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नववर्ष की अप्रिय शुरुआत

नववर्ष के सुआगमन पर हर्षोल्लास का वातावरण था। पूरा विश्व अपने उत्साह के चरमोत्कर्ष पर था। हमारे देश भारत में भी यही माहौल था।

साल के पहले दिन सब कुछ सामान्य रहा, उत्साह भरा रहा, वॉट्सएप्प पर सन्देश बीप देते रहे – बधाईयों का सिलसिला मिलता रहा जैसे  ठन्डे पड़े नोटबन्दी के माहौल में सच में कुछ कुछ होने लगा। खैर अच्छा लगा – कुछ क्षणिक प्रण किये गए – जो शायद दूसरे दिन ही टूट गए।

दूसरे दिन चैनल न्यूज़ नेशन के एंकर श्री अजय कुमार ने अपनी बुलंद आवाज़ में बताया कि बंगलौर शहर के बीचों बीच में 31 दिसंबर की आधी रात को महिलाओं के साथ छेड़खानी हुई जो की एक शर्मनाक घटना है।

राज्य के गृह मंत्री ने कहा कि उन्होंने कुछ लोगों को लोकेट कर लिया है और अपराधी जल्दी ही पकड़े जायेंगे। पुनः मंत्रीजी ने ये भी कहा कि 1500 की संख्या में पुलिस बल तैनात थी फिर भी ये घटना हो गई हर जगह तो पुलिस नहीं लगा सकते।

पुनः एंकर अजयजी ने कहा कि मंत्रीजी इस तरह insensitive होके अपना पल्ला नहीं झाड़ सकते।

जाहिर सी बात है हर जगह समानता होनी चाहिए, हमारा संविधान इतना मौलिक अधिकार देता है, चाहे वो रात के 12 बजे फुल्टू दारू पी के हजारों लड़कों/ आदमियों का साथ हो, नए साल का जश्न महिलायें भी मना सकती हैं, संविधान निर्माता माननीय श्री बाबा साहेब अम्बेडकर जी ने संविधान का प्रारूप लिखते वक़्त शायद इन प्रविष्टियों को छोड़ दिया था।

अब देखा जाये तो हमारे विशिष्ठ सामाजिक लोग जैसे कि – न्यूज़ एंकर, समाचार पत्र, हमारे जन प्रतिनिधि इत्यादि सभी को व्यवसाय के रूप में टीआरपी, सर्कुलेशन और वोट बैंक की चिंता रहती है – रहनी भी चाहिए आखिर समाज के मार्गदर्शन का ठेका इन्होंने ही ले रखा है।

मै इन सभी से ये पूछना चाहता हूँ कि आदमी को स्वयं के सुरक्षा की चिंता करनी चाहिए कि नहीं? क्या किसी भी व्यक्ति की इज़्ज़त और सुरक्षा उसके अपने हाथ में होती है कि नहीं?

ये अबला नारियां क्या सड़क पर ही नए साल का स्वागत कर सकती थीं, क्या इस आंग्ल नूतन वर्ष का स्वागत होटल में, अपनी सोसाइटी में, मोहल्ले में, घर में या फिर टीवी के सामने नहीं हो सकता था। अगर इन्हें बाहर जा के ही मनाना था तो कुछ मित्रगणों के साथ नहीं निकल सकतीं थीं, क्या उल्लासवश अति मद्यपान से बचना नहीं चाहिए था?

बाद वाले दिन सपा विधायक अबू आजमी ने कहा कि महिलाओं को अपने भाई, पिता या पति के साथ ही इस तरह की महफ़िलो में जाने चाहिये।

फिर बरस पड़े न्यूज़ नेशन वाले अजय जी कि अबू आजमी जैसे नेताओं के शर्मनाक बयान, अजयजी ने कहा कि लड़कियां चाहे जो भी पहने लड़कों को अपनी सोच बदलनी चाहिए तभी समाज का उत्थान होगा और इस तरह की घटनाओं में कमी आएगी।

ये पत्रकार हैं – कोई भी न्यूज़ चैनल, अख़बार समाज का दर्पण होता है – और इस प्रतिभावान पत्रकार ने समाज को दर्पण दिखा दिया – ज्यामिति के अनसुलझे प्रमेय की भांति इतिसिद्धम् लिख दिया और समस्या का हल करना सिखा दिया।

पिंक नामक सिनेमा की एक चर्चित तारिका ने कहा कि काश वो अपनी फ़िल्म के प्रीमियम पे श्री अबु आजमी को बुलातीं और वास्तविकता से रूबरू करवाती।

सच्चाई ये है की वास्तव में वकील वैसे ही होते हैं जैसा फिल्म में इनका पहला वकील था और दूसरा अमिताभ बच्चन हाई प्रोफाइल वकील सिर्फ फिल्मों में अभिनय करने के लिए ही मिलता हैं जो मुफ़्त में आपका केस लड़ता हो। कोर्ट के चक्कर काटने पर ज़्यादातर वकील आपकी शक्ल देखकर यही कहते हैं कि तारीख लग चुकी है, मैं अपनी जेब से पैसे लगा चुका हूँ,लाइए ढ़ाई हज़ार रूपये – कोई नहीं कहता है कि मै ये केस हार जाऊंगा आप कोई अच्छा वकील कर लीजिये।

 

दूसरा वीडियो क्लिप दिखा जिसमें कि दो बाइक सवार बाइक रोककर ज़बरदस्ती एक महिला को मोलेस्ट करते हैं ये सरासर घिनौना है बिचारी महिला सच में यहाँ अबला सिद्ध हुई क्योंकि वो अकेली थी और भाग भी नहीं सकी।

लेकिन थोड़ी सावधानी यहाँ भी बरतनी थी क्योंकि रात के ढ़ाई बज रहे थे और इन महिला को अपने भाई, पिता, पति न सही कम से कम मित्रों के साथ ही चलना चाहिए था ताकि वो सुरक्षित रहें।

इस तरह के अपराध दुनिया के सम्पन्नतम देशों में भी जहाँ कि कानून व्यवस्था अति सशक्त है, जो कि रह रह के मानव अधिकारों का दम्भ भरते रहते है, में भी बहुतायत में है। अर्थ ये है कि महिला हो या पुरुष अपनी सुरक्षा के लिए हमेशा सतर्क रहें और दुस्साहस से बचें।

टेलीविजन चैनल कहे या न कहे, कोई अख़बार लिखे या न लिखे, प्रत्येक व्यक्ति महिला हो या पुरुष अपने युवावस्था के मद्यपान में मदमस्त हो कर अपने यौवन को दांव पर लगाकर अकस्मात् बली चढ़ाने से बचे।

सौमित्र गांगुली

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