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सुप्रीम कोर्ट में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में मुस्लिम पक्ष ने पेश कीं अपनी ये जायज दलीलें

सुप्रीम कोर्ट में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में मुस्लिम पक्ष ने अपनी दलीलें पेश कीं। मुस्लिम पक्षकारों की तरफ से वकील राजीव धवन ने कोर्ट से कहा कि भूमि विवाद का निपटारा कानून के हिसाब से हो, ना कि स्कंद पुराण और वेदों के जरिए। उन्होंने कहा कि अयोध्या में लोगों की आस्था हो सकती है लेकिन ये सबूत नहीं हैं।

मुस्लिम पक्षकार के वकील ने कहा कि स्वयंभू का मतलब भगवान का प्रकट होना होता है, इसको किसी खास जगह से जोड़ा नहीं जा सकता है। राजीव धवन ने कहा कि हम स्वयंभू और परिक्रमा के दस्तावेजों पर भरोसा नहीं कर सकते हैं। राजीव धवन ने पुराने केस और फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि देवता की संपत्ति पर कोई अधिकार नही, केवल सेवायत का ही होता है। उन्होंने कोर्ट में दलील देते हुए कहा कि 1950 में सूट दाखिल हुआ और निर्मोही अखाड़े ने घटना के 40 साल बाद इन्होंने दावा पेश किया।

ये कैसी सेवायत है? श्रद्धालुओं ने भी पूजा के अधिकार का दावा किया। देवता के कानूनी व्यक्ति या पक्षकार होने पर राजीव धवन ने कहा कि देवता का कोई जरूरी या आवश्यक पक्षकार नहीं रहा है। यहां तो देवता और सेवायत ही आमने-सामने हैं। देवता के लिए अनुच्छेद 32 के तहत कोर्ट में दावा नहीं किया जा सकता है। राजीव धवन ने कहा, ‘1934 में हिंदुओं ने बाबरी मस्जिद पर हमला किया, फिर 1949 में अवैध तरीके से घुसपैठ की और आखिर साल 1992 में इसे ध्वस्त कर दिया। अब कह रहे हैं कि संबंधित जमीन पर उनके अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए।’राजीव धवन ने कहा कि इस मामले में इतिहास और इतिहासकारों पर भरोसा नहीं कर सकते हैं।

इसपर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आपने भी तो इतिहास के सबूत रखे हैं, उसका क्या? धवन ने दलील देते हुए कहा कि वैदिक काल में मंदिर बनाने और वहीं मूर्तिपूजा करने की कोई परंपरा नहीं थी। धवन ने कहा कि महाभारत तो इतिहास की कथा है लेकिन रामायण काव्य है क्योंकि वाल्मिकि ने खुद इसे काव्य और कल्पना से लिखा है। रामायण तो राम और उनके भाइयों की कहानी है। तुलसीदास ने भी मस्जिद के बारे में कुछ नहीं लिखा है जबकि उन्होंने राम के बारे में सबसे बाद में लिखा है। इस मामले में सुनवाई मंगलवार को भी जारी रहेगी।

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