साल 2050 तक दुनिया में चार में से एक व्यक्ति को सुनाई देना बंद हो जाएगा. ऐसे लोगों की आबादी 2.5 अरब होगी. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इसकी चेतावनी दी है. WHO ने अपनी पहली ‘World Report on Hearing’ को बुधवार को जारी किया. इसमें स्वास्थ्य निकाय ने कहा, साल 2050 तक 2.5 अरब लोगों की कुछ हद तक सुनने की क्षमता प्रभावित (Hearing Impairment) होगी. वहीं, 70 करोड़ लोगों की आबादी ऐसी होगी, जिन्हें इस परेशानी के लिए रिहैब से गुजरना होगा. दूसरी ओर, ऐसा नहीं करने वाले लोगों को स्वास्थ्य समस्याओं से गुजरना होगा. इसके अलावा संचार, शिक्षा और रोजगार जैसे क्षेत्रों में पीड़ित व्यक्ति के पिछड़ने से उन्हें आर्थिक नुकसान भी होगा.
इस रिपोर्ट में कहा गया है, वर्तमान समय में जब दुनिया कोरोनावायरस महामारी से गुजर रही है. ऐसे में सुनने की क्षमता को कम होने से रोकने के लिए निवेश और प्रयासों की बेहद जरूरत है. बहरापन के मामलों को प्रभावी और मौजूदा उपायों के जरिए रोका जा सकता है. करीब एक अरब युवा लोग सुनने के जोखिम से बचाया जा सकता है. वहीं, 20 करोड़ लोग ऐसे हैं, जो ऐसे कान के संक्रमण से जूझ रहे हैं, जिसे बढ़िया इलाज के जरिए रोका जा सकता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इनोवेटिक, लागत-प्रभावी तकनीकी और क्लिनिकल उपायों के जरिए बहुत से लोगों के बहरेपन का इलाज किया जा सकता है.
सुनने की क्षमता सबसे मूल्यवान: WHO प्रमुख
WHO की रिपोर्ट में कहा गया, बेहतर चिकित्सा उपायों के जरिए लाखों लोग अभी लाभ उठा रहे हैं. तकनीक और सार्वजनिक स्वास्थ्य रणनीति के मिश्रण से इस लाभ को हर किसी तक पहुंचाया जा सकता है. खासतौर पर दुनिया के सूदूर क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को इसके जरिए लाभ दिया जा सकता है. WHO के महानिदेशक टेड्रोस अदनोम घेब्रेसस (Tedros Adhanom Ghebreyesus) ने कहा कि सुनने की हमारी क्षमता सबसे मूल्यवान है. उन्होंने कहा, बहरेपन का इलाज नहीं होने से व्यक्ति को संवाद करने, अध्ययन करने और जीविका अर्जित करने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है.
बहरेपन से हर साल एक ट्रिलियन डॉलर का हो रहा नुकसान
World Hearing Day के मौके पर तीन मार्च को लॉन्च हुई इस रिपोर्ट में इस बात को रेखांकित किया गया है कि बहरेपान को रोकने के लिए तेजी से कदम उठाने की जरूरत है. इसके लिए सरकार को बहरेपन की सेवा देने वाले केयर सर्विस में निवेश करना होगा और इसका दायरना बढ़ाना होगा. इसमें कहा गया है कि इस बीमारी के फैलने की वर्तमान रफ्तार पर हर साल 1 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हो जाता है. अगर आने वाले वक्त में कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता है, तो ये आंकड़ा तेजी से बढ़ सकता है.