देश के मशहूर संतों में से एक संत तुकाराम के ज़िंदगी से जुड़ी कई ऐसी कथाएं हैं, जिनमें सुखी व पास ज़िंदगी के सूत्र छिपे हैं. जानिए संत तुकाराम का एक ऐसा प्रसंग, जिसका संदेश ये है कि हमें उल्टा परिस्थितियों में किस तरह सहनशील बने रहना चाहिए.
- प्रचलित कथा के अनुसार संत तुकाराम अपने घर में रोज प्रवचन देते थे. दूर-दूर से लोग उनके प्रवचन सुनने पहुंचते थे. सभी लोग संत तुकाराम का बहुत सम्मान करते थे, लेकिन उनका एक पड़ोसी जलन की भावना रखता था. जलन की भावना रखने वाला पड़ोसी भी रोज प्रवचन सुनने आता था. वह संत तुकाराम को नीचा दिखाने का मौका ढूंढता रहता था.
- एक दिन संत की भैंस उस पड़ोसी के खेत में चली गई व भैंस की वजह से पड़ोसी की फसल बेकार हो गई. जब ये बात उस पड़ोसी को मालूम हुई तो वह गुस्से में संत तुकाराम के घर गया व गालियां देने लगे. जब संत में गालियों का जवाब नहीं दिया तो उसे व ज्यादा गुस्सा आ गया. उसने वहीं पड़ा एक डंडा उठाया व संत तुकाराम की पिटाई कर दी. इसके बाद भी संत चुप रहे, उन्होंने विरोध नहीं किया. पड़ोसी जब मारते-मारते थक गया, तब वह अपने घर चला गया.
- अगली बार जब संत तुकाराम प्रवचन देने के लिए तैयारी कर रहे थे, तब वह पड़ोसी प्रवचन सुनने नहीं आया. वे तुरंत ही उसके घर गए. संत ने पड़ोसी से बोला कि भैंस की वजह से तुम्हारा जो नुकसान हुआ है, उसके लिए मुझे क्षमा करें व कृपया प्रवचन में चलें.
- संत तुकाराम की सहनशीलता व ऐसा विनम्र स्वरूप देखकर वह पड़ोसी उनके पैरों में गिर गया व क्षमा मांगने लगा. संत ने पड़ोसी को उठाया व गले लगा लिया. उसे समझ आ गया कि संत तुकाराम का व्यवहार बहुत ही महान है. इसी वजह से सभी लोग इनका सम्मान करते हैं.
जीवन प्रबंधन
- इस कथा की सीख यह है कि क्रोध से बचना चाहिए. जब दो लोग एक साथ एक ही समय पर क्रोधित हो जाते हैं तो बात बेहद बिगड़ जाती है. अगर कोई आदमी क्रोधित है तो दूसरे को सहनशीलता का परिचय देना चाहिए. तभी किसी टकराव का हल शांति से निकल सकता है. क्रोध का जवाब क्रोध देने से बचना चाहिए. क्रोध को काबू करने के लिए हमें रोज ध्यान करना चाहिए. ध्यान करने से एकाग्रता बढ़ती है, मन नियंत्रण में रहता है व शांत रहता है