करें ये उपाय
अन्न का पांच भाग, काले चने दो भाग व गेहूं एक भाग लेकर पीसकर उसका आटा प्रमेही का सेवन करना चाहिए.
नया अन्न, अधिक खाना, अधिक सोना, दही का अधिक सेवन इस रोग की उत्पत्ति में कारण हैं. इसलिए इनसे बचना चाहिए. भोजन के बाद जल नहीं पीना चाहिए. जल व सत्तू का इस्तेमाल इस रोग में हितकर है. लाजा प्रमेह को नष्ट करता है. हल्दी व यव इस रोग में विशेष रूप से हितकारी है.हरीतकी प्रमेह का नाश करती है. शिलाजीत का सेवन करने से आदमी प्रमेह के उपद्रवों से शीघ्र ग्रसित नहीं होता. आंवला व हल्दी चूर्ण का नित्य इस्तेमाल इस रोग में विशेष फायदेमंदहै.
प्रमेह का रोगी अगर स्थूल है, तो संशोधन यानी वमन विरेचन के इस्तेमाल से व अगर उस का रोगी कृश है, तो उसके शरीर में वृद्धि करने वाले द्रव्यों के इस्तेमाल से उसकी चिकित्सा करनी चाहिए.
जब शरीर में मल संचित होते रहते हैं, वे उपेक्षित होकर चिरकाल तक शरीर में पड़े रहते हैं, तो विभिन्न रोगों के साथ-साथ प्रमेह रोग की उत्पत्ति होती है. इसलिए शरीर का शोधन करने से इससे बचा जा सकता है.
इनके साथ फल व सब्जियों का भी भरपूर सेवन करना चाहिए. ध्यान रहे कि उन फलों का सवेन हरगिज़ न करें, जिनमें शर्करा की मात्रा अधिक होती है.
विजयसार की लकड़ी का चूर्ण 200 ग्राम की मात्रा में लेकर एक घड़े में पानी में भिगो दें. अगले दिन पीने के लिए उस पानी का इस्तेमाल करें. यह पानी व लकड़ी प्रतिदिन बदलनी चाहिए. तभी अच्छे फायदा मिलते हैं.