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सर्दियों में योग संबन्धी सावधानियां

   डॉ. अमरजीत यादव

मनुष्य का शरीर विलक्षण संभावनाओं से युक्त है। इसलिए स्वास्थ्य को बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। सर्दी के मौसम में यदि सर्दी अधिक बढ़ जाए तो मनुष्य के शरीर का स्वाभाविक तापमान कम हो जाता है तापमान को बनाए रखने के लिए शरीर को कई रसायनिक प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है वातावरण का तापमान कम होने पर शरीर में तीव्र गति से ऊर्जा बाहर निकलती है। जिसके परिणाम स्वरूप शरीर से ऊर्जा का उत्पादन कम और ज्यादा होता है इस कारण से शरीर में -कप कपाहट एवं सिकुड़न बढ़ जाती है।

योगाभ्यास को सर्दी के मौसम में योगा अभ्यास प्रारंभ करने से पूर्व आपेक्षित सावधानियों का ख्याल रखना जरूरी होता है। किसी भी योगासन से पूर्व सूक्ष्म क्रियाएं जैसे कंधा शक्ति विकासक क्रिया तथा घुटने, टखने व अंगुलियों, कमर, पेट आदि से संबंधित क्रियाओं को करना चाहिए जिससे सर्दी के मौसम में समुचित योगाभ्यास के लिए शरीर वर्माप हो पाए सर्दियों में बहुत ही ठंडे स्थान पर योगासन या प्राणायाम का अभ्यास वर्जित है।

इसके अलावा ऊनी वस्त्र बिछाकर उस पर योगिक क्रियाएं करना हितकर होगा। सर्दी के मौसम में अनावश्यक शरीर को तोड़ना ,मरोड़ना नहीं चाहिए। इस क्रिया के कारण शरीर को गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध कार्य करना पड़ता है। एवं अनावश्यक ऊर्जा का ह्रास होता है। फेफड़ों को स्वसन के लिए 30 डिग्री सेल्सियस तापमान की और 70 से 75% नमी वाली हवा उपयुक्त होती है। अतः प्राणायाम या आसनों का अभ्यास बहुत ही ठंडे स्थान पर नहीं करना चाहिए ।अन्यथा स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। सर्दियों में योगाभ्यासी जल्दी-जल्दी श्वास लेकर जल्दी जल्दी श्वास बाहर निकालते हैं। अपने स्वास को लयब द्धता में नियंत्रित करना चाहिए एक साथ तेजी से काफी मात्रा में स्वास को ना भरे और ना एक साथ श्वास को बाहर निकल जाने दें। स्वास प्रवास की क्रिया धीरे धीरे एक लय ताल में होनी चाहिए स्वास गति प्राकृतिक करने के लिए ओम का उच्चारण करना चाहिए।

सर्दी के मौसम में योगासनों का अभ्यास नहीं करना चाहिए। जिनमें गुरुत्वाकर्षण शक्ति के विपरीत शरीर को अत्यधिक ऊर्जा खर्च करनी पड़े ऐसे आसनों में शीर्षासन हर्ष उत्तानासन अर्ध चक्रासन चक्रासन कोणासन, त्रिकोणासन आदि का अभ्यास नहीं करना चाहिए, इन अभ्यासों के दौरान शरीर को अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। तथा शरीर को गुरुत्वाकर्षण के विपरीत कार्य करना पड़ता है शीतली, शीतकारी और चंद्रभेदी प्राणायाम सीतो उत्पादक हैं अतः सर्दियों के मौसम में यह प्राणायाम सीत प्रकृति के लोगों को स्वास, सर्दी, जुखाम तथा दमा के रोगियों के लिए हानिकारक होते हैं अतः वर्जित हैं, सर्दी के मौसम में सर्दी जुखाम की आम समस्या लोगों में पाई जाती है, इसके लिए जलनेति का प्रयोग हितकर है। उबले पानी को थोड़ा ठंडा कर चुटकी भर नमक डालकर उसमें नालीदार लोटे में भरे जिस तरफ की नासिका चल रही हो उसी तरफ से हाथ से पकड़े तथा नली को उस नासिका में लगा दें, सिर को सामने व विपरीत दिशा में घुमा कर रखें तथा मुंह से स्वास ले पानी दूसरी नासिका से गिरने लगेगा।

नाक से सांस लेने पर पानी सिर में चला जाएगा जिससे सिरदर्द हो सकता है। अतः विशेष सावधानी रखें इस क्रिया को पुनः दूसरी नासिका से करें जलनेति के पश्चात दोनों हाथों को कमर पर रखें 90 डिग्री से झुके ऊपर नीचे दाएं बाएं 25,25 फेंक कर भस्त्रिका प्राणायाम करें पुनः बैठकर भस्त्रिका प्राणायाम का अभ्यास करें और अंत में कम से कम 10 मिनट मकरासन में लेट जाएं ऐसे लोगों जो शीत प्रकृति के हैं ।अथवा दमा खून की कमी हृदय रोग मधुमेह नेफ्राइटिस एवं अन्य जीण रोगों से ग्रसित हैं। उन्हें योगाभ्यास उसे परहेज करना चाहिए यदि आवश्यक हो तो प्रशिक्षित चिकित्सक के निर्देशन में अभ्यास करना चाहिए। योगासनों के दौरान जमीन पर बिछाने के लिए ऊनी वस्त्रों का ही प्रयोग करें क्योंकि यह सर्दी के लिए कुचालक होते हैं। पीने के पानी का तापमान 15 से 18 डिग्री सेंटीग्रेड होना चाहिए ज्यादा ठंडा तथा ज्यादा गर्म पानी पीना हानिकारक है।

उच्च रक्तचाप हृदय रोगी देर तक गर्म स्नान ना लें उच्च रक्तचाप की स्थिति में देर तक असावधानीपूर्वक गर्म स्नान लेने से उन्हें मस्तिष्क का रक्त स्राव हो सकता है। सूर्य स्नान लेना आवश्यक होता है इससे रक्त संचार क्रिया होती है। शरीर के विजातीय विषाक्त पदार्थों का निष्कासन शीघ्रता से होता है ।सर्दियों में अक्सर चाय काफी की मात्रा बढ़ जाती है हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। चाय के प्रमुख घटक टैनिंग तथा कैफ़ीन हैं ।चाय के अधिक प्रयोग से रक्त में इसकी मात्रा बढ़ जाती है। जो स्वास्थ्य के लिए घातक होता है काफी में कैफीन की मात्रा अधिक होती है। इसका अत्यधिक प्रयोग हितकर नहीं होता है। सर्दियों के मौसम में कम से कम क्षमता के अनुसार 15 मिनट के लिए भस्त्रिका प्राणायाम का अभ्यास करना आवश्यक है।

इससे प्रकृति गर्मी को बनाए रखने में शरीर को सहायता मिलती है। योगाभ्यासी को मौसमी फलों एवं सब्जियों का अधिक प्रयोग करना चाहिए क्योंकि मौसमी फल और सब्जियों का पी,एच मनुष्य के रक्त के पी,एच के करीब करीब समान होता है। इससे शरीर को ऊर्जा उत्पादन में मदद मिलती है। योगाभ्यासी को कम भोजन ही लेना चाहिए आवश्यकता से अधिक भोजन खाने से बचना चाहिए पाचन शक्ति से अधिक किया गया भोजन पोषक होने के बजाय शोषक सिद्धि होगा।

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