आपदा अचानक ही आती है और संभलने का वक्त नहीं देती। महामारी को तुरंत रोकना किसी के हाथ में नहीं होता। अन्यथा सर्वाधिक संसाधन वाले देश अमेरिका में मौत का आकड़ा सबसे अधिक नहीं होता। इसलिए यह सवाल उठाना ठीक नहीं है कि पहले से तैयारी नहीं थी, या रोकने के लिए किसी ने कुछ नहीं किया। टेस्ट, ट्रैक और ट्रीट की नीति पर चलना ही इस आपदा से निकलने का मंत्र है।
आज उत्तर प्रदेश में करीब सवा चार करोड़, महाराष्ट्र, कर्नाटक में करीब तीन करोड़ और दिल्ली में करीब दो करोड़ टेस्ट हो चुके हैं। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में 01 दिन में लगभग तीन लाख तक टेस्ट हुए। बिना सरकारी प्रयास और नेतृत्व की सोच के यह संभव नहीं था। 25 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में टेस्ट, ट्रैक की नीति अपनाना आसान नहीं। किसी डॉक्टर की opd में 200 की जगह 400 मरीज आ जाते हैं, तो संभालने में हालत खराब हो जाती है।
यहां सुदूर के गांव में फैली इतनी बड़ी आबादी की स्क्रीनिंग करनी थी। लेकिन 60 हजार से अधिक निगरानी समिति के चार लाख सदस्य गांव- गांव घूमकर संक्रमित की पहचान करने, उन्हें रेपिड रिस्पांस टीम से टेस्ट कराने और दवा की किट पहुंचाने में जुटे, तो इसका प्रभाव भी दिखा। उत्तर प्रदेश के इस मॉडल को अन्य राज्यों में लागू किया जा सकता है। आज उत्तर प्रदेश में 10 दिन में 95,000 मामले कम हुए हैं। रिकवरी की दर लगातार बढ़ रही है।
उत्तर प्रदेश की आबादी 25 करोड मृत्यु लगभग16000, दिल्ली में आबादी 1.75 करोड मृत्यु 20,000, महाराष्ट्र में आबादी 12 करोड़ मृत्यु लगभग 58,000 हुई है।
समस्या यह है, कि संक्रमण गांवों तक पहुंच गया है। वहां जनव्यव्हार में अज्ञानता का भी हाथ है। यहां लोग उच्च स्तरीय चिकित्सा असुविधा के लिए शहरी मुख्यालय पर निर्भर है। इसलिए दवाब बढ़ने से पहले सामुदायिक प्रयत्न तेज किए जाने चाहिए। टेस्ट, ट्रैक और ट्रीट के मंत्र के साथ तीसरी लहर से निपटने के लिए वहां भी मेडिकेशन, ऑक्सीजन और वेक्सिनेशन पर ताकत लगानी होगी।
अच्छी बात है कि अब स्वास्थ ढांचे के विस्तार पर बात होने लगी है। शुरुआती दौर में ना-नुकुर करनेवाले लोग भी अब तेजी से वैक्सीन लगवा रहे हैं।18 वर्ष से ज्यादा की नई उम्र सीमा के लोगों में दिख रहा उत्साह कोरोना के आगे जिंदगी को सकारात्मक आयाम देगा। यह लड़ाई सिर्फ स्वास्थकर्मियों या सरकार की नहीं है, इसमें समाज की भी अहम जिम्मेदारी है।