अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने भारत के नए नागरिकता कानून को लेकर सुनवाई की. अमेरिकी आयोग द्वारा कराई गई सुनवाई में भारतीय मुस्लिमों के लिए संभावित खतरे को लेकर आगाह किया गया. हालांकि, भारत सरकार अमेरिकी आयोग के रुख को पूर्वाग्रहों से ग्रसित बता चुकी है.
ब्राउन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर वार्ष्णेय आशुतोष वार्ष्णेय ने अमेरिकी पैनल को बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के कदम ने लोकतंत्र में शामिल नागरिकता की समावेशी और धर्मनिरपेक्ष परिभाषा को संकुचित कर दिया है. उन्होंने चर्चा के दौरान कहा, खतरा गंभीर है और इसमें बेहद खतरनाक संकेत छिपे हैं.
उन्होंने कहा, भारतीय मुस्लिम अल्पसंख्यकों से एक बार नागरिकता का अधिकार छीने जाने के बाद उनके खिलाफ कुछ बड़ा घटित हो सकता है. वार्ष्णेय ने चेतावनी दी कि कानून लागू होने के बाद नागरिकता से वंचित रह गए मुस्लिम अल्पसंख्यकों को या तो डिटेंशन सेंटर भेजा जाएगा. अगर ऐसा नहीं भी होता है तो वे हाशिए पर जरूर चले जाएंगे. उन्होंने कहा, एक बार जब आप ये कह देते हैं कि एक विशेष समुदाय पूरी तरह से भारतीय नहीं है या उनकी भारतीय पर गंभीर संदेह है तो फिर उनके खिलाफ हिंसा के लिए उपयुक्त माहौल तैयार हो जाता है.
असम के मानवाधिकार मामलों की लड़ाई लड़ने वाले वकील अमन वदूद ने भी वॉशिंगटन में हुई सुनवाई में हिस्सा लिया. उन्होंने कहा, तमाम भारतीयों के पास नागरिकता साबित करने के लिए जन्म प्रमाण पत्र या अन्य दस्तावेज नहीं हैं और वे केवल गरिमापूर्ण तरीके से जीवनयापन करना चाहते हैं.
हालांकि, अमेरिकी आयोग की सुनवाई में सिर्फ भारत के नागरिकता कानून पर ही चर्चा नहीं कराई गई बल्कि म्यांमार के रोहिंग्याओं को नागरिकता देने से इनकार करने को लेकर भी चिंता जताई गई. अमेरिकी आयोग की उपाध्यक्ष गेल मैंचिन ने बहरीन के शिया ऐक्टिविस्ट्स की नागरिकता रद्द करने और केन्या में अल्पसंख्यकों को बाहर करने वाले नए डिजिटल आईडी सिस्टम को लेकर भी चर्चा की.