Breaking News

बिजली कर्मियों की हड़ताल से यूपी बदहाल

लखनऊ। निजीकरण के विरोध में करीब 15 लाख बिजली कर्मियों की अनिश्चित कालीन हड़ताल ने योगी सरकार को हिला कर रख दिया है। इन कर्मचारियों में जूनियर इंजीनियर, उप-विभागीय अधिकारी, कार्यकारी इंजीनियर और अधीक्षण अभियंता शामिल हैं। बिजली कर्मचारियों ने चेतावनी दी है कि अगर पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के फैसले को वापस नहीं लिया तो बिजली कर्मी अपना आंदोलन और तेज करेंगे। बिजली कर्मी जेल जाने या अन्य किसी सरकारी दमन का डटकर मुकाबला करने को तैयार हैं। उधर, हड़ताल के चलते प्रदेश बुरी तरह से बिजली संकट से त्राहिमाम करने लगा है, लेकिन हड़ताली बिजली कर्मी इंच भर पीछे हटने को तैयार नहीं है।
 उत्तर प्रदेश को दिन-रात ‘रोशन’ रखने वाले बिजलीकर्मियों को यह समझ में नहीं आ रहा है क्यों योगी सरकार निजीकरण की आड़ में उनके जीवन में ‘अंधेरा’ भरने पर उतारू है। इसी लिए जब बिजली कर्मियों को लगा कि निजीकरण के चलते उनका जीवन अंधकारमय हो सकता है तो पहले सरकार से बातचीत की,लेकिन जब बात नहीं बनी तो बिजली कर्मियों ने हड़ताल पर जाकर  पूरे प्रदेश को अंधेरे में ढकेल दिया है। बिजली कर्मियों की हड़ताल शुरू हुए दो दिन भी नहीं हुए थे और राज्य का बड़ा हिस्सा बिजली संकट से घिर गया है। शहर से लेकर गांव-देहात के लाखों घरों में अंधेरा पसर गया है। बिजली नहीं आने के चलते कई जगह पानी का संकट भी देखा जा रहा है।
चाहें प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र वाराणसी हो या सीएम का गोरखपुर करीब-करीब सभी जिले बिजली संकट से बेहाल हैं। कल यानी पांच अक्टूबर से हड़ताल पर गए बिजली कर्मियों ने क्या आम ? क्या खास ? सबको रूला कर रख दिया है। हड़ताल के पहले ही दिन योगी सरकार के उप-मुख्यमंत्री, ऊर्जा मंत्री समेत कुल करीब तीन दर्जन मंत्रियों के घर भी अंधेरे में डूब गए। बेहद मुश्किल से इनके घरों की बिजली बहाल की जा सकी। हड़ताल के मद्दे नजर सरकार ने जो वैकल्पिक व्यवस्था की बात कही थी,वह कहीं खरी नहीं दिखी। आज भी बिजलीकर्मियों की हड़ताल जारी रही। ऊर्जा प्रबंधन और जिला प्रशासन ने बिजली सप्लाई बहाल रखने के लिए पुलिस के पहरे के साथ कई वैकल्पिक इंतजाम किए, लेकिन फॉल्ट के आगे सभी फेल हो गए। इंटेलिजेंस की रिपोर्ट के मुताबिक, कर्मचारी किसी भी समय अनिश्चितकालीन हड़ताल और जेल भरो आंदोलन शुरू कर सकते हैं।
बात बिजली कर्मियों की हड़ताल के चलते प्रभावित जिलो की कि जाए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में बिजली कर्मचारियों के हड़ताल के पहले दिन ही प्रशासन के सारे दावे फेल हो गए। एक ओर बिजली कर्मचारी जहां पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के विरोध में कार्य बहिष्कार कर धरने पर बैठे रहे, वहीं दूसरी तरफ शहर से लेकर गांव तक बिजली कटौती से हाहाकार मचा रहा। शहर के कई इलाकों में सोमवार को आठ घण्टे तक बिजली गुल रही। दूसरी तरफ ग्रामीण इलाकों में भी 14 घण्टे तक की कटौती हुई। निजीकरण के खिलाफ अभी भी बिजली कर्मचारी हड़ताल पर हैं।
वहीं प्रयागराज में बिजली विभाग के निजीकरण के विरोध में जारी बिजली कर्मियों की हड़ताल के चलते करेली, अटाला, मम्फोर्डगंज, तेलियरगंज, धूमनगंज, खुल्दाबाद इलाकों में बिजली नहीं आई। लोग जब बिजली आने के इंतजार में थक गए तो सड़कों पर उतर आए और चक्का जाम कर दिया। खुल्दाबाद इलाके के लोगों ने खुल्दाबाद पॉवर हाउस पर जाकर प्रदर्शन किया और जमकर नारे लगाए। सहारनपुर में भी प्रदेश सरकार द्वारा पॉवर कारपोरेशन का निजीकरण किए जाने के विरोध में बिजली कर्मचारियों के संयुक्त मोर्चे द्वारा घंटाघर बिजली घर पर धरना-प्रदर्शन किया गया। कर्मचारियों का कहना था कि निजीकरण के विरोध में आंदोलन जारी रहेगा। वहीं विद्युतकर्मियों की हड़ताल के मद्देनजर जिला प्रशासन पूरी तरह अलर्ट है। संविदाकर्मी और सहायकों की मदद से विद्युत आपूर्ति की जा रही है। रायबरेली जिले में पूर्वांचल विद्युत वितरण के निजीकरण का विरोध जारी है। गोरा बाजार के विद्युत उपकेंद्र में बिजलीकर्मियों का निजीकरण के खिलाफ प्रदर्शन हुआ।
प्रदेशव्यापी कार्य बहिष्कार में जेई, लाइनमैन समेत सैकड़ों विद्युत कर्मचारियों ने धरना प्रदर्शन किया। कानपुर में पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के विरोध में केस्को कर्मचारी और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के कर्मचारी अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार पर चले गए हैं। बिजली विभाग के सभी संगठन एकजुट होकर कार्य बहिष्कार में शामिल हुए हैं। पूरे प्रदेश नोयडा, गाजियाबाद, हरदोई, बरेली, मुरादाबाद, सहारनपुर, मेरठ, आगरा, अलीगढ़, इटावा,मैनपुरी, एटा, झांसी, बुंदेलखंड आदि जिलों से भी बिजली व्यवधान की खबरें आ रही हैं।
हड़ताल पर गए बिजली कर्मचारी संगठनों के आंदोलनकारियों का आरोप है कि 5 अप्रैल को 2018 को राज्य सरकार के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा और विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के बीच एक समझौता हुआ था। तब सरकार ने कहा था कि विद्युत वितरण कंपनियों का निजीकरण नहीं किया जाएगा, लेकिन वह दो साल बाद अपने दावे से मुकर गई और ‘पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम’ का निजीकरण करने की दिशा में आगे बढ़ गई है। समिति का कहना है कि निजीकरण और फ्रैंचाइजी का मॉडल ग्रेटर नोएडा और आगरा में फेल हो चुका है, फिर योगी सरकार एक नाकाम मॉडल पर बार-बार प्रयोग क्यों कर रही है।
उधर, सरकार का तर्क है कि पूरे देश की विद्युत वितरण कंपनियों में से सबसे अधिक घाटे में उत्तर प्रदेश की बिजली कम्पनियां चल रही हैं। यहां लाइन लाॅस भी अन्य राज्यों से काफी अधिक है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के मुताबिक मार्च 2020 तक यूपी की पांच डिस्कॉम कंपनियों को 819 करोड़ का घाटा हुआ था। राज्य में कुल पांच बिजली कंपनियां हैं जिनमें से मेरठ स्थित पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम और कानपुर इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई कंपनी फायदे में हैं जबकि दक्षिणांचल, मध्यमांचल और पूर्वांचल को नुकसान उठाना पड़ रहा है। उर्जा मंत्रालय के अनुसार सबसे ज्यादा 1550 करोड़ का नुकसान पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम को उठाना पड़ रहा है। इसी लिए पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का फैसला सरकार ने लिया है। योगी सरकार का तर्क है कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लगातार घाटे में चल रही है और इस नुकसान से सिर्फ निजीकरण करके ही आजादी पाई जा सकती है। गौरतलब हो, योगी सरकार ने राज्य में बिजली महंगी भी की लेकिन इसके बावजूद बिजली कम्पनियों का घाटा कम होने का नाम नहीं ले रहा है।
रिपोर्ट-अजय कुमार

About Samar Saleel

Check Also

पुलिसकर्मियों को बिना मतलब दौड़ाने और भ्रष्टाचार में लिप्त बाबू जाएंगे जेल, हर माह मांगा जाएगा फीडबैक

वाराणसी। पुलिस आयुक्त मोहित अग्रवाल ने कहा कि अनावश्यक पुलिसकर्मियों को परेशान और भ्रष्टाचार को ...