लखनऊ। ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय में भारतीय भाषा समिति (शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार) के सहयोग से “इंटरनेट टूल्स के माध्यम से अनुवाद: चुनौतियां एवं समाधान” विषय पर तीन दिवसीय कार्यशाला के प्रथम दिन प्रो राणा कृष्णपाल सिंह, कुलपति डॉ शकुंतला मिश्रा पुनर्वास विश्वविद्यालय मुख्यातिथि रहे। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रो फखरे आलम, विभागाध्यक्ष, उर्दू विभाग तथा कार्यशाला के अध्यक्ष विश्वविद्यालय कुलपति प्रो एनबी सिंह, केएमसी भाषा विश्वविद्यालय रहे। कार्यशाला का आरंभ कलश में जल भरने और सरस्वती वंदना से हुआ। कार्यशाला के समन्वयक प्रो मसूद आलम ने स्वागत भाषण देकर अतिथियों का परिचय कराया तथा कार्यशाला की रूपरेखा बताई।
प्रो फखरे आलम ने अलग अलग भाषाओं में शब्दों के अनुवाद पर प्रकाश डाला। उन्होंने भतृहरि, इकबाल, रसखान, कबीरदास, तुलसीदास आदि का उदाहरण देते हुए कहा कि जिसके पास लफ्जों की ताकत हो उसे तख्ते ताज की जरूरत नहीं।
प्रो राणा कृष्णपाल ने अपने वक्तव्य में कहा कि अनुवाद केवल शब्दों का ही नहीं भावनाओं का भी होना आवश्यक है अगर विषयवस्तु से भावना समाप्त हो जाएगी तो वह मृत हो जाएगी। कार्यशाला की अध्यक्षता कर रहे प्रो एनबी सिंह ने कहा कि #भाषा_विश्वविद्यालय में अलग अलग भाषाओं के विशेषज्ञ तथा तकनीकी रूप से सक्षम विद्यार्थी एवं शिक्षक मौजूद है और इन्हें साथ आकर अनुवाद के क्षेत्र में कार्य करना चाहिए।
कार्यक्रम के तकनीकी सत्र में बाबा गुलाम शाह बादशाह यूनिवर्सिटी, राजौरी, जम्मू कश्मीर से आये एसोसिएट प्रोफेसर, डॉ शम्स कमाल अंजुम ने गूगल से अनुवाद की प्रामाणिकता पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि गूगल से किया जाने वाला अनुवाद पूरी तरह से शुद्ध नहीं होता और उसे एक बार मानवीय दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। उन्होंने विद्यार्थियों को बताया कि किसी भी अनुवाद को करने से पूर्व अनुवाद की जाने वाली सामग्री को कम से कम एक बार पढ़ लेना चाहिए और उसका मतलब समझ आने पर ही अनुवाद करना चाहिए। उन्होंने गूगल ट्रांसलेट द्वारा की जाने वाली कुछ अशुद्धियों के उदाहरण भी छात्रों से साझा किए। अपने व्याख्यान के अंत में उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों को अपनी रुचि के विषय का ही अनुवाद करना चाहिए।
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कार्यक्रम के दूसरे भाग में डॉ एपीजे अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय के उप कुलपति प्रोफेसर मनीष गौर ने अलग अलग मशीनी ट्रांसलेटर द्वारा की जाने वाली अनुवाद के चरणों का विद्यार्थियों के साथ साझा किया। उन्होंने गूगल द्वारा की जाने वाली “स्ट्रिंग मैचिंग” भी विद्यार्थियों को समझाई, साथ ही नॉलेज इंजीनीरिंग तथा लर्निंग इंजीनीरिंग के बीच का अंतर भी समझाया। कार्यशाला के अंत में सभी विद्यार्थियों ने वक्ताओं से प्रश्न भी पूछे गए।
कार्यक्रम में मंच का संचालन डॉ रुचिता सुजाय चौधरी, सहायक आचार्य, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग द्वारा किया गया कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम की उपसमन्वयक शान-ए-फातिमा, सहायक आचार्य, कंप्यूटर साइंस एवं अभियांत्रिकी विभाग द्वारा दिया गया। प्रथम दिन के कार्यक्रम में जम्मू कश्मीर, नई दिल्ली, अलीगढ़, बिहार तथा देश के अन्य हिस्सों से आए अनेक विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों ने प्रतिभाग किया। दूसरे दिन के कार्यक्रम में प्रो रिजवानुर्रहमान, अध्यक्ष, अरेबिक एंड अफ़्रीकन स्टडीज़ जेएनयू, प्रो सूरज बहादुर थापा, हिंदी विभाग, लखनऊ यूनिवर्सिटी, डॉ रचना विश्वकर्मा तथा डॉ विनय कुमार मुख्य वक्ता होंगे।