आपदा प्रबंधन की जिम्मेदारी सरकार पर होती है। इसके अंतर्गत कतिपय ऐसी समस्याएं होती है जिनका समाधान त्वरित रूप में संभव नहीं होता। इसके लिए दीर्घकालिक योजना की आवश्यकता होती है। देश में जनसंख्या के अनुरूप चिकित्सकों की संख्या ऐसी ही समस्या रही है। इसके लिए आजादी के बाद ही विशेष कार्ययोजना की आवश्यकता थी। इसके साथ ही सभी चिकित्सा पद्धतियों के समुचित विकास व समन्वय भी आवश्यक था। वर्तमान केंद्र सरकार ने इस कमी को दूर करने पर ध्यान दिया। इसके लिए अभियान चलाया जा रहा है। अनेक राज्यों ने केंद्र के साथ बेहतर समन्वय किया। उन्होंने विगत कुछ वर्षों में बेहतर कार्य किया है।
कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस सरकारों पर स्वास्थ्य क्षेत्र की अनदेखी का आरोप लगाया था। उन्होंन कहा था कि देश में चिकित्सकों की कमी से सभी परिचित थे। लेकिन इस समस्या पर पूर्ववर्ती सरकारों ने ध्यान नहीं दिया। जबकि भविष्य उन समाजों का होगा जो स्वास्थ्य सेवा में निवेश करते हैं। प्रधानमंत्री ने तमिलनाडु के विभिन्न हिस्सों में चार हजार करोड़ रुपये की लागत से तैयार हुये ग्यारह नए मेडिकल कॉलेजों का वर्चुअल लोकर्पण किया था। कोरोना महामारी ने स्वास्थ्य क्षेत्र के महत्व की फिर से पुष्टि की है। वर्तमान भारत सरकार इस क्षेत्र में कई सुधार लाई है। महामारी से सीखते हुए हम अपने सभी देशवासियों को समावेशी, गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित करने के लिए काम किया जा रहा है।
आयुष्मान भारत स्वास्थ्य योजना के रूप में गरीबों के पास उच्च गुणवत्ता और सस्ती स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध है। देश में घुटना प्रत्यारोपण और स्टेंट की लागत पहले के मुकाबले एक तिहाई हो गई है। मेडिकल शिक्षा के लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने अनेक कदम उठाये हैं। सात वर्ष पहले तीन सौ छियानबे मेडिकल कॉलेज थे। पिछले सात वर्षों में ही यह संख्या बढ़कर करीब छह सौ मेडिकल कॉलेज हो गई है। यह चौवन प्रतिशत की वृद्धि है। सात वर्ष फ्लड लगभग बयासी हजार मेडिकल अंडर ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट सीटें थीं। पिछले सात सालों में यह संख्या बढ़कर करीब एक लाख अड़तालीस हजार सीटों पर पहुंच गई है। यह करीब अस्सी प्रतिशत की बढ़ोतरी है। सात वर्ष पहले देश में सिर्फ सात एम्स थे। विगत सात वर्ष में के बाद स्वीकृत एम्स की संख्या बाइस हो गई है। चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र को और अधिक पारदर्शी बनाने के लिए विभिन्न सुधार किए गए हैं।
भारत को गुणवत्ता और सस्ती स्वास्थ्य सेवा की दिशा में बढ़ रहा है। भारत को मेडिकल टूरिज्म का हब बनाया जाएगा। इसके दृष्टिगत भारत में बड़ी संभावना है। तमिलनाडु में ग्यारह नए मेडिकल कॉलेज स्थापित होने से एमबीबीएस की साढ़े चौदह सौ सीटें बढ़ जाएंगी। नए मेडिकल कॉलेज लगभग चार हजार करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से स्थापित किए जा रहे हैं। जिसमें से आधे से अधिक केंद्र सरकार और बाकी तमिलनाडु सरकार द्वारा प्रदान किए गए हैं। जिन जिलों में नए मेडिकल कॉलेज स्थापित किए जा रहे हैं उनमें विरुधुनगर, नमक्कल, नीलगिरी, तिरुपुर, तिरुवल्लूर, नागपट्टिनम, डिंडीगुल, कल्लाकुरिची, अरियालुर रामनाथपुरम और कृष्णागिरी जिले शामिल हैं।
पिछली तीस जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश में एक साथ नौ जिलों में नए मेडिकल कॉलेजों का लोकार्पण किया था। इस कार्यक्रम का आयोजन सिद्धार्थ नगर में किया गया था। यह उत्तर प्रदेश के लिए राज्य के लिए ऐतिहासिक अवसर था। जिसमें एक साथ नौ जिलों में मेडिकल कॉलेजों का संचालन शुरू हुआ। चिकित्सकों की संख्या बढ़ाने चिकित्सा सुविधाओं के विस्तार व बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश के सभी जनपदों में मेडिकल कॉलेज निर्माण की योजना संचालित है। इस योजना को कोरोना कालखंड में भी तेजी से क्रियान्वित किया गया। इस कारण नौ जनपदों में मेडिकल कॉलेजों के निर्माण संभव हुआ।
देवरिया,एटा,फतेहपुर, हरदोई,प्रतापगढ़, सिद्धार्थ नगर,गाजीपुर, मिर्जापुर और जौनपुर में मेडिकल कॉलेज शुरू किए गए। इनके साथ ही उत्तर प्रदेश में मेडिकल कॉलेज की संख्या अड़तालीस हो गई है। तेरह अन्य मेडिकल कॉलेजों का निर्माण कार्य भी तेज गति से चल रहा है। पांच वर्ष पहले तक उत्तर प्रदेश में मात्र बारह मेडिकल कालेज थे। विगत पांच वर्षों के दौरान इनकी संख्या चार गुना बढ़ गई है। हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर में विकास कार्य जारी है।
इन संस्थानों में साढ़े चार सौ से अधिक संकाय सदस्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है। प्रत्येक मेडिकल कालेज में सौ सौ सीटें एमबीबीएस की होंगी। इस तरह एमबीबीएस की कुल नौ सौ सीटें बढ़ जाएंगी।अभी सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की करीब तीन हजार सीटें हैं। नेशनल हेल्थ प्रोफाइल के अनुसार उत्तर प्रदेश में कुल पैसठ हजार से अधिक डॉक्टर पंजीकृत हैं,जिनमें से बावन हजार से अधिक राज्य में प्रैक्टिस करते हैं। राज्य की आबादी और डॉक्टरों की इस संख्या के अनुसार प्रत्येक डॉक्टर पर करीब अड़तीस सौ मरीजों को देखने की जिम्मेदारी है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रत्येक डॉक्टर के जिम्मे एक हजार मरीज होने चाहिए। वर्तमान में प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में मात्र तेरह हजार डॉक्टर कार्यरत हैं।
जबकि राज्य की बढ़ती आबादी और मरीजों के आंकड़ों के लिहाज से यह संख्या लगभग पैंतालीस हजार होनी चाहिए। सरकार ने प्रदेश के सुल्तानपुर सोनभद्र,चंदौली बुलंदशहर, पीलीभीत औरैया,बिजनौर कानपुर देहात,कुशीनगर,गोंडा, कौशाम्बी,ललितपुर और लखीमपुर खीरी में मेडिकल कॉलेज स्वीकृत किए हैं। प्रत्येक मेडिकल कालेज के निर्माण पर करीब सवा तीन सौ करोड़ रुपये खर्च होने हैं।
धरातल पर देखें तो इनमें से कुछ जिलों में मेडिकल कॉलेज के लिए नींव पड़ गई, तो कहीं कार्यालय ही स्थापित हो पाए हैं। वहीं कुछ जमीन चिन्हित ही कर पाए हैं। अधिकतर मेडिकल कॉलेजों को पूरा करने के लिए अठारह माह का लक्ष्य दिया गया है