- पारंपरिक खेलों से नाता जोड़े, मोबाइल और वीडियो गेम छोड़ें
- मोबाइल गेम के सहारे नौनिहाल, एकांकी अवधारणा की ओर बढ़ता बचपन
- मैदानी खेलों का करे अभ्यास, जिससे होता है टीम भावना का विकास
SGSPIC बिधूना में राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर वेटलिफ्टिंग व कबड्डी की प्रतियोगिता का हुआ आयोजन
बिधूना/औरैया। पहले बच्चों की टोली गिल्ली-डंडा, कबड्डी, क्रिकेट, खो-खो, लुका छिपी, पिट्टो जैसे खेल खेलती नजर आती थी और इन खेलों से बच्चों का व्यायाम तो होता ही था साथ ही निर्णय लेने की क्षमता, आत्मविश्वास आदि में वृद्धि होती थी। लुकाछिपी में बच्चे खेल-खेल में गिनती सीख जाते थे, इस खेल में गिनती गिनी जाती थी। ये तमाम खेल ऐसे थे जो घर से बाहर खेले जाते थे। बच्चे एक जगह जमा होते थे। इससे विचारों का आदान-प्रदान होता था और टीम भावना विकसित होती थी।
राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर कस्बा के श्री गजेंद्र सिंह पब्लिक इंटर कालेज में मंगलवार को खेलकूद का आयोजन किया गया। इस मौके पर विद्यालय के क्रीड़ा प्रभारी उदय प्रताप सिंह जादौन ने बताया कि शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए पारंपरिक खेल बहुत जरूरी हैं। लेकिन आज खेलों की जगह बच्चे वीडियो गेम और मोबाइल आदि में उलझे रहते हैं। जिससे उनमें एकाकी जीवन की अवधारणा विकसित होती जा रही है। यह समाजिक एवं व्यवहारिक जीवन के लिए अच्छे संकेत नहीं है।
उन्होंने कहा हालांकि इन खेलों के गुम होने के पीछे एक कारण खेल मैदानों का अभाव भी माना जाता है। अब गांवों में भी खाली भूखंड कम ही नजर आते। लोग एक एक इंच भूमि का दोहन करने में जुट गए हैं। जो खेल मैदान बचे हैं उनका रखरखाव नहीं होने के कारण अभिभावक बच्चों को उन मैदानों में खेलने के लिए भेजने से कतराते हैं। ऐसे में बच्चे घरों के अंदर मोबाइल और टीवी आदि से चिपके रहते हैं।
बदलते परिवेश में पिट्टो, गिल्ली डंडा, लट्टू, कबड्डी, पतंगबाजी, गुलेल, लुकाछिपी जैसे पारंपरिक खेल सिर्फ यादों में कैद हो गए हैं। इन खेलें की जगह हाई-प्रोफाइल गेम्स ने ले ली है। पहले हर तबके के बच्चे यही खेल खेलते थे। आज ये सभी खेल गांव के बच्चों तक सिमट कर रह गए हैं। हर शाम गली-मुहल्ले में दोस्तों के साथ मिलकर लुकाछिपी, खो-खो, पतंगबाजी करने का आनंद ही अलग था। अब बचपन के इन शरारती खेलों की जगह स्मार्टफोन्स न ले ली है। बच्चों से लेकर बड़े हर किसी को इससे ही खुशी मिलती है। ये सभी खेल भी फोन में डाउनलोड करके घर बैठे ही खेल सकते हैं।
प्रधानाचार्य दिनेश प्रताप सिंह ने बताया कि हॉकी के जादूगर के नाम से विख्यात मेजर ध्यानचंद के सम्मान में इस दिन को राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित किया गया था। उनका जन्म 29 अगस्त 1905 को हुआ था। उन्होंने हॉकी में ओलंपिक गोल्ड मेडल दिलवाने में सबसे अहम भूमिका निभाई थी और अपने करियर में 500 से ज्यादा गोल किए थे। प्रधानाचार्य ने कहा कि मनुष्य के जीवन में जितना महत्व पढ़ाई का है उतना ही महत्व खेलों का भी है। बच्चों को स्मार्टफोन पर वर्चुअल खेलों से दूरी बना कर शारीरिक खेल खेलने चाहिए।
प्रदेश स्तर पर वेटलिफ्टिंग में कांस्य पदक जीतने वाली वेटलिफ्टर कशिश मिश्रा ने कहा कि खेल मानव जीवन के लिए बहुत ही उपयोगी है। क्योंकि पढ़ाई से केवल हमारा बौद्धिक विकास ही संभव है परंतु खेल कूद से मानसिक और शारीरिक विकास तो होता ही है, साथ ही सामाजिक और देशभक्ति की भावना भी जागृत होती है। अधिकतर मां-बाप यह सोचते हैं कि खेलकूद करने से बच्चे का समय बर्बाद होता है और अच्छे नंबरों के लिए बच्चों को किताबी कीड़ा बना दिया जाता है जिस कारण उनका जीवन एकांकी हो जाता है। इस अवसर समस्त शिक्षक शिक्षकाओं के साथ वेटलिफ्टर राखी, मुस्कान, अनुज भदौरिया, अनुज जाटव के अलावा कबड्डी खिलाड़ियों शाहिद मंसूरी, अभय सिंह तोमर, शमशाद, मोविन, शैलेन्द्र, आयूष एवं निखिल ने भी पढ़ाई के साथ साथ खेलो को भी महत्वपूर्ण बताया।
रिपोर्ट -संदीप राठौर चुनमुन