संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष डेनिस फ्रांसिस ने कूटनीति में महिला दिवस के मौके पर भारत की नारीवादी नेता और राजनयिक हंसा मेहता को श्रद्धांजलि अर्पित की। साथ ही मानवाधिकारों के सार्वभौमिक डिक्लेरेशन को आकार देने और उन्हें अधिक समावेशी बनाने में उनकी भूमिका की चर्चा की। हंसा मेहता को मानवता के पर्याय के रूप में पुरुषों के संदर्भ को मनुष्य से बदलने का श्रेय जाता है। संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकारों के सार्वभौमिक डिक्लेरेशन (घोषणा) के अुच्छेद 1 में ‘सभी पुरुष स्वतंत्र और समान पैदा होते हैं’ के वाक्य की जगह ‘सभी मनुष्य स्वतंत्र और समान पैदा होते हैं’ बलदने के लिए हंसा मेहता को जाना जाता है।
‘हंसा मेहता ने इतिहास की बाधाओं को तोड़ा’
यूएनजीए अध्यक्ष डेनिस फ्रांसिस ने कहा कि ‘हंसा मेहता ने इतिहास की बाधाओं को तोड़ा और बहुपक्षवाद को समृद्ध किया।’ फ्रांसिस ने भावुक होकर सवाल उठाया कि ‘क्या मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा आज वास्तव में सार्वभौमिक होती अगर हंसा मेहता ने इसकी शुरुआती पंक्ति में ‘सभी पुरुषों’ से बदलकर ‘सभी मनुष्य’ करने पर जोर नहीं दिया होता?’ यूएनजीए अध्यक्ष ने लैंगिक समानता को आगे बढ़ाने और वैश्विक स्तर पर महिला राजनयिकों को सशक्त बनाने के लिए यूएन की प्रतिबद्धता को भी दोहराया, और अधिक न्यायपूर्ण और समावेशी दुनिया को आकार देने में अपने अपरिहार्य योगदान को मान्यता दी।
कौन थीं हंसा मेहता
हंसा मेहता एक प्रमुख भारतीय विद्वान, शिक्षिका, समाज सुधारक और लेखिका थीं। 3 जुलाई, 1897 को जन्मी मेहता महिला अधिकारों की समर्थक थीं। 1946 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन (AIWC) की अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने ‘भारतीय महिला अधिकार चार्टर’ का प्रारूप तैयार करने का नेतृत्व किया, जिसमें भारत में महिलाओं के लिए लैंगिक समानता, नागरिक अधिकार और न्याय की मांग की गई थी। वे संविधान का मसौदा तैयार करने वाली संविधान सभा का भी हिस्सा थीं। साथ ही वे संविधान सभा की सलाहकार समिति और मौलिक अधिकारों पर उप-समिति की सदस्य थीं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हंसा मेहता ने मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) के प्रारूप को तैयार करने में अग्रणी भूमिका निभाई। वह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में एलेनोर रूजवेल्ट के अलावा एकमात्र अन्य महिला प्रतिनिधि थीं।