लखनऊ। गायत्री मंत्र की महिमा अपार है। इसे महामंत्र कहा गया। आधुनिक युग में पूज्य आचार्य श्री राम शर्मा ने अपनी कठोर साधना से इसे जन जन के लिए सुलभ कराया। गायत्री मंत्र का नित्य जाप करने वालों की आध्यात्मिक उन्नति होती है। आचार्य श्रीराम ने अपने नाम से किसी संस्था का निर्माण नहीं किया। उन्होंने युग निर्माण योजना अभियान प्रारंभ किया था। आगे चल कर गायत्री परिवार के रूप में इसको पहचान मिली।
आचार्य जी ने गायत्री की दैनिक साधना और यज्ञ की अत्यंत सरल पद्धति से लोगों को अवगत कराया। उन्होंने आडंबर को कोई स्थान नहीं दिया। इसी प्रकार हिंदुओं के सभी संस्कारों को वेदों के निर्देश के अनुरूप मंत्रबद्ध किया। इसे भी सहज बनाया। देश ही नहीं विदेशों में भी गायत्री पीठों की स्थापना की गई। यहां गायत्री साधना के साथ संस्कारों की प्रेरणा व अनुष्ठान की गतिविधियां चलती है।
विशालखण्ड तीन गोमती नगर में पंच कुंडीय गायत्री हवन का आयोजन किया गया। स्थानीय नागरिकों ने सपरिवार हवन में आहुति दी। शक्तिपीठ की बहनों ने यज्ञ में पुरोहित की भूमिका का निर्वाह किया। आचार्य जी ने इसकी प्रेरणा भी दी थी। उन्होंने महिलाओं को बराबरी का स्थान दिया। इतना ही नहीं उंन्होने जातिभेद से ऊपर उठकर सभी से गायत्री साधना करने का आह्वान किया। उन्होंने वैदिक सन्दर्भो से प्रमाणित किया कि गायत्री साधना में किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाता था। साधक को समाज के लिए समय व क्षमता के अनुरूप अंश दान भी करना चाहिए। दान सदैव सुपात्र संस्थाओं को ही देना चाहिए। जिन लोगों में कोई प्रतिभा हो,उन्हें भी समाज की हित में समय दान करना चाहिए।
गुरु की सूक्ष्म सत्ता के संरक्षण में गायत्री मंत्र की साधना फलीभूत होती है। आध्यात्मिक चेतना का जागरण होता है। दीक्षा की व्यवस्था इसी भाव से की गई है। सुख दुख की अनुभूति से व्यक्ति ऊपर उठता है। चार आश्रम बताए गए। लेकिन अब लोग ग्रहस्थ आश्रम से निकलना ही नहीं चाहते। वानप्रस्थ और सन्यास के विषय में कोई चिन्तन नहीं किया जाता। आचार्य श्रीराम शर्मा ने इसका भी मार्ग बताया। अब पहले जैसा वानप्रस्थ व सन्यास सहज नहीं है। लेकिन ग्रहस्थ जीवन के दायित्व पूरे करने के बाद निःस्वार्थ समाजसेवा करनी चाहिए। गायत्री परिवार सहित अनेक संस्थाओं के माध्यम से यह कार्य किया जा सकता है। इससे वानप्रस्थ व सन्यास दोनों आश्रम पर अमल किया जा सकता है।
रिपोर्ट-डॉ. दिलीप अग्निहोत्री