उत्तर प्रदेश में धर्म की आड़ में अतिक्र्र्रमण और अतिक्रमण के सहारे बेशकीमती सरकारी जमीन पर कब्जा करने का खेल लम्बे समय से चला आ रहा है। खासकर मुख्य मार्गो पर सड़क के किनारे और कहीं-कहीं तो सड़क के बीचोबीच में कब्जा करके मंदिर-मस्जिद-दरगाह बनाकर धंधा चलाने वालों पर लगाम लगे,यह योगी सरकार की ही नहीं समय की भी मांग है। तमाम अदालतें भी समय-समय पर धर्म के नाम पर अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ आदेश पारित करती हैं लेकिन कुछ अपवादों को छोड़कर वोट बैंक की सियासत के चलते इस समस्या का बड़े पैमाने पर कभी समाधान नहीं हो पाया।
योगी सरकार ने सार्वजनिक स्थलों और सड़क के किनारे अतिक्रमण कर बनाए गए सभी धार्मिक स्थलों को हटाने का सख्त आदेश दिया है, तो उम्मीद की जानी चाहिए कि ऐसा हो जाएगा। क्योंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने सख्त फैसलों को जमीनी स्तर पर पूरा करने के लिए ज्यादा जाने जाते हैं और फिर न्यायिक रूप से भी इसमें कोई बाधा नहीं आएगी। कोर्ट तो स्वयं कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए तमाम सरकारों को इस लिए फटकार चुका है कि वह सड़क किनारे ही नहीं बीचोबीच तक में किए गए धार्मिक निर्माण हटवाने की इच्छाशक्ति नहीं रखती है।
बहरहाल, मुख्यमंत्री की मंशा को समझते हुए गृह विभाग ने इस संबंध में सभी कमिश्नर और जिलाधिकारियों को आदेश जारी कर दिया है। इस के साथ ही यह भी आदेश दिए गए हैं कि तय समय शासन को अवगत कराया जाए कि कितने अतिक्रमण कर बने धार्मिक स्थलों को हटाया गया है। भले ही योगी सरकार ने यह निर्देश हाई कोर्ट के आदेशों के क्रम में जारी किया हो लेकिन इसको लेकर सरकार की नियत पर किसी को संदेह नहीं है। परंतु इसके उलट हकीकत यह भी है कि अतिक्रमण करके बनाए गए धार्मिक स्थलों को हटाय जाने के योगी सरकार के आदेश के बीच अभी भी कुछ लोग धर्म की आड़ में अतिक्रमण या मरम्मत के नाम पर नये निर्माण कार्य करने से बाज नहीं आ रहे हैं। इस ओर न तो जिला प्रशासन का ध्यान जाता है न पुलिस या फिर नगर निगम अथवा विकास प्राधिकरणों की इस पर नजर पड़ती है।
यूपी सरकार ने सभी मंडलायुक्तों व जिलाधिकारियों को कहीं भी सड़क किनारे धार्मिक प्रकृति की किसी संरचना या निर्माण की अनुमति कतई न दी जाए। कहा गया है कि यदि कहीं इस तरह की कोई निर्माण एक जनवरी 2011 अथवा उसके बाद कराया गया है तो उसे तत्काल हटाया जाए। शासन ने जिलाधिकारियों से इसे लेकर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट तत्काल अपर मुख्य सचिव गृह को सौंपने का निर्देश दिया है, जबकि विस्तृत आख्या दो माह में मुख्य सचिव को सौंपी जाएगी। आदेश में यह भी कहा गया है कि जिस निजी भूमि पर धार्मिक संरचना को स्थानान्तरित किया जाए, वह जमीन संबंधित समुदाय की ही हो।
लम्बे समय से यही देखा जा हा है कि आमतौर पर सरकारें सरकारी जमीन या फिर सड़क पर अवैधत तरीके से बनाए गए धार्मिक स्थलों पर कार्रवाई करने से बचती रही हैं, लेकिन बीते कुछ वर्षो में जनता में भी जागरूकता आई है। अब जनता परिपक्व दिखती है। अब कोई धार्मिक स्थल जिससे आम जनता को परीेशानी होती है उसे हटाने का पहले की तरह अंध-विरोध नहीं होता। प्रदेश में ही प्रयागराज, गोरखपुर, मुजफ्फरनगर सहित कुछ शहरों में सड़कों-राजमार्गों से ऐसे धर्मस्थल हटाए गए हैं। मुजफ्फरनगर में फरवरी 2018 में पुल निर्माण के लिए मस्जिद हटाई गई। इसके कारण 10 साल से फ्लाईओवर का निर्माण रुका था। प्रयागराज में सड़क किनारे बने एक दर्जन मंदिर व मजारों को हटाया गया। कुछ जगह लोग खुद भी इसके लिए आगे आए।
बात लखनऊ की कि जाए तो यहां सड़क और फुटपाथ पर अतिक्रमण कर बनाए गए करीब डेढ़ सौ धार्मिक स्थल चिन्हित किए गए हैं। यह तथ्य नगर निगम की 2016 में बनी सूची से सामने आए हैं। बसपा राज में मुख्यमंत्री मायावती द्वारा 2011 से पहले और उसके बाद अतिक्रमण कर बनाए गए धार्मिक स्थलों की रिपोर्ट मांगी गई थी,लेकिन इसके बाद पूरा मामला ठंडे बस्ते में चला गया। अब योगी सरकार 2016 में बनाई गई सूची के आधार पर यह पता लगाएगी कि 2011 के बाद कोई प्रदेश में कोई नया धार्मिक स्थल तो अतिक्रमण कर नहीं बनाया गया। वहीं, ऐसे धार्मिक स्थलों को चिह्नित करने की काम प्रशासन ने भी शुरू कर दिया है। इसके लिए लखनऊ के जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश ने एडीएम प्रशासन अमर पाल सिंह को नोडल अफसर बनाया है। मालूम हो कि शासन के आदेश के तहत 2011 के बाद बने धार्मिक स्थलों को सड़क से हटाया जाना है जबकि इससे पहले बने धार्मिक स्थलों को विस्थापित किया जाना है।
सड़क पर बने धार्मिक स्थलों के कारण ही डीएवी से नाका चैराहे की तरफ जाने वाले मार्ग के बांए तरफ का रास्ता ही नहीं खुल पा रहा है। वाहन चालकों को रांग साइड में चलना पड़ता है। इसी प्रकार तुलसी दास मार्ग पर बने एक धार्मिक स्थल के चलते पुल के नीचे का रास्ता चैड़ा नहीं हो पा रहा है।