नई दिल्ली। देशभर में जातीय जनगणना को लेकर बहस जारी है। इस बीच, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने जातिगत जनगणना को देश की एकता-अखंडता के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा बताया है। इस पर कांग्रेस ने मंगलवार को सवाल खड़ा किया कि अब जब आरएसएस ने हरी झंडी दिखा दी है तब क्या नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री कांग्रेस की एक और गारंटी को हाईजैक कर लेंगे और जाति जनगणना कराएंगे?
जातिगत जनगणना पर क्या है आरएसएस का रुख?
संघ के मुख्य प्रवक्ता सुनील आंबेकर से सोमवार को केरल के पलक्कड़ में जातिगत जनगणना को लेकर सवाल किया गया था। इस पर उन्होंने कहा था कि हमारे समाज में जाति संवेदनशील मुद्दा है। यह देश की एकता से भी जुड़ा हुआ सवाल है। इसलिए इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है न कि चुनाव और राजनीति को ध्यान में रखकर।
उन्होंने कहा कि देश और समाज के विकास के लिए सरकार को आंकड़ों की जरूरत पड़ती है। समाज की कुछ जाति के लोगों के प्रति विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। इन उद्देश्यों के लिए इसे (जाति जनगणना) करवाना चाहिए। इसका इस्तेमाल लोक कल्याण के लिए होना चाहिए। इसे पॉलिटिकल टूल बनने से रोकना होगा।
कांग्रेस महासचिव का पीएम पर हमला
कांग्रेस महासचिव प्रभारी जयराम रमेश ने मंगलवार को इस पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि जाति जनगणना को लेकर आरएसएस की उपदेशात्मक बातों से कुछ बुनियादी सवाल उठते हैं। जैसे- क्या आरएसएस के पास जाति जनगणना पर निषेधाधिकार है?
उन्होंने आगे कहा, ‘जाति जनगणना की अनुमति देने वाला आरएसएस कौन होता है? आरएसएस का क्या मतलब है जब वह कहता है कि चुनाव प्रचार के लिए जाति जनगणना का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए? क्या यह जज या अंपायर बनना है?’
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रमेश ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने दलितों, आदिवासियों और ओबीसी के लिए आरक्षण पर 50 फीसदी की सीमा को हटाने के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता पर रहस्यमई चुप्पी क्यों साध रखी है? अब जब आरएसएस ने हरी झंडी दिखा दी है तब क्या नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री कांग्रेस की एक और गारंटी को हाईजैक करेंगे और जाति जनगणना कराएंगे?