हिंदू धर्म में हरतालिका तीज का भी बड़ा महत्व है. इस दिन महिलाएं अपने पति की लम्बी आयु के लिए व्रत रहती हैं. यह भाद्र पद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है. इस बार यह त्योहार 1 सितम्बर को मनाया जाएगा. यह व्रत सुहागिन स्त्रियों के लिए होता है, लेकिन इसे कम आयु की लड़कियां भी रख सकती हैं. इस तीज में भगवान गणेश, शिव व पार्वती जी का पूजन किया जाता है. इस व्रत को निर्जल रहकर किया जाता है व रात में भगवान शिव व माता पार्वती के गीत और भजन कर जागरण किया जाता है.
पूजा विधि
हरतालिका तीज पर माता पार्वती व भगवान शंकर की विधि-विधान से पूजा की जाती है. हरतालिका तीज प्रदोषकाल में किया जाता है. सूर्यास्त के बाद के मुहूर्त को प्रदोषकाल बोलाजाता है. यह दिन व रात के मिलन का समय होता है. हरतालिका पूजन के लिए भगवान शिव, माता पार्वती व भगवान गणेश की बालू रेत और काली मिट्टी की प्रतिमा हाथों से बनाएं.पूजा स्थल को फूलों से सजाकर एक चौकी रखें व उस चौकी पर केले के पत्ते रखकर भगवान शंकर, माता पार्वती व भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें.इसके बाद देवताओं का आह्वान करते हुए भगवान शिव, माता पार्वती व भगवान गणेश का पूजन करें. सुहाग की सारी चीज रखकर माता पार्वती को चढ़ाना इस व्रत की मुख्य परंपरा है. इसमें शिवजी को धोती व अंगोछा चढ़ाया जाता है. यह सुहाग सामग्री सास के चरण स्पर्श करने के बाद ब्राह्मणी व ब्राह्मण को दान देना चाहिए.
- व्रत के नियम
1. हरतालिका तीज व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है. व्रत के बाद अगले दिन जल ग्रहण करने का विधान है.
2.हरतालिका तीज व्रत करने पर इसे छोड़ा नहीं जाता है. प्रत्येक साल इस व्रत को विधि-विधान से करना चाहिए.
3. हरतालिका तीज व्रत के दिन रात्रि जागरण किया जाता है. रात में भजन-कीर्तन करना चाहिए.
4. इस व्रत को कुंवारी कन्या, सौभाग्यवती स्त्रियां करती हैं. शास्त्रों में विधवा स्त्रियों को भी यह व्रत रखने की आदेश दी गई है.
- पूजन में चढ़ाएं ये सुहाग सामग्री
मेहंदी, चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, माहौर, आदि. इसके अतिरिक्त श्रीफल, कलश, अबीर, चंदन, घी-तेल, कपूर, कुमकुम व दीपक का इस्तेमाल पूजन में करें.
- व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा
हरतालिका तीज व्रत भगवान शिव व माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ को पति के रूप में पाने के लिए सख्त तप किया था. हिमालय पर गंगा नदी के तट पर माता पार्वती ने भूखे-प्यासे रहकर तपस्या की. माता पार्वती की यह स्थिति देखकर उनके पिता हिमालय दुखी थे. एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के शादी का प्रस्ताव लेकर आए लेकिन जब पार्वतीजी को इस का पता चला तो, वे विलाप करने लगी. एक सखी को उन्होंने बताया कि, वे भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए सख्त तप कर रही हैं. इसके बाद अपनी सखी की सलाह पर माता पार्वती वन में चली गईं व भगवान शिव की आराधना में लीन हो गई. इस दौरान भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया व भोलेनाथ की आराधना की. माता पार्वती के सख्ततप को देखकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए व पार्वतीजी की इच्छानुसार उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया.