Breaking News

अपराधियों के राजनीतिकरण पर न्यायमूर्ति दिनेश सिंह के विचार लोकतंत्र हितकारी व प्रशंसनीय: गणेश ज्ञानार्थी

इटावा। सामाजिक कार्यकर्ता गणेश ज्ञानार्थी ने एक विज्ञप्ति में उप्र. उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ के न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की उस टिप्पणी को स्वागत योग्य बताया है।

जिसमें उन्होने कहा है कि ‘‘निर्वाचन आयोग और संसद को राजनीति से अपराधियों को बाहर करने के लिये समुचित कदम उठाने चाहिये और राजनेताओं, अपराधियों और नौकरशाहों के बीच के अपवित्र गठबन्धन को मिटा देना चाहिये।’’ दिग्भ्रमित, पथभ्रष्ट और लोकतंत्र विरोधी साबित हो रही विगत 4 दशक की राजनीति से दुर्दशाग्रस्त समाज की दशा से आहत यह टिप्पणी आम जनमानस की वेदना है जो आवाज-ए-खलक के स्वरूप में साहसिक न्यायमूर्ति दिनेश सिंह की आत्मा की आवाज के रूप में सामने आयी है, इसलिये वे भूरि-भूरि प्रशंसा के पात्र हैं।

स्तम्भकार ज्ञानार्थी ने कहा कि 2004 से 2019 तक 15 वर्ष में 19 प्रतिशत आपराधिक छवि के लोगों की संसद में वृद्धि यानी अपराधी मानसिकता के 43 प्रतिशत लोगों के संसद में प्रवेश पर न्यायमूर्ति ने संज्ञान लेकर सम्पूर्ण समाज को आइना दिखाया और संसद से अपेक्षा व्यक्त की कि आपराधिक छवि के लोगों को राजनीति में आने से रोकें और लोकतंत्र को बचायें।

ज्ञानार्थी ने कहा कि यद्यपि सर्वोच्च न्यायालय बार-बार यही सब कुछ कह चुका है । सब बेशर्मी से चुप हैं। यदि सर्वोच्च व उच्च न्यायालयों के माननीय न्यायमूर्तिगण एक राय होकर अपराधशील लोगों की राजनीति से बेदखल करने पर मन बना लें, और पत्रकारिता के धुरंधर ऐसे समाज विरोधी लोगों का महिमामंडन करना बंद कर दें और उनके जनहित विरोधी कथनों का प्रसारण बंद कर दें तो सम्भव है कि राजनीति को धनपशुओं और अपराधियों की चारागाह बनाने वाले राजनैतिक दलों की आत्मा जाग जाये और वे लोकतंत्र को नष्ट करने और लोकतंत्र के मंदिरों संसद व विधानसभाओं को अपवित्र करने का पाप बंद कर दें।

काले धन और राजनीति के अपराधीकरण के मुद्दे पर चार बार लोकसभा चुनाव लड़ चुके ज्ञानार्थी ने 1991 में मुख्य चुनाव आयुक्त रहे टीएन शेषन की प्रशंसा करते हुये कहा कि उन्होने लोकतंत्र के तत्कालीन स्वरूप पर जो टिप्पणियां की थीं, राजनीति को अपराधियों से मुक्त रखने के लिये जो सख्त लहजा अपनाया था तथा राजनीतिज्ञों को जो नसीहतें दी थीं, वे भारतीय लोकतंत्र को पुनर्जीवित, परिकुष्ट और जनहितकारी बना सकती थीं मगर देश में उकेवल अटल जी ही थे जिन्होने इसका संज्ञान लिया और संसद में दहाड़ते हुये कहा था कि ‘‘काले धन से धवल राजनीति का जन्म नहीं हो सकता और अपराधशील लोगों द्वारा बनाये गये कानून देश का भला नहीं कर सकते।’’

ज्ञानार्थी ने कहा कि शेषन के बाद चुनाव आयोग की पहचान खास बनी मगर महाभ्रष्ट नौकरशाहों ने अपराधियों की नाक में नकेल डालने के बजाय उनसे वसूली कर उन्हें माननीय बनाने का पाप किया जिसकी सजा गरीब की आह के रूप में वे खुद व उनकी संतति भुगताने को अभिशप्त है व रहेगीउनका कहना है कि सर्वोच्च समाज सेवा व देश सेवा में जीवन खपाने वाले कार्यकर्ता क्रान्तिकारी विचारक और वास्तविक नेता हर दल में हैं मगर उन्हें हाशिये पर रखकर राजनीति के धुरंधरों ने धन पशुओं, धन कुबेरों और अपराधियों के सामने समर्पण करके राजनीति के सत्य और लोकतंत्र का सत्यानाश कर लिया है। विचारवानों को अब राजनीति से घृणा होने लगी है इसीलिए मतदान प्रतिशत नहीं बढ़ता और न ही अच्छे लोग राजनीति में आने की हिम्मत करते हैं। मोदी-योगी युग में भी यह दशा चिन्ताजनक व दुर्भाग्यपूर्ण है।

रिपोर्ट-शिव प्रताप सिंह सेंगर 

About Samar Saleel

Check Also

छात्रों को निःशुल्क इंडस्ट्री ट्रेनिंग के लिए अविवि व वेकनो टेक्नोलाॅजी के बीच अनुबंध

• सोशल मीडिया सहित अन्य प्लेटफार्म क्लाउड कंप्यूटिंग स्टोरेज से संचालितः गौरव सक्सेना अयोध्या। डाॅ ...