आज के समयकाल में माहौल बाज़ारीकरण का है – सर के बाल से लेकर पांव के नाख़ून तक सब बाज़ार में बेचे और ख़रीदे जा सकते हैं, बस आपके पास पैसा, समय और चयन करने की महाशक्ति होनी चाहिए।
बाज़ार की एक आवश्यकता, बिकने या फिर खरीदे जाने वाली, चीजों का ग्राहक को दिखना ज़रूरी है इसीलिए शायद बड़े बड़े मॉल्स की स्थापना की गई है।
समयावेग में शनैः शनैः मनुष्य को केवल अपनी इच्छानुसार चीजों को सुनना, बोलना और ग्रहण करना ही सही प्रतीत होने लगा – देखना तो मज़बूरी थी, क्योंकि जो वास्तविकता है वही होता है और वही दिखता है।
हमारा दूर-दर्शन ~ tele-vision या फिर बक बक बक्सा या बुद्धू बक्सा या Idiot Box दिखाता तो सच है परंतु बताता वो नहीं है जो सच में होता है – शायद इसीलिए इसका ये नाम पड़ा Idiot Box.
बैंगलोर की घटना ने सभी मर्दों पर लगाया प्रश्नचिन्ह:
साल की पहली तारीख की सुबह 2.30 बजे बैंगलोर में हुई एक अकेली टहल रही युवती के मोलेस्टेशन की घटना ने हिंदुस्तान के प्रायः सभी मर्दों को व्याभिचारी और मोलेस्टर बना दिया है शायद कुछ टेलीविज़न चैनल्स के फ़िल्म स्टार सरीखे न्यूज़ एंकर लोगों को छोड़कर।
आम आदमी तो छोड़िये अगर कोई नेता भी उक्त महिला द्वारा की गयी असावधानियों की तरफ इंगित करेगा तो ये न्यूज़ एंकर और तथाकथित महिला समाज सेविकाएँ चिल्ला चिल्ला के उस नेता को बेशर्म और बद्तमीज़ और न जाने क्या क्या सिद्ध करने में लग जायेंगे – जैसे चारित्रिक परिसीमन की त्रिवेणी इन्हीं के आशीर्वाद से, जहाँ से ये लोग चाहें वहाँ से अवतरित होती है।
धृष्टता और अहंकार की सीमा तो तब पार हुई जब एक शायद कमला नामक, वृद्धावस्था को छूती, अनुभवी सामाजिक कार्यकर्ता महिला ने, 5 जनवरी की शाम को, प्राइम टाइम पे ये कहा कि, “मैंने मर्दों की मर्दानगी पर 12 साल शोध किया है और उन्होंने देखा है 12-13 साल के बच्चे पोर्न फिल्में देखते हैं, ऐसे बच्चे क्यों पैदा हो रहे हैं?”.
क्या ये बच्चे इनसे पूछ के पैदा होंगे? क्या 13 साल की उम्र युवावस्था का पहला पड़ाव नहीं है? क्या इस उम्र से हार्मोनल बदलाव बच्चे बच्चियों में नहीं आते हैं। अगर इन प्रश्नों का उत्तर हाँ है तो ये चैनल ऐसा बकवास करने वाले तथाकथित एक्सपर्ट्स को क्यों बुलाते हैं?
दूसरी बात, क्या इन्होंने जनानियों की जनानेपन पर भी शोध किया है? – अगर नहीं तो सारी बुराइयां इन्हें सिर्फ मर्दों में ही क्यों दिखाई देती है?
हर तरह के काम महिलायें करती हैं आजकल जैसे कि ट्रक चलाना, उद्यम चलाना इत्यादि। ठीक इसी तरह हर किस्म के ज़ुर्म भी औरतें करती हैं जैसे कि नकली नोट छापना, फ्रॉड, मर्डर, किडनैपिंग, ह्यूमन ट्रैफिकिंग, रेप इत्यादि। यहाँ तक की दहेज़, कन्या भ्रूण हत्या, वेश्यावृत्ति इत्यादि में सिर्फ और सिर्फ औरतों का ही मुख्यतया हाथ होता है।
इस बैंगलोर मोलेस्टेशन के विरोध में सिने अभिनेता अक्षय कुमार ने भी मर्दों को खूब कोसा, क्या इसका अर्थ ये है की मोलेस्ट करनेवाला यदि अक्षय कुमार जैसा हो तो मामला फिट है बॉस, ये चलेगा ही नहीं बल्कि दौड़ेगा। ये बहुआयामी तस्वीर वाले लोग हैं, जहाँ की लहर होगी ये बह लेंगे एक्टर हैं स्क्रिप्ट पढ़ने की आदत होती है इन लोगों को।
आज सुबह जब अपनी पत्नी के अनवरत अत्याचार और अपने पुत्र के बलपूर्वक अलगाव से आहत हो, जब मशहूर अभिनेता श्री ओम पुरी की हृदयाघात से मृत्यु हुई तब भी क्या श्री अक्षय कुमार ऐसे ही लेक्चर देंगे। क्या सिने सुपर स्टार राजेश खन्ना की ज़िन्दगी उनकी पत्नी डिंपल कपाड़िया ने नर्क नहीं कर दी थी। और क्या श्री अक्षय ने स्वर्गीय श्री राजेश खन्ना की देखभाल करने वाली महिला को बेइज़्ज़त करके बिना कोई मुआवज़ा दिए घर से निकाल नहीं दिया था? अगर अबला नारी की स्थिति पे इतना ही तरस आता है तो क्या आपने उस वृद्धा के लिए, किसी वृद्धाश्रम में ही सही, कोई जीविकोपार्जन की व्यवस्था की – कदापि नहीं, जाहिर है चिराग तले अँधेरा।
क्या सिने अभिनेता राजकिरण अपनी पत्नी के लगातार मानसिक उत्पीड़न से मानसिक रूप से विक्षिप्त होकर लंदन के किसी पागलखाने में अपना बुढ़ापा नहीं बिताया? ऋषि कपूर अपना मित्र धर्म निभाते हुवे उसे ढूंढने का बहुत प्रयास किया किन्तु न ढूंढ सके।
कॉर्पोरेट फंड्स के तहत धनी हुवे ये उपद्रवकारी महिला सामाजिक कार्यकर्ता और उनके ग्रुप मीडिया द्वारा सरकार पर अत्यधिक झूठा दबाव बनाने में सफल रहती है और सामाजिक व पारिवारिक ताने बाने को धीरे धीरे बर्बाद करने में लगी रहती हैं।
अभी सरकार महिलाओं को मेट्रो में एक छोटा चाकू रखने की छूट देने जा रही है – इससे शरीफ महिलाओं की सुरक्षा तो कम होगी ही बल्कि अन्य महिला और पुरुष यात्रियों के लिए भी जान और माल का खतरा बढ़ जायेगा।
वर्तमान में मुम्बई के लोकल ट्रेनों में बिना टिकट चलने वाली महिलाओं की संख्या पुरुषों से कहीं ज़्यादा है – पुरुष रेलवे अधिकारी तो इन्हें महिला होने की वजह से टिकट जाँच से थोड़ी छूट दे देते हैं, परंतु मैंने महिला अधिकारियों को एक्शन लेते देखा है। दूसरे महिलाओं के कोच में विभिन्न गुटों में – वर्चस्व की, सीट की, हवा आने देने की लड़ाई मार-पीट करीब करीब रोज ही थोक के भाव में होती है, और संख्या में महिलायें यहाँ भी बाजी मार ले जाती हैं। बैग लिफ्टर्स के गैंग भी महिला डिब्बे में ज़्यादा हैं – जाहिर है चाकू रखने की छूट मिल जाने से जुर्म में चहुँदिश प्रगति होगी।
मर्दों से ये विमर्श है की आपकी गीता जब नौकरी पे जाने लगे तो उसे भगवान कृष्ण वाले ‘गीता’ की कसम दिलाएं कि वो नौकरी पे जा रही है युद्ध में नहीं – फर्स्ट ऐड की पूरी व्यवस्था घर पे रखे – आगे भगवान मालिक है।
सौमित्र गांगुली