उत्तर प्रदेश। कहने को कोरोना संक्रमण से ग्रसित प्रदेश की जनता की समस्याओं को कम करने के लिए सरकार हर संभव प्रयास करने में जुटी हुई है, जो नाकाफी हैं। अगर सरकारी सूत्रों की मानें तो प्रदेश की जनता तक तमाम योजनाओं का लाभ पहुंचाने की कोशिश युद्ध स्तर पर की जा रही है। जबकि हकीकत में योगी सरकार की इस महामारी से लड़ने के लिए उपयोग में लाई जा रही जरूरी सेवाएं संकट मोचक की सही भूमिका नहीं निभा पा रही हैं। पिछले एक साल से कोरोना महामारी से जूझ रहे देश के पास आज भी जरुरी स्वास्थ्य सेवाएं मौजूद नहीं हैं। जिसका खामियाजा बेचारी जनता को अपनी जान से हांथ धोकर गंवाना पड़ रहा है। सच कहा जाये तो कोरोना से लड़ने में सरकारी तंत्र पूरी तरह फेल साबित हो रहा है। और प्रदेश एक बार फिर से लॉकडाउन की तरफ बढ़ रहा है। अगर कोरोना संक्रमण के आंकड़ें नहीं घटे तो रविवार को लगने वाला लॉकडाउन जल्द ही सप्ताह या पन्द्रह दिनों की पूर्ण बंदी में परिवर्तित हो जायेगा!
उधर कोरोना के खौफ से एक बार फिर प्रवासी मजदूरों के पलायन की तस्वीरें हर दिन आपके सामने आने लगी हैं। भूखे-प्यासे अपने घर वापस जाने के लिए निकले लोगों का दर्द समझ से परे है, लेकिन इसके लिए कौन जिम्मेदार है? सबसे पहले उंगली सरकार की तरफ ही उठती है। ये बात सही है कि बीमारी किसी के बस में नहीं है, विपदा कभी नोटिस देकर नहीं आती, लेकिन जब विपदा आ जाती है तो इससे निपटने का तरीका जरूर लोगों को ही निकालना पड़ता है। जब बात प्रदेश स्तर की हो तो सरकार को इसका हल निकालना पड़ता है। अब धीरे-धीरे ये बात साफ हो रही है की सरकार से कहीं न कहीं कोई तो चूक हुई है।
प्रतिदिन बढ़ते मौत के आंकड़ों ने सरकार की नींद उड़ा दी। जिसके बाद नींद से जागी सरकार आनन फानन में बेपटरी हो चुकी स्वास्थ्य सेवाओं को पटरी पर लाने में जुट गयी। उसने इलाज के आभाव में मर रही जनता को त्वरित लाभ पहुंचाते हुए ताबड़तोड़ अस्पताल तो बना दिए, लेकिन इन अस्पतालों में उपचार के लिए जरुरी सुविधाओं की व्यवस्था नहीं की। नतीजतन लोग अभी भी ऑक्सीजन और जरूरी दवाइयों के अभाव में मर रहे हैं।
राजधानी स्थित बलरामपुर अस्पताल में गुरुवार को संक्रमित मरीज भर्ती होने के लिए करीब आठ घंटे तक एंबुलेंस में तड़पता रहा। इस दौरान एक एक करके 15 मरीज एम्बुलेंस से अस्पताल आ गए। मरीजों की स्थिति गंभीर होने लगी। अस्पताल के मुख्य गेट पर शुक्रवार भोर से लेकर दोपहर तक 15 एंबुलेंस आ पहुंची। कई मरीज ऑक्सीजन सपोर्ट पर थे। इन मरीजों ने भर्ती होने के लिए सुबह चार पांच बजे से दोपहर 11-12 बजे तक इंतजार किया। लेकिन उपचार के आभाव में कई मरीज भगवान भरोसे ही वापस लौट गए। उधर कोरोना जांच रिपोर्ट देर से आने की वजह से मरीजों को तुरंत उपचार नहीं मिल पा रहा है, जिससे भी मौत का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। अलीगंज निवासी सुशील श्रीवास्तव (60) ने विवेकानंद पॉलीक्लीनिक में जांच कराई थी। उनका आक्सीजन स्तर 70 के नीचे पहुंच गया था। गुरुवार को जब उनकी रिपोर्ट मिली तो उन्हें भर्ती कराया गया लेकिन तबीयत ज्यादा बिगड़ने की वजह से उनकी मौत हो गई। वहीं लोहिया संस्थान की इमरजेंसी वॉर्ड में भर्ती तीन संक्रमित मरीजों ने शनिवार को ऑक्सीजन के अभाव में दम तोड़ दिया।
यहां गंभीर मरीजों के लिए 54 बेड में से 10 बेड आईसीयू हैं। इमरजेंसी से लेकर आईसीयू वार्ड कोरोना संक्रमित से फुल था। कई मरीज होल्डिंग एरिया में स्ट्रेचर पर ऑक्सीजन सपोर्ट पर थे। सुबह 6 बजे हॉस्पिटल ब्लॉक में ऑक्सीजन सिलेंडर खत्म हो गये। अस्पताल में हाहाकार मच गया। तीमारदार मरीजों की हालत बिगड़ती देखकर हंगामा करने लगे। इसी दौरान वेंटिलेटर पर भर्ती तीन अति गंभीर मरीजों ने दम तोड़ दिया। लोहिया संस्थान के निदेशक डॉ. एके सिंह की माने तो कंपनी ने ऑक्सीजन की खेप समय पर नहीं भेजी। ऐसे में आईसीयू में भर्ती तीन कोरोना मरीजों की मौत हो गई। लेकिन उनके मुताबिक अब ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध हैं। फ़िलहाल ऑक्सीजन सिलिंडर की आपूर्ति करने वाली कंपनी को नोटिस जारी कर घटना के जांच के आदेश दिए गए और जिम्मेदारों ने अपना कोरम पूरा कर घटना पर विराम लगा दिया है। लेकिन ऑक्सीजन की कमी से हुयी मौतों की जिम्मेदारी किसकी हैं?
प्रदेश ही नहीं पूरे देश में इन दिनों कोरोना संक्रमण से कोहराम मचा है। दिन पर दिन बढ़ रहे कोरोना वायरस के संक्रमण ने कहर बरपा रखा है। कोरोना से हो रही मौतों की संख्या बढ़ती जा रही है। श्मशान घाट में लाशों का ढेर लगा हुआ। चिता को जलाने के लिए लोगों को लाइन लगानी पड़ रही है। कोरोना का डर लोगों के जेहन में इस कदर बैठ गया है कि साधारण मौत पर भी लोग शव के पास जाने से कतरा रहे हैं। फिर भी सरकार ठोस उपाय करने के बजाये महज बयानबाजी और कागजी कोरम पूरा करने में जुटी हुयी है। इसका परिणाम ही है की शासन की मंशा के अनुरूप जिला प्रशासन ने आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत राजधानी के 17 निजी अस्पतालों की सूची जारी कर दी लेकिन यहां भी ऑक्सीजन समेत अन्य जरूरी चिकित्सीय सुविधाओं का अकाल पड़ा हुआ है।
एक अस्पताल में पूछने पर अस्पताल प्रबंधन ने बताया कि हम मरीज भर्ती तो कर लें लेकिन ऑक्सीजन की कमी को पूरा कैसे करेंगे। जो ऑक्सीजन हमारे पास मौजूद है उन्हें पहले से भर्ती मरीजों के लिए बचा कर रखा गया है। ये एक बानगी है जिसने सरकारी दावों और उनकी हकीकत को उजागर कर दिया है। पिछले साल से सबक लेकर यदि केन्द्रीय स्तर पर तैयारी कर ली गई होती तो आज ये नौबत न आती। शायद सरकार ने मान लिया है कि कोरोना अब नहीं लौटेगा। सच कहा जाये तो सरकार बिना तैयारी के कोरोना महामारी से बचाव और उसके उपचार में उतर पड़ी है, जहां उसे हर हाल में विफलता ही हांथ लगने वाली है। सही कहा जाये तो बेचारी लाचार जनता की जान अब भगवान भरोसे है!