समाजसेवी जगजीवन पाल ने भारतीय संविधान दिवस के प्रति अपना सम्मान प्रकट करते हुए 26 नवम्बर 2019 की पूर्व संध्या को केजीएमसी लखनऊ में रक्तदान करके उसे वोटरशिप अधिकार कानून तथा वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था (विश्व संसद) के शीघ्र गठन को समर्पित किया है। जगजीवन जी का विश्वास है कि रक्तदान महादान है। बिना किसी आर्थिक लाभ की इच्छा से रक्तदान करना सबसे बड़ा परोपकार है। जगजीवन जी समय-समय पर नियमित रूप से रक्तदान करके समाज के सामने एक अनुकरणीय मिसाल प्रस्तुत कर रहे हैं। समाज सदैव जगजीवन जी का ऋणी रहेगा। आप सही मायने अपने नाम जग-जीवन अर्थात सारे जगत के लिए जीवन जीने को चरितार्थ कर रहे हैं। आपको यह जज्बा तथा जुनून डा.अम्बेडकर, वोटरशिप विचार के जन्मदाता विश्वात्मा भरत गांधी, शिक्षाविद् तथा विश्व एकता के प्रबल समर्थक डा.जगदीश गांधी, श्रद्धेय स्वर्गीय भारत सिंह बघेल तथा अपने पूज्यनीय माता-पिता से मिला है।
जगजीवन जी का संकल्प है कि उनके शरीर के रक्त की एक-एक बूंद मानव जाति तथा लोक कल्याण के लिए है। संविधान दिवस के अवसर पर विचारक जगजीवन जी सहित हमारी भारत सरकार से मांग है कि वह गरीबी दूर करने के लिए प्रत्येक वोटर को वोटरशिप देने के लिए समय रहते कानून बनाये। साथ ही विश्व को युद्धों तथा आतंकवाद से मुक्त कराने के लिए जनता द्वारा चुनी हुई वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था (विश्व संसद) के शीघ्र गठन करें। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र संघ को शक्ति प्रदान करके विश्व संसद का स्वरूप प्रदान किया जा सकता है।
जगजीवन की अपील है कि ‘‘मानव का रक्त नालियों में नहीं बल्कि मानव की नाड़ियों में बहना चाहिए’’। उन्होंने दुख व्यक्त किया कि विश्व की समस्याओं का हल इंसान ने परमाणु बमों के रूप में खोजा है। यह अत्यन्त ही अमानवीय समाधान है। दुनिया को परमाणु बमों से नहीं, प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय कानून तथा विश्व संविधान से चलाया जाना चाहिए। संविधान दिवस के महान अवसर पर हम सभी भारतवासियों को विश्व को कानून तथा संविधान से चलाने का संकल्प लेना चाहिए। उन्होंने देश के युवाओं से संविधान दिवस पर रक्तदान करने की मार्मिक अपील की। ताकि किसी भी व्यक्ति की मृत्यु खून की कमी से न हो।
संविधान दिवस भारत गणराज्य का संविधान 26 नवम्बर 1949 को बनकर तैयार हुआ था। संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ.भीमराव आंबेडकर के 125वें जयंती वर्ष के रूप में 26 नवम्बर 2015 से संविधान दिवस मनाया गया। संविधान सभा ने भारत के संविधान को 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में 26 नवम्बर 1949 को पूरा कर राष्ट्र को समर्पित किया। गणतंत्र भारत में 26 जनवरी 1950 से संविधान अमल में लाया गया। आंबेडकरवादी और बौद्ध लोगों द्वारा कई दशकों पूर्व से ‘संविधान दिवस’ मनाया जाता है। भारत सरकार द्वारा पहली बार 2015 से डॉ. भीमराव आंबेडकर के इस महान योगदान के रूप में 26 नवम्बर को ‘संविधान दिवस’ मनाया गया। 26 नवंबर का दिन संविधान के महत्व का प्रसार करने और डॉ. भीमराव आंबेडकर के विचारों और अवधारणाओं का प्रसार करने के लिए चुना गया था।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 का पाठ निम्न प्रकार है-
भारत का गणराज्य यह प्रयत्न करेगा कि:
- भारत का गणराज्य अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा की अभिवृद्धि (संसार के सभी राष्ट्रों के सहयोग से) करने का प्रयास करेगा।
- भारत का गणराज्य संसार के सभी राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत और सम्मानपूर्ण संबंधों को बनाए रखने का (संसार के सभी राष्ट्रों के सहयोग से) प्रयत्न करेगा, भारत का गणराज्य अन्तर्राष्ट्रीय कानून का सम्मान करने अर्थात उसका पालन करने की भावना की अभिवृद्धि (संसार के सभी राष्ट्रों के सहयोग से) करेगा।
- भारत का गणराज्य अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का हल मध्यास्थता के द्वारा अर्थात ‘विश्व संसद’ के द्वारा सुलझाने का प्रयास करेगा।अनुच्छेद 51 के (डी) भाग में अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का हल मध्यास्थता के द्वारा हल करने की बात की गयी है। मध्यास्थता के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के एक निष्पक्ष व्यक्ति या संस्था की आवश्यकता होती है। संयुक्त राष्ट्र संघ में पांच वीटो पाॅवर होने के कारण वह निष्पक्ष संस्था नहीं है। अब यदि कोई अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की निष्पक्ष संस्था नहीं है तो हमें विश्व संसद के रूप में उसका शीघ्र गठन करके उसे बनाना होगा। ताकि अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का हल आपसी परामर्श के द्वारा निकाला जा सके।
हमारा ‘सम्पूर्ण विश्व की एक संसद’ बनाने का सुझाव है जो कि ‘विश्व का संचालन’ सुचारू रूप से करने के लिए
बाध्यकारी कानून बना सके और जिसके द्वारा विश्व की सरकार एवं विश्व न्यायालय का गठन किया जा सके। न्याय के तराजू के एक पलड़े में विश्व में भारी संख्या में निर्मित घातक परमाणु बम रखे हैं तथा दूसरे पलड़े में विश्व के दो अरब पचास करोड़ बच्चों का असुरक्षित भविष्य दांव पर लगा है। विश्व के बच्चे सुरक्षित विश्व तथा सुरक्षित भविष्य की अपील वल्र्ड जुडीशियरी से कर रहे हैं।हेग, नीदरलैण्ड में इण्टरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्ट्सि का मुख्यालय स्थित है। इस अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के निर्णय किसी देश के लिए बाध्यकारी नहीं है। अतः संसार के मानव मात्र की एकता के लिए एवं विभिन्न देशों के आपसी मतभेदों का निष्पक्ष एवं सर्वमान्य समाधान करने के लिए- ‘विश्व संसद’, ‘विश्व सरकार’, बाध्यकारी कानून एवं ‘विश्व न्यायालय’ की अविलम्ब आवश्यकता है। इसके साथ ही बच्चों को एक विश्व भाषा, राष्ट्र भाषा व मातृ भाषा के साथ-साथ पढाई जानी चाहिए, और इसके अतिरिक्त उनमें स्त्री-पुरूष की समानता, धर्म और विज्ञान के सामन्जस्य, पारिवारिक एकता, सामाजिक एकता एवं विश्व एकता के विचारों का बीजारोपण किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त सम्पूर्ण विश्व की मानव जाति व संसार को बचाने का और कोई विकल्प नहीं है।
विश्व के कुछ विश्वविख्यात महापुरूषों ने विश्व एकता के लिए कहा था कि-
- राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा है कि ‘‘भविष्य में विश्व की शांति, सुरक्षा एवं सुव्यवस्थित प्रगति के लिये विश्व के सभी राष्ट्रों के एक महासंघ की आवश्यकता है। इसके सिवाय विश्व के पास आधुनिक युग की समस्याओं को हल करने का और कोई उपाय नहीं है।’’
- भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा है कि ‘‘या तो विश्व एक हो जायेगा या फिर नष्ट हो जायेगा।’’
- भारत के राष्ट्रपति डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा है कि ‘‘संसार को एक केन्द्रीय संसद की स्थापना करनी होगी जिसके आगे बल प्रयोग के सभी कारकों का समर्पण किया जायेगा और सभी स्वतंत्र राष्ट्रों को सम्पूर्ण विश्व की सुरक्षा के हित में अपनी संप्रभुता के कुछ अंश का परित्याग करना होगा।’’
- अमेरिका राष्ट्रपति जाॅन एफ. कैनेडी ने कहा है कि ‘‘हमें मानव जाति को महाविनाश से बचाने के लिए विश्वव्यापी कानून बनाना एवं इसको लागू करने वाली संस्था को स्थापित करना आवश्यक होगा और विश्व में युद्ध और हथियारों की होड़ को विधि विरूद्ध घोषित करना होगा।’’
- इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री विन्सटन चर्चिल ने कहा है कि ‘‘जब तक हम विश्व सरकार का गठन नहीं कर लेते तब तक हमारे लिए संभावित तृतीय विश्व युद्ध को रोकना असम्भव है।’’
- यूएसएसआर के राष्ट्रपति मिखाईल गोर्बाचोव ने कहा कि ‘‘विश्व सरकार की आवश्यकता के बारे में जागरूकता तेजी से फैल रही है। एक ऐसी व्यवस्था जिसमें विश्व समुदाय के सभी सदस्य भाग लेंगे।’’
इन दूरदर्शी विश्व नेताओं ने महायुद्ध रूकवाये थे-
राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन ने ‘लीग ऑफ नेशन्स’ की स्थापना की
वर्ष 1914 से 1918 में हुये, प्रथम विश्व युद्ध के समय अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन ने विश्व के नेताओं की एक बैठक आयोजित की, जिसके फलस्वरूप ‘लीग ऑफ नेशन्स’ की स्थापना हुई और प्रथम महायुद्ध समाप्त हुआ।
राष्ट्रपति फ्रैन्कलिन डी. रूजवेल्ट ने ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ की स्थापना की
वर्ष 1938 से 1945 में हुये, द्वितीय विश्व युद्ध के समय अमेरिका के ही तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रैन्कलिन डी. रूजवेल्ट ने विश्व के नेताओं की एक बैठक बुलाई। जिसकी वजह से 24 अक्टूबर, 1945 को ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ (यूएनओ) की स्थापना हुई। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के समय भारत सहित विश्व के 51 देशों ने सर्वसम्मति से इसके चार्टर पर हस्ताक्षर किये इसके कारण दूसरा महायुद्ध समाप्त हुआ।
फ्रांस के प्रधानमंत्री राबर्ट शूमेन ने ‘यूरोपीय यूनियन’ की स्थापना की
वर्ष 1950 में फ्रांस के प्रधानमंत्री राबर्ट शूमेन ने यूरोपीय देशों के नेताओं की एक बैठक बुलाने की पहल की। इस पहली बैठक में 76 यूरोपीय संसद सदस्यों ने प्रतिभाग किया जिसके परिणामस्वरूप यूरोपीय देशों ने अपनी एकता, शांति एवं समृद्धि के लिए यूरोपीय यूनियन व 28 यूरोपीय देशों की एक ‘यूरोपीय संसद’ और 18 देशों की एक ‘यूरो’ करेंसी बनाई। इसके कारण यूरोपीय युद्ध समाप्त हुआ। यदि इन महान दूरदर्शी विश्व के तीन मार्गदर्शक नेताओं ने विश्व के देशों को परस्पर नजदीक लाने व विश्व के युद्धों की भयावहता से मुक्त कराने का प्रयास न किया होता तो आज विश्व की क्या स्थिति होती।
अब चैथे दूरदर्शी विश्व नेता की आवश्यकता है
इन तीन महापुरूषों द्वारा जब ये कदम उठाए गए थे तब की तुलना में आज विश्व के हालात कहीं अधिक भयावह व विनाशकारी है। 1938 से 1945 तक हुये द्वितीय महायुद्ध के दौरान हिरोशिमा एवं नागासाकी पर बमवर्षा के बाद से विशेषतया संसार के दो अरब पचास करोड़ बच्चों का तथा मानव जाति का भविष्य निरंतर असुरक्षित होता जा रहा है। मानवता को अब एक चौथे दूरदर्शी विश्व नेता की आवश्यकता है जो विश्व संसद, विश्व सरकार व विश्व न्यायालय का गठन करके संसार के बच्चों व मानवजाति को संभावित महाविनाश से बचा सके और धरती पर ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की स्थापना कर सके।
इस लेख का संक्षिप्त में सार तत्व-
‘विश्व संसद’ का गठन कर भारत मानवता का रक्षक कहलायेंगा। विश्व के सात अरब पचास करोड़ लोग बेताबी से विश्व एकता और विश्व शान्ति का अगुआ बनने की ओर बड़ी उम्मीद से देख रहे हैं। भारत का जगत गुरू के रूप में पुनः युगों-युगों तक स्वर्णिम इतिहास बन जायेगा। महात्मा गांधी यह कहा था कि एक दिन ऐसा आयेगा जब राह भटकी मानव जाति मार्गदर्शन के लिए भारत की ओर वापिस लौटेगी। भारत के लिए विश्व एक बाजार नहीं वरन् एक परिवार है। परिवार में स्नेह और प्यार होता है। आज राह भटकी दुनियाँ विश्व गुरू भारत से वसुधैव कुटुम्बकम्, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 तथा जय जगत के सार्वभौमिक विचार की सीख ले सकती है।
प्रदीप कुमार सिंह