ट तैयार है.”

ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया वीजी सोमानी ने अखबार को बताया, ” यह इस फिल्ड में भारत की ओर से विकसित दुनिया का पहला प्रोडक्ट है, इसलिए इसे मंजूरी देने में हम अतिरिक्त सतर्कता बरत रहे हैं. हम इसके सभी पहलुओं पर ध्यान दे रहे हैं, खासकर गुड मैन्यूफैक्चरिंग (जीएमपी) सर्टिफिकेशन पर. इससे इसकी गुणवत्ता को लेकर कोई सवाल नहीं उठेगा. इस उत्पाद के व्यावसायिक उत्पादन से पहले इसे सभी तरह की मंजूरी देने में छह-सात महीने का समय लगेगा.

भारत में किसी मेडिकल उत्पाद को बनाने, बिक्री और वितरण के लिए ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया की मंजूरी जरूरी है.

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